लखनऊ. यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह बीजेपी को रोकने के लिए बीएसपी सुप्रीमो मायावती से भी समझौता करने के लिए तैयार हैं.
बीबीसी हिंदी को दिए इंटरव्यू में अखिलेश ने यह बात कही है. हालांकि उनके इस बयान पर बीएसपी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन सूत्रों की मानें तो मायावती ने कहा है कि वह इस पर कोई भी फैसला नतीजा आने के बाद ही लेंगी.
..तो क्या मायावती भूल जाएंगी वो कांड
1993 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा और मायावती के नेतृत्व में बसपा ने मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था. उस समय उत्तराखंड भी यूपी का ही हिस्सा था. कुल 422 सीटों में सपा 256 और बीएसपी 164 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.
जिसमें सपा ने 109 और बीएसपी ने 67 सीटें जीतीं और मुलायम सिंह यादव यूपी के सीएम बने. लेकिन मायावती ने मनमुटाव के चलते 2 जून 1995 को सरकार से समर्थन वापस ले लिया और मुलायम सिंह सरकार अल्पमत में आ गई.
यूपी में सरकार बचाने के लिए राजनीतिक सरगर्मिया तेज थीं. इधर मायावती उसी दिन लखनऊ के मीराबाई मार्ग पर बने सरकारी गेस्ट हाउस के कमरा नं-1 में अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं.
तभी समाजवादी पार्टी के कुछ कार्यकर्ता और विधायक वहां पहुंच गए और हमला कर दिया. बताया जाता है कि बसपा सुप्रीमो मायावती को एक कमरे में बंद कर उनके साथ मारपीट की गई और कपड़े तक फाड़ दिए गए.
बीजेपी विधायक ने जान पर खेल कर बचाई थी जान
बीजेपी विधायक और संघ के स्वयंसेवक स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी अकेले गेस्ट हाउस पहुंच गए और वहां मौजूद सपा कार्यकर्ताओं और विधायकों से अकेले भिड़ गए. वो अकेले मायावती को गेस्ट हाउस से बाहर निकाल लाए.
मायावती ने कहा- भाग गए थे मेरे समर्थक
मायावती ने बाद में घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि जब मेरे ऊपर हमला हुआ था तो उनके समर्थक भाग खड़े हुए थे. उसी दिन से वह ब्रह्मदत्त द्विवेदी और कई बीजेपी नेताओं को वह अपना भाई मानने लगी थीं.
भारतीय राजनीति का ‘काला दिन’
लखनऊ में मायवती के साथ हुई इस घटना को गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है और एक दलित नेता पर हुआ यह हमला भारतीय राजनीति के इतिहास में ‘काला दिन’ के तौर पर याद किया जाता है.