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आखिरी चरण की 40 सीटों के लिए इतनी मारामारी क्यों, क्या तस्वीर साफ हो गई ?

वाराणसी.  उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण का मतदान 8 मार्च को होना है. ऐसा लगता है कि बीते 6 चरणों के चुनाव प्रचार पर आखिरी का चरण का प्रचार भारी पड़ा है.
वाराणसी पूरे चुनाव का केंद्र बन गई. पीएम मोदी अपनी संसदीय सीट पर कैबिनेट मंत्रियों के साथ पूरे तीन दिन तक डेरा जमाए हुए थे.
अखिलेश और राहुल गांधी की जोड़ी भी वाराणसी में प्रचार से पीछे नहीं रही. लेकिन पीएम मोदी का पूरे तीन तक चला प्रचार मीडिया के केंद्र में रहा.
कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री के इस मेगा चुनाव प्रचार पर सवाल भी उठाए. उनका कहना था कि इससे कौन प्रधानमंत्री विधानसभा चुनाव प्रचार में इतने आक्रमक तरीके से मैदान पर उतरा हो.
उनकी इस बात का जवाब देने वाले इंदिरा गांधी की याद दिलाते हैं और 1980 में हुए चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार का हवाला देते हैं.
लेकिन इस सभी बहस और तर्कों के बीच सवाल इस बात का है कि आखिरी चरण के चुनाव प्रचार में सभी पार्टियों का इतना जोर क्यों था ?
तो जेहन में पहला जवाब सामने आता है कि छठे चरण के चुनाव तक किसी भी पार्टी को नहीं लगता है कि उसे बहुमत मिलने जा रहा है. ये दावा कुछ चुनावी विशेषज्ञ पहले से भी करते आए हैं.
मीडिया में भले ही दावा किया जा रहा है कि बीजेपी के पक्ष में हवा है (ध्यान रहे इस बार लहर शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है) लेकिन बीजेपी को अभी तक इस बात पर पूरी तरह भरोसा नहीं है.
वहीं अखिलेश और राहुल गांधी भी युवा और मुस्लिम वोटों के भरोसे भले ही जीत का दावा कर रहे हों लेकिन उनका ये साथ यूपी को कितना पसंद है इस पर भी कुछ साफ-साफ तस्वीर उभर कर नहीं आ रही है.
बीएसपी भी बूथ लेवल के मैनेजमेंट और मुस्लिम वोटों के भरोसे है लेकिन उसके सामने सपा और कांग्रेस का गठबंधन भी मुस्लिम वोटों का दावा कर रहा है.
आखिरी चरण की 40 सीटों के लिए हर पार्टी कम से कम 30 से 35 सीटें जीतना चाहती है. यह बिलकुल क्रिकेट मैच की तरह है आखिरी ओवर में ज्यादा से ज्यादा रन.
पिछले कुछ चुनाव पर नजर डालें तो देखा गया है कि जनता ने जिस किसी भी पार्टी को जिताया है तो वह पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई है. जो पार्टी है उसका पूरी तरह से सफाया हो गया.
लेकिन उत्तर प्रदेश में इस बार तीन मोर्चों पर लड़ाई है. यूपी विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे के सहारे ही बीजेपी मैदान में है. सपा में अखिलेश की कुर्सी दांव पर है.
कांग्रेस की ओर से राहुल को इस बार फिर से खुद को साबित करने चुनौती है. मायावती को बीएसपी का अस्तित्व बचाना है क्योंकि लोकसभा में उसके पास कोई भी सीट नहीं है.
कुल मिलाकर हर नेता और पार्टी का कुछ न कुछ इस बार दांव पर लगा है. अभी तक जो तस्वीर उभरी है वह बेहद धुंधली है और किसी भी पार्टी को खुद पर भरोसा नहीं है.
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