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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: बीजेपी-कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों के लिए बागी बने चुनौती

देहरादूून.  70 विधानसभा सीटों वाले छोटे से राज्य उत्तराखंड की सियासत इस बार भी काफी रोचक है. दो मुख्य पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी इस बार फिर अपनों से ही जूझ रही है. यहां की राजनीति को समझने के लिए हमें थोड़ा भौगोलिक परिस्थितियों को भी समझना होगा.
कुमांऊ इलाका दूर-दराज के पहाड़ी इलाकों और बर्फ में दबी छोटी-छोटी झोपड़ियों के लिए जाना जाता है. वहीं गढ़वाल का इलाका हिमाचल प्रदेश और यूपी की सीमा से सटा हुआ है. इन इलाकों से कांग्रेस और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष आते हैं जो चुनावी मैदान में हैं.
खास बात है कि दोनों को ही बागियों से जूझना पड़ रहा है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय देहरादून की सहसपुर विधानसभा सीट से मैदान में हैं. उनको कांग्रेस के ही बागी अर्येन्द्र शर्मा तगड़ी चुनौती दे रहे हैं.
वह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. अर्येन्द्र शर्मा को के नामांकन में जिस तरह से भीड़ उमड़ी वह किशोर उपाध्याय के समर्थकों को परेशानी में डालने के लिए काफी थी.
वहीं दूसरी ओर रानीखेत विधानसभा सीट से किस्मत अजमा रहे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को न सिर्फ कांग्रेस के अजय महारा से चुनौती मिल रही है बल्कि बीजेपी के बागी डॉ. प्रमोद नैनवाल भी उनको परेशान में डाल रहे हैं.
मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस की ओर से अर्येन्द्र शर्मा को समझाने की खूब कोशिश की गई लेकिन उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी.
2012 में चुनाव हार चुके शर्मा उत्तराखंड के पूर्व सीएम एनडी तिवारी के ओएसडी भी रह चुके हैं. उनका कहना था कि उन्होंने इस इलाके में 8 साल काम किया है. सभी सर्वे में वह सबसे पसंदीदा उम्मीदवार रहे. अखिरी वक्त में उनका टिकट काट दिया. यह पूरी तरह से अन्याय है.
दरअसल किशोर उपाध्याय का अचानक सहसपुर से चुनाव लड़ने का फैसला कांग्रेस के अंदर चल रही लड़ाई का भी नतीजा है. उपाध्याय टिहरी से चुनाव लड़ना चाहते थे. जहां से वह 2002, 2007 में जीते थे लेकिन 2012 मे वह दिनेश धनै से काफी अंतर से हार गए थे.
सीएम हरीश रावत बाद में दिनेश धनै को कांग्रेस में शामिल करना चाहते थे लेकिन प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया. लेकिन रावत ने धनै को कैबिनेट मंत्री बना दिया जिससे रावत और उपाध्याय के बीच 36 का आंकड़ा हो गया.
दरअसल उत्तराखंड में कांग्रेस उन सभी नेताओं को अपने पाले में करना चाहती है जो विश्वास मत के दौरान रावत सरकार को बचाने में मदद की थी.
इस कड़ी में टिहरी से दिनेश धनै के खिलाफ कमजोर प्रत्याशी उतारा गया है तो उत्तराखंड क्रांति दल के धनोल्टी सीट से प्रत्याशी प्रीतम सिंह पंवार के खिलाफ कांग्रेस ने किसी को नहीं उतारा है.
जबकि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया गया है. खबर यह भी है कि सहसपुर के किशोर उपाध्याय को उतारने का फैसला एकदम आखिरी पलों में किया गया है. लेकिन हैरानी इस बात की है कि कांग्रेस का एक बड़ा तबका बागी अर्येन्द्र शर्मा के साथ खड़ा है.
वहीं बात करें रानीखेत विधानसभा सीट की तो यहां पर बीजेपी अध्यक्ष अजय भट्ट को हर दिन प्रचार करते रात 11 बज ही जाते हैं. दुर्गम पहा़ड़ी गांवों तक पहुंचने के लिए कम से कम एक दिन लग ही जाता है.
इस सीट पर भट्ट 2007 में ही कांग्रेस के अजय महारा से 298 वोटों से हार चुके हैं जबकि 2012 में इसी सीट पर महारा को 78 वोटों से हरा चुके हैं. लेकिन इस बार अजय भट्ट के सामने दोहरी चुनौती है. उनको बागी नैनवाल से भी टक्कर मिल रही है.
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