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नेता के तौर मुलायम भले ही हारते दिखें लेकिन एक पिता जरूर जीत रहा है

लखनऊ : समाजवादी पार्टी में चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश से शुरू हुई यह लड़ाई अब बाप-बेटे के बीच का युद्ध बन गया है. लेकिन, सपा के इस घमासान के कई और मायने भी निकाले जा रहे हैं. राजनीतिक गलियारों से लेकर मीडिया में पिता-पुत्र के एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोलने के कई और कारण बताए जा रहे हैं.
बता दें कि मुलायम और अखिलेश के उम्मीदवारों की अलग-अलग सूची जारी करने के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने शुक्रवार को यूपी के सीएम अखिलेश यादव को पार्टी से छह साल के लिए निलंबित कर दिया था. हालांकि, शनिवार शाम को अखिलेश का निलंबन वापस ले लिया गया. लेकिन, रविवार सुबह रामगोपल यादव ने पार्टी राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया. वहीं, मुलायम सिंह को मार्गदर्शक के पद तक सिमटा दिया. अब मुलायम इसकी शिकायत लेकर चुनाव आयोग गए हैं. अब बात पार्टी का चुनाव चिन्ह जब्त होने तक भी पहुंच गई है.
बीजेपी के ईशारों पर मुलायम की चाल
इस घमासान की तह खंगालने वाले इस झगड़े के कारणों की कई थ्योरी दे रहे हैं. एक थ्योरी यह भी है कि मुलायम सिंह भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के मुताबिक काम कर रहे हैं. बीजेपी कमजोर सपा और बसपा के बीच यूपी चुनाव लड़ना चाहती है इसलिए मुलायम को अपनी ही पार्टी में तोड़-फोड़ करने की सलाह दी गई है. अब सवाल यह उठता है कि मुलायम अपने ही पार्टी तोड़ने के लिए तैयार क्यों होंगे?
इसे लेकर दो तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं. पहला यह कि बीजेपी ने मुलायम सिंह यादव को अगला राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति बनाने का वादा किया है. कहा यह भी जा रहा है कि अमर सिंह की मदद से ही यह समझौता हो पाया है. इसलिए मुलायम सपा में अमर सिंह को विरोध के बावजूद भी बनाए रखना चाहते हैं. इसमें दूसरी अनुमान है मुलायम का सीबीआई से डर. माना जा रहा है कि मुलायम आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई की कार्रवाई से बचने के लिए बीजेपी के मुताबिक चल रहे हैं.
हालांकि, इन आकलनों के विपरीत भी तर्क प्रस्तुत मोजूद हैं. जहां तक बात है सीबीआई से डरने की तो मुलायम सिंह के खिलाफ वह मामला लगभग बंद हो चुका है. इसके अलावा अखिलेश खुद इस मामले में आरोपी हैं, तो उन्हें सीबीआई का डर क्यों नहीं है? अगर यह झगड़ा नाटकीय है, तो यह इतना आगे कैसे बढ़ गया कि वापसी होना मुश्किल होता जा रहा है? मुलायम​ सिंह को उनकी सहमति के बिना अध्यक्ष के पद से हटाकर मार्गदर्शक का पद देना आखिर मुलायम की छवि को भी कमजोर करता है. रही बात राष्ट्रपति बनने की तो यह हजम कर पाना थोड़ा मुश्किल लगता है कि आने वाले यूपी चुनावों में स्थिति अच्छी देखते हुए भी मुलायम कलह को बढ़ावा देकर पार्टी को कमजोर बना देंगे.
नाटकीय झगड़ा
राजनीतिक गलियारों में सबसे ज्यादा संभावना इस बात की लगाई जा रही है कि सपा में हो रहा सारा झगड़ा पहले से ही तय किया हुआ है. वहीं, इस नाटक के रचियता खुद सपा मुलायम सिंह यादव हैं. इस नाटकीय झगड़े को रचने का कारण अखिलेश को एक शहीद बेटे और नेता की भूमिका में लाना है, ताकि यूपी चुनाव में वह भावनात्मक आधार पर पर भी वोट बटोर सकें और पार्टी में मजबूत छवि बना सकें.
वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि मुलायम इतने कमजोर नेता नहीं हैं. अगर वह अपने बेटे को पार्टी से निकाल सकते हैं, तो शिवपाल को भी एक झटके में बाहर कर सकते हैं. लेकिन, ऐसा न करना भी कई सवाल खड़े करता है? इस झगड़े ने अखिलेश को शक्ति प्रदर्शन का मौका दिया है और उन्हें एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित कर दिया है. इस पारिवारिक झगड़े में अंत में सबसे खुश होने वाले भी मुलायम ही होंगे. भले ही वह अभी हारते हुए दिख रहे हों लेकिन कहीं न कहीं एक पिता जीत रहा है.
दो पीढ़ियों का संघर्ष
इस समाजवादी झगड़े को दो पीढ़ियों का संघर्ष भी बताया जा रहा है. मुलायम और ​अखिलेश के बीच दूरियों के चर्चा पहले से होती रही हैं. अखिलेश यादव साल 2014 से अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुटे हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि अखिलेश यूपी के मुख्यमंत्री होते हुए भी सरकार और पार्टी पर पूरी पकड़ नहीं रखते हैं. यह भी कहा जाता रहा है कि यूपी का एक सीएम नहीं बल्कि साढ़े चार सीएम हैं. इन चाढ़े चार में अखिलेश को आधा मुख्यमंत्री माना जाता रहा है. बाकी चार में मुलायम सिंह, शिवपाल यादव, आजम खान और रामगोपाल का नाम शामिल है.
इसका कारण यह रहा है कि अखिलेश के फैसलों को बाकी चार लोग किसी न किसी स्तर पर प्रभावित करते रहे हैं. मुलायम सिंह यादव खुद कई बार अखिलेश सरकार को सही तरह काम न करने के लिए डांट लगाते दिखे हैं. ऐसे में केवल राजनीतिक नहीं बल्कि निजी कारण भी इस घमासान की वजह हो सकते हैं. एक तरफ अखिलेश का मुख्यमंत्री होते हुए अपने पद के अनुरूप शक्ति पाने और अपने दम पर पार्टी को आगे ले जाने की चाह और दूसरी तरफ अपने ही सामने पले-बढ़े बेटे और भतीजे को खुद पर हावी होते देखना खटास का कारण बन जाए, यह मुश्लिक नहीं.
मुलायम सिंह और अखिलेश के काम करने के तरीके में भी अंतर दिखता रहा है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मुलायम आपराधिक रिकॉर्ड वाले नेताओं को टिकट देते आए हैं और देना भी चाहते हैं. लेकिन, अखिलेश पार्टी की गुंडा छवि को बदलना चाहते हैं. मुलायम कई बार रेप को लेकर महिलाओं के लिए अपमानजनक बयान दे चुके हैं. वहीं, अखिलेश राज्य में महिलाओं के लिए हेल्पलाइन शुरू करते हैं. मुलायम धर्म और जाति की राजनीति की छवि को मजबूत रखना चाहते हैं लेकिन अखिलेश एक आधुनिक और तकनीक पंसद युवा की छवि बनाना चाहते हैं.
मुलायम कई मौकों पर पार्टी में अपने योगदान को गिनाने से भी पीछे नहीं हटे हैं. शुक्रवार को हुई प्रेस कांफ्रेंस में मुलायम सिंह के बयान में भी इसकी झलक देखने को मिली थी. उन्होंने कहा था कि राम गोपाल अखिलेश का भविष्य खराब कर रहा है लेकिन अखिलेश यह नहीं समझ पा रहा है. कौन उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहता था? मैंने ये खुद किया. मैंने सोचा कि क्यों न यह अभी किया जाए. क्या पता बाद में मौका मिले या न मिले. उन्होंने कहा कि वह बताएं क्या किसी ने अपने बेटे के लिए इतनी बड़ी चीज की है. पूर भारत में और किसी भी पार्टी ने? क्या वह इन लोगों से कम यात्रा करते हैं? क्या कम लोगों से मिलते हैं. राम गोपाल ने अखिलेश का भविष्य बर्बाद कर दिया.
हालांकि, कई अनुमानों के बावजूद कुछ भी दावा करना संभव नहीं है. इसलिए इस समाजवादी झगड़े की हकीकत जानने के लिए भविष्य का इंतजार करना ही होगा. वहीं, इसके परिणाम यूपी चुनावों के बाद साफ तौर पर समाने आ जाएंगे.
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