चंडीगढ़. हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को आज शनिवार को सुबह की किरण जगह सीबीआई का चेहरा देखना पड़ा. सीबीआई ने 4 बजे हुड्डा के 20 ठिकानों पर छापेमारी की.
सबसे पहले आपको बता दें कि यह छापेमारी 2004-2007 के बीच भूमि आवंटन में हुए घोटाले के सिलसिले में हुई जिसमें सीबीआई ने हु्ड्डा के रोहतक, गुड़गांव, पंचकूला समेत दिल्ली में छापेमारी की. अब सवाल यह उठता है कि आखिर सीबीआई को अचानक छापा मारने पर क्यों मजबूर होना पड़ा? आइए इस पर डालते हैं एक नजर.
1. यह घोटाला अगस्त 2004 से लेकर अगस्त 2007 के बीच हुआ था जिसमें तत्कालिन हुड्डा की सरकार ने करीब 400 एकड़ जमीन बिल्डरों को मनमाने कीमत पर बेच दिया. ये सारी जमीनें मानेसर, नौरंगपुर और लखनौला के किसानों और मालिकों की थीं. विरोध करने पर सरकार ने किसानों को भूमि अधिग्रहण का डर भी दिखाया.
2. इस पूरे कांड में हरियाणा सरकार ने जिले के इन सभी गावों की 912 करोड़ की जमीन के अधिग्रहण के लिए अधिसूचाना भी जारी कर दिया. हालांकि इसके ठीक बाद बिल्डरों ने जमीन के मालिकों से इस अधिसूचना का डर दिखाकर कम कीमतों पर जमीन पर कब्जा किया.
3. इसके बाद 24 अगस्त 2007 में उद्योग निदेशालय ने इस भूमि को अधिग्रहण प्रक्रिया से बाहर निकाल दिया, जबकि भूमि को अधिग्रहण प्रक्रिया से बाहर करना सरकारी नीति का उल्लंघन है. इससे साफ जाहिर होता है कि यह फैसला भूमालिकों के बजाए बिल्डरों, उनकी कंपनियों और एजेंटों के हित को ध्यान में रखकर किया गया है.
4. 2015 में मनोहर लाल खट्टर ने इसकी जांच सीबीआई को सौंपी, जिसमें आरोप यह भी लगाया गया है कि इस करीब 400 एकड़ भूमि को मात्र 100 करोड़ रुपये में बेचा गया, जबकि उस समय इसकी बाजार कीमत प्रति एकड़ चार करोड़ रुपये से भी अधिक थी. इस तरह कुल मिलाकर 1600 की जमीन को कौड़ी के भाव यानी महज 100 करोड़ में बेचा गया.
5. इस पूरे कांड में गुड़गांव के गांव मानेसर, नौरंगपुर और लखनौला के भूमालिकों को 1500 करोड़ रुपये का घाटा हुआ.