BREAKING ANALYIS: नितिन पटेल पर क्यों भारी पड़े विजय रुपानी

इंडिया न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने 2 अगस्त को ही फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा था और सटीक-सटीक अनुमान लगाया था कि विजय रुपानी ही गुजरात के नए सीएम होंगे. सारे सीएम दावेदारों की दावेदारी का पोस्टमार्टम करता वो पोस्ट मौजूदा संदर्भ में संपादित करके पेश है.

Advertisement
BREAKING ANALYIS: नितिन पटेल पर क्यों भारी पड़े विजय रुपानी

Admin

  • August 5, 2016 1:17 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. गुजरात में आनंदीबेन पटेल की जगह पर सीएम बनने की रेस में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विजय रुपानी ने कद्दावर नेता नितिन पटेल को पछाड़ दिया है. विजय रुपानी ने सीएम चुन जाने से पहले ही ये कहकर रेस से बाहर जाने का संकेत दिया था कि वो पार्टी संगठन के लिए काम करना चाहेंगे लेकिन सहमति बस उनके नाम पर बन पाई.
 
इनख़बर से जुड़ें | एंड्रॉएड ऐप्प | फेसबुक | ट्विटर
 
सीएम पद के लिए बीजेपी में चार नाम चल रहे थे. पुरुषोत्तम रुपाला, नितिन पटेल, सौरभ पटेल और विजय रुपानी. कुछ हलकों में अमित शाह का नाम भी उठा था लेकिन उसका कोई तुक बनता नहीं था. गुजरात की मौजूदा स्थिति और बीजेपी की ज़रुरत को देखते हुए प्रदेश अध्यक्ष विजय रुपानी ही वो थे जिनके नाम पर सहमति बन सकती थी. 
 
 
एक तो ये कि रुपानी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बहुत खास है. संघ का भरोसा भी रुपानी पर हमेशा रहा है जो बीजेपी में सोने पे सुहागा जैसी चीज है. दूसरी ये कि प्रशासनिक मामलों में जिस सख्ती की कमी आनंदीबेन में दिख रही थी, उसकी भरपाई रुपानी का प्रशासनिक कौशल कर सकता है. आनंदीबेन सरकार में कई महकमों को चलाने का अच्छा अनुभव उनके पास है.
 
 
तीसरी लेकिन अहम वजह ये है कि रुपानी राजकोट से आते हैं, यानी सौराष्ट्र का वो इलाका जिसे पटेलों का गढ़ माना जाता है. बीजेपी यहां से मुख्यमंत्री बनाती है तो इस इलाके के असंतोष को काफी हद तक कम कर देगी. सौरभ पटेल की चर्चा इसलिए होती थी कि वे गुजरात सरकार के सबसे पढे लिखे मंत्री हैं. अमेरिका से एमबीए किया है, सोलर एनर्जी पर गुजरात में अच्छा काम किया है और अंबानी परिवार से बढ़िया रिश्ता है.
 
 
स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल को अगर चुना जाता तो इसलिए कि वे आनंदीबेन सरकार में नंबर दो पर रहे थे. नितिन पटेल खुद कॉटन और ऑयल के बड़े कारोबारी है इसलिए उनके सीएम बनने से कारोबारी जमात और गुजरात में निवेश के लिए अच्छा मैसेज जाता. लेकिन दिक्कत ये थी कि अपनी बिरादरी यानी पटेलों में ही नितिन की कोई खास साख नहीं है और इससे सरकार या बीजेपी की समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा था.
 
 
पुरुषोत्तम रुपाला बेशक उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र के कद्दावर पाटीदार नेता हैं लेकिन उनकी परेशानी ये है कि अमित शाह और आनंदीबेन दोनों से उनकी नहीं बनती. हार्दिक पटेल की अगुआई में पाटीदारों के आंदोलन के दौरान हाथ पर हाथ रखकर रुपाला ने आनंदीबेन और अमित शाह की मुश्किलें बढ़ा रखी थी. 2006 में जब रुपाला गुजरात बीजेपी अध्यक्ष थे, तब भी मोदी से तो उनकी बनती थी लेकिन शाह और आनंदीबेन के लिए वे परेशानी खड़ी करते रहते थे.
 
ऐसे में विजय रुपाणी सबसे बेहतर विकल्प दिख थे और 2 अगस्त को उनका जन्मदिन भी था. बीजेपी उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री पद का तोहफा हैप्पी बिलेटेड बर्थडे कहकर दे दिया है. 
 
 
आनंदी बेन ने फेसबुक पर पद छोड़ने की इच्छा ज़ाहिर की थी जो अपनी तरह की पहली घटना थी. गुजरात में बीजेपी अगले साल हारती है तो प्रधानमंत्री मोदी के लिए वो सबसे बड़ी हार होगी. गुजरात में अगर हार हुई तो 2019 की मोदी की लड़ाई को भी कमजोर करेगी. 
 
आनंदी बेन के हटने के पीछे गुजरात के हालात ही हैं जिसे वो काबू नहीं कर पाईं और बीजेपी के लिए ज़मीन कमज़ोर पड़ती गई. हार्दिक पटेल भले जेल में रहे लेकिन पाटीदारों का आंदोलन साल भर से कमजोर पड़ा नहीं. उना की घटना के बाद दलितों का मोर्चा भी बीजेपी के खिलाफ दिखने लगा है. पिछले साल लोकल चुनाव में हार बीजेपी को पहले ही सता रही थी. 
 
 
गुजरात में तकरीबन 25 साल बाद कांग्रेस ने लोकल चुनावों के जरिए जीत का इस तरह का स्वाद चखा था. ऐसे में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के पास इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं था कि गुजरात में कोई और विकल्प आज़माया जाए.
 

Tags

Advertisement