UP चुनाव में हार के बाद आसान नहीं होगी अखिलेश की राह, होंगी ये चुनौतियां

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार के बाद अब अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ गई हैं. अखिलेश की बगावत और पार्टी टूटने के बाद पनपा विरोध अब खुलकर सामने आने लगा है.

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UP चुनाव में हार के बाद आसान नहीं होगी अखिलेश की राह, होंगी ये चुनौतियां

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  • March 11, 2017 2:08 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार के बाद अब अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ गई हैं. अखिलेश की बगावत और पार्टी टूटने के बाद पनपा विरोध अब खुलकर सामने आने लगा है. 
 
अखिलेश के सामने हार के बाद पार्टी को संभालने के साथ ही विरोधियों को हमलों के सामने टिक रहने की चुनौती भी होगी. अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव और मुलायम सिंह का खुला विरोध कर राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद अपने हाथ में लिया था. अब इस पद पर भी खतरा हो सकता है. 
 
वहीं, अखिलेश अपने उस बयान के कारण भी मुसीबत में पड़ सकते हैं जिसमें उन्होंने मुलायम सिंह से कहा था कि बस तीन महीने हमें दे दीजिए, उसके बाद आप जो चाहे कीजिए. अगर वाकई ऐसा है तो अखिलेश को कई अनचाहे स्थितियों को सामना करना पड़ सकता है. 
 
 
पिता-पुत्र कैसे आए आमने-सामने
बता दें कि विधानसभा चुनावों से पहले अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच का झगड़ा मुलायम और अखिलेश के मनमुटाव में बदल गया था. यहां तक कि अखिलेश यादव को एक बार पार्टी से भी निकाल दिया गया. हालांकि, फिर उन्हें वापस पार्टी में ले लिया गया था लेकिन तब तक पार्टी में सुलह की उम्मीदें खत्म हो चुकी थीं. अगले ही अखिलेश ने कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी. 
 
इसके बाद मामला चुनाव आयोग पहुंचा और पार्टी का चिह्न किसे मिले इसे लेकर विवाद हो गया. चुनाव आयोग का फैसला अखिलेश यादव के पक्ष में आया था और पार्टी का चिह्न उन्हें मिल गया. फिर सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन के बाद पिता-पुत्र का मनमुटाव और ज्यादा बढ़ गया. यहां तक कि मुलायम सिंह यादव ने चुनाव के दौरान पार्टी का प्रचार भी ​नहीं किया. लेकिन, चुनावों को देखते हुए कोई भी खुलकर अखिलेश के खिलाफ न बोलकर एकसाथ दिखने की कोशिश कर रहे थे. 
 
 
वापस लेने पड़ सकते हैं फैसले

अब सपा के हारने के बाद विरोधियों के सुर तेज होने स्वाभाविक हैं. शिवपाल यादव भी आज कह चुके हैं कि ये समाजवादियों की नहीं, घमंड की हार है. नेताजी को हटाया गया और हमारा अपमान किया गया. 
 
ऐसे में आगे अखिलेश पर नैतिकता के आधार पर राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने के लिए भी दबाव बनाया जा सकता है. साथ ही संगठन को लेकर हाल ही में किए गए बदलावों को वापस लेने का दबाव बन सकता है. इसमें बड़ा फैसला सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन का था. इस गठबंधन पर भी खतरा बन सकता है. 
 
इतना ही नहीं अखिलेश खेमे के सदस्यों पर भी विरोधियों के नजर रहेगी. अखिलेश ने शिवपाल के करीबियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था और अपनी टीम बनाई थी. ऐसे में फिर से दूसरा खेमा अखिलेश यादव पर हावी हो सकता है. हालांकि, ​अब आने वाला समय ही बताऐगा की ​अखिलेश कैसे इन चुनौतियों से निपटते हैं. 

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