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संजय गांधी ने एक पार्टी में मां इंदिरा गांधी को मारे थे 6 थप्पड़ !

नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के उलझे हुए रिश्तों पर पुलित्जर पुरस्कार विजेता पत्रकार लुईस एम सिमॉन्स ने एक सनसनीखेज खुलासा किया था जो उस समय दिल्ली में अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट के रिपोर्टर थे. खुलासा था- संजय गांधी ने इंदिरा गांधी को 6 थप्पड़ मारे.
अंग्रेजी न्यूज़ वेबसाइट स्क्रॉल ने लुईस एम सिमॉन्स का उस थप्पड़ प्रकरण पर एक इंटरव्यू छापा है जिसके मुताबिक डिनर पार्टी में मौजूद दो लोगों में से एक ने उन्हें इस घटना के बारे में बताया और फिर दूसरे से उन्होंने इस घटना की तस्दीक की और तब जाकर इस खबर को अपने अखबार में लिखा.
इमरजेंसी लगने के पहले की है इंदिरा को थप्पड़ मारने की घटना
इंटरव्यू के मुताबिक इंदिरा गांधी को संजय द्वारा थप्पड़ मारने की यह घटना इमरजेंसी लगने से पहले और एक प्राइवेट डिनर पार्टी के दौरान की है. लुईस ये बताने में या पता करने में नाकाम रहे कि संजय ने अपनी मां के साथ ऐसा क्यों किया लेकिन दो अलग-अलग प्रत्यक्षदर्शियों से इस घटना की पुष्टि करने के बाद उन्होंने इसे खबर बना दिया.
इंदिरा गांधी को संजय गांधी के थप्पड़ की खबर देश के किसी अखबार में नहीं छपी क्योंकि उस वक्त तक इमरजेंसी के साथ ही सेंसरशिप लग चुका था लेकिन विदेशी अखबारों में यह खबर खूब छपी. बाद के दिनों में कुछ भारतीय लेखकों ने इंदिरा और संजय के रिश्तों पर लिखी किताब में इस खबर और उस पर प्रतिक्रिया का जिक्र जरूर किया.
स्क्रॉल को इंटरव्य में लुईस ने कहा है कि घटना के बारे में बताने वाले उनके दोनों सूत्र बहुत ही भरोसेमंद लोग हैं और इस वक्त भी हैं. जाहिर है कि इंदिरा-संजय की मौजूदगी वाली डिनर का न्योता पाने वाले शख्स कोई आम-आवाम टाइप के आदमी तो रहे नहीं होंगे. लुईस उनके नाम का खुलासा करने को तैयार नहीं हैं और कहते हैं कि वो अपने पेशे और सूत्र को धोखा नहीं दे सकते.
लुईस को इंदिरा गांधी सरकार ने देश से बाहर निकाल फेंका था
लुईस ने यह खबर तब लिखी जब इमरजेंसी लगने से पहले ही उनको वाशिंगटन पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट की वजह से गुस्साई इंदिरा गांधी सरकार ने पांच घंटे के अंदर देश से बाहर निकाल फेंका था और वो बैंकॉक पहुंच गए थे. वो खबर थी- सेना के लोग नहीं चाहते कि इमरजेंसी लगे जबकि इंदिरा अड़ी हुई हैं. थप्पड़ वाली खबर इमरजेंसी लगने के बाद छपी थी जबकि घटना उससे पहले की थी.
लुईस को देश से बाहर पहुंचाने गई पुलिस ने सारे नोटबुक जब्त कर लिए थे. इमरजेंसी खत्म होने के बाद मोरारजी देसाई सरकार ने उन्हें वापस बुलाया तो वापस मिले नोटबुक में कई नाम पर लाल स्याही चली हुई थी.
गौर से देखने पर पता चला कि वो सारे लोग इमरजेंसी के दौरान जेल में डाले गए थे. तभी से लुईस ने ये तय कर लिया कि वो किसी खबर पर काम करने के दौरान किसी का नाम नोट नहीं करेंगे.
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