देहरादून. उत्तराखंड का विधानसभा चुनाव का गणित इस बार काफी उलझा हुआ है. 70 विधानसभा सीटों के लिए होने जा रहे इस चुनाव में 15 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद इस राज्य में पहली बार मुख्यमंत्रियों का बदला जाना आम बात हो गई थी.
सरकार चाहे कांग्रेस की बनी हो बीजेपी की पांच सालों के शासन में मुख्यमंत्री जरूर बदले गए हैं. तीर्थ स्थलों और चार धाम यात्रा के लिए प्रसिद्ध इस पहाड़ी राज्य में आपदाएं खूब आती हैं और हर बार यह चुनाव का मुद्दा भी बनती हैं.
ये भी पढ़ें, 4 जनवरी को हो सकता है यूपी समेत 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान चीन की सीमा से सटे जिलों में बस सेवा भी पहुंचाना इस यहां का मुख्य मुद्दा है. हालांकि पिछले कुछ सालों में इस पर अच्छा-खासा काम भी किया हुआ है. वहीं चार धाम यात्रा के दौरान आने वाली दिक्कतों को देखते हुए हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने एक नेशनल हाइवे का शिलान्यास भी किया है.
विजय बहुगुणा की जगह मुख्यमंत्री बनाए गए
हरीश रावत के आने के बाद से राज्य में कामकाज थोड़ा अच्छा हुआ है लेकिन वह अपनी पार्टी और सरकार के अंदर बगावत झेल रहे हैं पिछले साल ही पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे उसके बाद कोर्ट की निगरानी में रावत को सदन में बहुमत साबित करना पड़ गया.
छोटे से राज्य में अपने विधायकों को साधे रखना किसी भी मुख्यमंत्री के लिए बड़ी चुनौती होती है वैसे भी यहां चुनाव में नंबर वन और दो पार्टी के बीच सीटों की संख्या में काफी कम अंतर होता है और स्थिति में अगर एक भी विधायक का मन डोलता है तो सरकार हिल जाती है.
बात करें इस बार के विधानसभा चुनाव की तो मुख्यमंत्री हरीश रावत इस बार कई मोर्चों पर लड़ाई एक साथ लड़ेंगे. पहले तो वह पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और उनके साथ गए विधायकों की वजह से हुए नुकसान की भरपाई करेंगे. बहुगुणा कैंप हरीश रावत को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा.
दूसरा, सीएम हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के बीच की लड़ाई अब जगजाहिर हो चुकी है. सीएम रावत ने इस बार जो चुनावी रथ बनवाया है उससे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की त तस्वीर गायब जिसकी वजह से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नेता बेहद नाराज हैं.
गठबंधन का गणित किशोर उपाध्याय ने तो प्रेस कान्फेंस कर यहां तक कह डाला कि प्रदेश में कांग्रेस ‘दोधारी तलवार’ पर चल रही है. उनके इस बयान पर जब सीएम रावत से पूछा गया तो उन्होंने सिर्फ मुस्कराते हुए जवाब दिया ‘आप कुछ भी विश्लेषण कर सकते हैं’.
दरअसल रावत और उपाध्याय के बीच गठबंधन को लेकर गहरा मतभेद है. रावत चाहते हैं कि प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी
पीडीएफ के साथ कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े जिसमें कांग्रेस 7 सीटें छोड़ दे. लेकिन किशोर रावत इसका विरोध कर रहे हैं वह चाहते हैं कि कांग्रेस पूरी 70 सीटों पर अकेले दम पर मैदान में जाए.
रावत जानते हैं कि पीडीएफ और उत्तराखंड क्रांति दल जैसी पार्टियां चुनाव में थोड़ा सा भी मजबूत हो गई तो कोई भी सरकार नहीं बना पाएगा. ऐसे हालात में कांग्रेस आलाकमान उनकी क्षमता पर ही सवाल उठाएगा. ऐसा 2012 में भी हो चुका है.
टिहरी सीट पर बनी प्रतिष्ठा
निर्दलीय विधायक दिनेश धनई ने 2012 के चुनाव में टिहरी सीट से किशोर उपाध्याय को हराया था. उसके बाद रावत जब मुख्यमंत्री बने तो दिनेश को वह अपने कैबिनेट में ले आए और उन्हें 7 पोर्टफोलियो पकड़ा दिए. दिनेश फिर से टिहरी विधानसभा सीट से लड़ने का ऐलान कर चुके हैं जो कि निश्चित तौर पर किशोर उपाध्याय को चिढ़ाने वाली बात होगी.
फिर हुई हरीश चंद्रा की एंट्री
एक और निर्दलीय विधायक को लेकर सीएम हरीश रावत और पीसीसी अध्यक्ष हरीश रावत के बीच झगड़ा हो गया. रावत ने ऐलान किया कि निर्दलीय विधायक हरीश चंद्र कांग्रेस शामिल होंगे लेकिन प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उपाध्याय ने हरीश चंद्र को शामिल करने से मना कर दिया. तब रावत ने उन्हें अपना कैबिनेट मंत्री बना लिया और 6 विभाग दे दिए.
टिकट को लेकर झगड़ा
बताया जा रहा है कि रावत के कई नजदीकी जो कि इस समय कैबिनेट में अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट का जुगाड़ कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि रावत की बेटी भी इस बार चुनाव में हाथ अजमाना चाहती हैं. वह हरिद्वार ग्रामीण से प्रत्याशी हो सकती हैं. वहीं कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्या अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं. जबकि उपाध्याय लगातार नारा लगा रहे हैं कि ‘वन फैमिली वन टिकट’.
कब से है झगड़ा
दरअसल जब से विधायकों को खरीदने वाले सीडी कांड में हरीश रावत फंसे हैं तभी से दोनों के बीच संबंध खराब हो गए हैं. उस समय किशोर उपाध्याय ने उनकी कोई मदद नहीं की हालांकि रावत इस लड़ाई को आसानी जीत गए.