लखनऊ. उत्तर प्रदेश में की प्रचंड जीत के कई वजहें बताई जा रही हैं. सोशल इंजीनियरिंग, पीएम मोदी का चेहरा, नोटबंदी का सकारात्मक असर. लेकिन इन सारी वजहों के बाद भी अगर बीजेपी के पास ‘पन्ना इंचार्ज’ नहीं होते तो कुछ भी काम न आता.
दरअसल बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से एक साल पहले ही तैयारी शुरू कर दी थी. बीजेपी परसेप्शन की लड़ाई यहां से शुरू से नहीं हारी और जो चुनावी प्रबंधन यूपी में दिखा वह बिहार चुनाव में गायब था.
बीजेपी की थी बड़ी तैयारी
बीजेपी ने 1,47,000 बूथों के लिए 13,50,000 कार्यकर्ता तैनात किए थे. इन कार्यकर्ताओं की तैनातगी के लिए पिछले एक साल से काम जारी था.
खास बात यह थी इस बीजेपी के इस रणनीति में पुराने स्थानीय नेताओं के बजाए नई उम्र कार्यकर्ताओं की ज्यादा जिम्मेदारी दी थी. इसका फायदा यह हुआ कि कोई भी चरण हो बीजेपी के प्रचार में उत्साह की कमी नहीं आई.
इतना ही नहीं राज्य में एक करोड़ 80 लाख सदस्य और 67,000 सक्रिय कार्यकर्ताओं का नेटवर्क तैयार था जिनमें जोश भरने के लिए 8 हजार किलोमीटर का परिवर्तन यात्रा का रूट तैयार किया गया था.
पन्ना इंचार्ज पर था फोकस
बीजेपी ने इस बार बूथ लेवल की जिम्मेदारी देने के बजाए पन्ना इंचार्ज बनाया. जिसमें वोटर लिस्ट के हर पन्ने की जिम्मेदारी एक कार्यकर्ता को सौंपी गई थी.
अभी तक हर पार्टी एक बूथ इंचार्ज तैयार करती थी जिसके अंतर्गत तीन-चार कार्यकर्ता काम करते थे उनमें आपस में मनमुटाव भी हो जाता था.
लेकिन पन्ना इंचार्ज के फॉर्मूले में हर कार्यकर्ता के पास काम था और उसको किसी को रिपोर्ट भी नहीं करना था. बीजेपी के इस माइक्रो लेवल मैनेजमेंट के आगे सपा-कांग्रेस की रणनीति और मायावती का मुस्लिम-दलित फॉर्मूला फ्लॉप हो गया.
किसने तैयार की थी यह रणनीति
2014 से यूपी में बीजेपी के संगठन का काम देख रहे सुनील बंसल की बनाई ये योजना थी. सुनील एबीवीपी से बीजेपी में आए हैं और अब वह बीजेपी के संगठन मंत्री हैं. मिस्ड कॉल देकर सदस्य बनाने की योजना भी उन्हीं की देन है.