नई दिल्ली. मोदी सरकार कुछ फाइलें सार्वजनिक करने का विचार कर रही है. ये फाइलें सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की हैं.
दरअसल इन फाइलों को सार्वजनिक कर मोदी सरकार जनता को बताना चाहती है कि कैसे यूपीए के 10 सालों के शासनकाल में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही पीछे से पूरे सरकार को नियंत्रित कर रही थीं.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक यूपीए के शासनकाल में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का कोयला, उर्जा, विनिवेश रियल इस्टेट, प्रशासन, सामाजिक और आद्यौगिक क्षेत्र जैसे सरकारी नीतिगत मसलों पूरा हस्तक्षेप करती थी.
जिसका मतलब साफ था कि यह समिति सोनिया गांधी की अध्यक्षता में ‘बिना किसी जवाबदेही के सत्ता पर पूरा नियंत्रण’ रख रही थी.
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इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उसके हाथ में लगी इस समिति में कुछ फाइलों से पता चला है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चल रही यूपीए सरकार एनएसी के ही इशारों पर चल रही थी.
यह परिषद केंद्र सरकार के किसी भी अधिकारो को 2 मोती लाल नेहरू प्लेस में बने ऑफिस में हाजिर होने को कहती थी. मंत्रियों को पत्र लिखकर उसमें कही बातों पर रिपोर्ट मांगती थी.
जबकि इस समिति के बारे में कहा जाता था कि यह सिर्फ विधाई कामों में सरकार को सलाह देने के लिए बनाई गई है. फाइलों से मिली जानकारी के मुताबिक मनमोहन सरकार के पास इस समिति के ‘आदेश’ को मानने के लिए अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. इतना ही नहीं सरकार परिषद की सिफारिशों को लागू करने के लिए मजबूर थी.
अखबार ने एक फाइल के हवाले से लिखा है कि 29 अक्टूबर 2005 को हुई राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की बैठक में फैसला लिया ‘ऐसा माना जाता है कि समिति की तमाम सिफारिशों को लागू करने के समय सरकार की एजेंसियों की इसकी जिम्मेदारी होगी साथ ही इसकी स्वतंत्रतापूर्वक निगरानी और मूल्यांकन भी किया जाएगा’.
अब सवाल इस बात का भी उठ रहा है कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर विश्वास नहीं करती थीं क्योंकि सिफारिशें लागू करने के आदेश के अलावा परिषद उन पर निगरानी भी रखने की बात कहती है.
फाइलों से साफ हो रहा है कि राष्ट्रीय सलाहाकार परिषद कई एजेडों पर अपनी सिफारिशें सरकार को भेजती थी जैसे 21 फरवरी 2014 में सरकार को लिखी गई चिट्ठी में लिखा है कि एनएसी अध्यक्ष की ओर से उत्तर-पूर्व में खेलों को बढ़ावा देने से संबंधित सिफारिश सरकार को भेज दी गई है.
इसके अलावा कोपोरेटिव को बढ़ावा देने से संबंधित एक सिफारिश सरकार को भेजने का जिक्र भी एक फाइल में मिलता है. अब देखने वाली बात यह है कि मीडिया में ऐसी बातें सामने आने के बाद अब कांग्रेस की ओर क्या प्रतिक्रिया आती है.