नई दिल्ली. सीपीआईएम के नेता प्रकाश करात का मानना है कि मोदी सरकार निरंकुश जरूर है लेकिन ‘फासिस्ट’ नहीं. उनके इस बयान के बाद से वामपंथी नेताओं और पार्टियों में एक बार फिर से गहरे मतभेद उजागर हो गए हैं.
गौरतलब है कि प्रकाश करात का बयान उस समय आया है जब वामपंथी पार्टियों से जुड़े छात्र संगठन जेएनयू में मोदी सरकार पर फासिस्ट होने का आरोप लगाकर चुनाव में दो-दो हाथ कर रहे थे और उनको इसमें सफलता भी मिली है.
लेकिन छात्र संघ चुनाव से ठीक पहले अंग्रेजी अखबार में छपी उनकी इस राय से समूची वामपंथी पार्टियां सकते में हैं क्योंकि आरएसएस-भाजपा के लिए इसी ‘फासिस्ट’ शब्द का इस्तेमाल कर लेफ्ट पार्टियां राजनीति करती आई हैं.
कन्हैया ने किया था विरोध
प्रकाश करात के इस बयान पर वामपंथी नेताओं और जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने भी आलोचना की. कन्हैया ने कोलकाता में आयोजित एक सभा में साफ-साफ कहा ‘ एक वामपंथी बुजुर्ग नेता जो कि जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष भी हैं, ने कहा है कि मोदी सरकार निरंकुश है लेकिन फासिस्ट नहीं है. मेरा उन कामरेड से कहना है कि अगर वह और लड़ना नहीं चाहते हैं तो रिटायर हो जाएं और न्यूयॉर्क चले जाएं. हम अपनी लड़ाई खुद लड़ लेंगे.’
प्रकाश करात और सीताराम येचुरी में मतभेद
यह बात किसी से छिपी है नहीं है कि सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी और प्रकाश करात के बीच गहरे मतभेद हैं. जहां सीताराम येचुरी का मानना है कि बीजेपी आरएसएस के साथ मिलकर देश में फासिस्म को बढ़ावा दे रही है. वह देश में फासीवाद को बढ़ावा देकर हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती हैं. इसलिए उसको रोकने के लिए कांग्रेस का साथ देने में कई हर्ज नहीं है.
वहीं प्रकाश करात इस मामले मे अलग राय रखते हैं उनका कहना है कि मोदी सरकार निरंकुश जरूर है लेकिन वह अभी फासीवाद की ओर नहीं बढ़ रही है. लेकिन कांग्रेस और बीजेपी एक ही तरह की आर्थिक और सामाजिक नीतियों को बढ़ावा देते हैं. इसलिए कांग्रेस और बीजेपी में कोई फर्क नहीं है और बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस का साथ देने की जरूरत नहीं है. करात ने इससे पहले पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाल में सीपीआईएम का कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने के फैसले का भी विरोध किया था. ये फैसला सीताराम येचुरी ने ही लिया था.
मतभेद होना कोई नई बात नहीं
वामपंथी नेताओं में आपसी मतभेद कोई नहीं बात नहीं है. 1996 में भी जब संयुक्त मोर्चा की सरकार में ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनने का ऑफर दिया गया था तो उस समय भी कई मतभेद सामने आ गए थे. जिसके चलते ज्योति बसु प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए जिसे उन्होंने ‘ऐतिहासिक भूल’ करार दिया था.
क्या है फासीवाद
फासीवाद का शब्द का इस्तेमाल इटली के तानाशाह मुसोलिनी हिटलर की नाझी पार्टी के लिए इस्तेमाल किया जाता था. फासीवाद को एक विचाराधारा के रूप में परिभाषित किया गया. जिसके बारे में कहा जाता है कि किसी तानाशाह की अगुवाई में विरोधियों को कुचल दिया जाए. तानाशाह ही सर्व शक्तिमान बनना चाहे. उग्र राष्ट्रवाद के नाम पर मार-काट मचा दे.