नई दिल्ली. केंद्र में बीजेपी सरकार बनने के बाद अजमेर ब्लास्ट केस में अब तक अभियोजन पक्ष के 14 महत्वपूर्ण गवाह बयान से मुकर गए हैं. साल 2007 में अजमेर में इफ्तार पार्टी के दौरान हुए धमाके में तीन लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 17 लोग घायल हो गए थे. राजस्थान पुलिस ने इस केस की शुरुआती जांच की थी लेकिन 2011 में यह केस एनआईए (NIA) को सौंप दिया गया था.
स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्युटर अश्विनी शर्मा ने अंग्रेजी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में बताया कि अभियोजन पक्ष की ओर से पूरा मामला उनके गवाहों के बयानों पर ही टिका था, जो उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दिए. लेकिन, सभी गवाह कोर्ट में मुकर गए. खास बात ये ही कि इन गवाहों ने 2010 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने कहा था कि वे बिना किसी दबाव में ये बयान दे रहे हैं. लेकिन नवंबर 2014 से अचानक गवाहों ने अपने बयान बदलने शुरू कर दिए और एनआईए पर जबरदस्ती बयान दिलाने का आरोप लगाया.
खास बात ये भी है कि एक प्रमुख गवाह रणधीर सिंह अब झारखंड की बीजेपी सरकार में मंत्री बन गए हैं. राजस्थान एटीएस ने अजमेर ब्लास्ट की छानबीन की थी. एटीएस ने अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े तीन लोगों देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चंद्रशेखर लेवे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. इसके बाद मामला NIA के पास पहुंचा तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अप्रैल 2011 से अक्टूबर 2013 के बीच उपरोक्त तीन लोगों सहित कुल 12 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. इन सभी लोगों का संबंध हिन्दूवादी संगठनों से रहा है.
आपको बता दें कि मालेगांव में 7 साल पहले हुए बम धमाकों से जुड़े मामलों में स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्युटर रोहिणी सालियन ने एक सप्ताह पहले हैरान करने वाला खुलासा किया था. उनका कहना था कि इस ब्लास्ट में शामिल अभियुक्तों के प्रति नरम रुख रखने के लिए उन पर लगातार दबाव डाला जा रहा है. यह दबाव राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) की ओर से डाला जा रहा है.
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