लखनऊ. ऐसी ही नहीं आई यूपी में बीजेपी की सुनामी. सोची-समझी चाल चली गई...
लखनऊ. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत पाकर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का रास्ता काफी हद तक खोल लिया है.
इन दोनों राज्यों में जीत के कई बड़े मायने हैं. एक तो पीएम नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया है कि उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है.
लोकसभा चुनाव-2014 के बाद बिहार और दिल्ली विधानसभा चुनाव को अगर छोड़ दें तो बीजेपी लगभग हर चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर रही है.
लेकिन यूपी-उत्तराखंड में बीजेपी को जिस तरह से सीटें मिली हैं उसमें पार्टी की रणनीति भी बेहद कारगर साबित हुई है.
क्या थी बीजेपी की रणनीति
1- गैर-यादव ओबीसी प्रत्याशियों को 130 से ज्यादा सीटों पर उतारा गया.
2- गैर-जाटव दलित वोटों पर साधा गया निशाना. पासी समुदाय के लोगों को 25 और धोबी समुदाय से 9 लोगों को टिकट दिया गया. कुशवाहा जाति के वोटों पर पकड़ मजबूत करने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को बहुत पहले ही प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था.
3- गैर-जाटव समुदाय से ताल्लुक रखने वाले नेताओं को केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी गई. जिनमें कृष्णा राज, साध्वी निरंजन ज्योति, अपना दल से सांसद अनुप्रिया पटेल
4- बीएसपी के दो बड़े नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्या और आरके चौधरी को बीजेपी में शामिल कराया गया इसके बाद तो बीएसपी मानो जाटवों की ही पार्टी बनकर रह गई.
5- यही रणनीति अखिलेश यादव के खिलाफ भी अपनाई गई और उनको सिर्फ यादवों का नेता के तौर पर जनता के सामने बीजेपी में रखने में कामयाब हो गई.
6- नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे को जनता के सामने ऐसे रखा गया कि सिर्फ मोदी ही देश में ऐसे नेता हैं जो निर्णायक फैसला ले सकते हैं.
7- जनता के हित से जुड़ी योजनाएं उज्ज्वला गैस कनेक्शन, शौचालय के लिए मिलने वाली सब्सिडी, यूरिया के वितरण में ईमानदारी जैसी योजनाओं को काफी तेजी से चलाया गया.
8- बीजेपी के घोषणापत्र में किसानों के कर्ज माफी का ऐलान भी बहुत बड़ा कारण बना जिससे गांवों में पार्टी को 80 प्रतिशत वोट मिले.
9- पीएम मोदी और अमित शाह ने मुस्लिमों-यादवों को लेकर सपा सरकार की भेदभाव वाली छवि को भी खूब भुनाया.
10- प्रदेश में एंटी-रोमियो स्क्वैड बनाने की घोषणा. इसमें हिंदुओं के लिए छुपा हुआ था मैसेज था जो लव जिहाह के मुद्दे से जुड़ा था.
11- किसी भी मुस्लिम को टिकट न देकर बीजेपी ने हिंदूवादी छवि को मजबूत रखा.
12- बीजेपी ने अपना सीएम प्रत्याशी घोषित नहीं किया क्योंकि उसके पास मायावती और अखिलेश यादव की टक्कर का नेता नहीं था. बीजेपी ने यूपी में मोदी को ही अपना चेहरा बनाया. बीजेपी का मानना है कि पीएम मोदी का आक्रामक चुनाव प्रचार कम से कम 50 सीटों को बढ़ाने में कामयाब हुआ है.