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HC के फैसले के बाद केंद्र के साथ बवाल बंद करेंगे केजरीवाल ?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उप राज्यपाल नजीब जंग के साथ राजनीतिक जंग के बाद जो कानूनी लड़ाई छेड़ी थी, उसमें वो हार गए हैं. दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने केजरीवाल को समझा दिया है कि उप राज्यपाल ही दिल्ली के असली बॉस हैं.

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  • August 4, 2016 3:03 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उप राज्यपाल नजीब जंग के साथ राजनीतिक जंग के बाद जो कानूनी लड़ाई छेड़ी थी, उसमें वो हार गए हैं. दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने केजरीवाल को समझा दिया है कि उप राज्यपाल ही दिल्ली के असली बॉस हैं.
 
9 याचिकाएं, एक फैसला
 
दिल्ली हाईकोर्ट में केजरीवाल सरकार और 8 अन्य लोगों की याचिका पर सुनवाई हो रही थी. सभी याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि उप राज्यपाल दिल्ली सरकार के फैसलों की अनदेखी कर रहे हैं, जो संविधान के आर्टिकल 339(एए) और आर्टिकल 163 के खिलाफ है.
 
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दिल्ली सरकार और बाकी याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि जैसे देश के बाकी राज्यों में राज्यपाल सरकार की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं, वैसे ही दिल्ली के उप राज्यपाल भी हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया.
 
दिल्ली के प्रशासक उप राज्यपाल हैं- हाईकोर्ट
 
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि दिल्ली संवैधानिक तौर पर केंद्र शासित क्षेत्र है, जिसका प्रशासन राष्ट्रपति के हाथ में है. राष्ट्रपति ही दिल्ली के उप राज्यपाल की नियुक्ति करते हैं. उप राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर दिल्ली के प्रशासक हैं.
 
 
हाईकोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली सरकार उप राज्यपाल को सलाह दे सकती है, लेकिन उप राज्यपाल उसे मानने के लिए बाध्य नहीं हैं. विवाद की स्थिति में उप राज्यपाल दिल्ली सरकार के फैसलों को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं और राष्ट्रपति का जो भी फैसला हो, वही दिल्ली में लागू हो सकता है.
 
 
दिल्ली के उप राज्यपाल की स्थिति बाकी दूसरे राज्यों के राज्यपालों की स्थिति से अलग है. दिल्ली के उप राज्यपाल दिल्ली सरकार की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं.
 
नौकरशाह दिल्ली सरकार के अधीन नहीं हैं
 
केजरीवाल सरकार की उप राज्यपाल के साथ कानूनी लड़ाई का एक पहलू दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर था. हाईकोर्ट ने इस मामले में साफ कहा है कि दिल्ली में नौकरशाही दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है. दिल्ली में राज्य लोक सेवाओं और राज्य लोक सेवा आयोग का वजूद नहीं है.
 
केंद्रीय कर्मचारियों की जांच नहीं कर सकती एसीबी
 
हाईकोर्ट ने दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांच का दायरा भी साफ कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि एसीबी के लिए जो नियम और प्रक्रिया तय है, उसके तहत एसीबी सिर्फ दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले विभागों के कर्मचारियों की भ्रष्टाचार की जांच कर सकती है.
 
केंद्र सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों की जांच करने का अधिकार एसीबी को नहीं है. एसीबी भी एक पुलिस स्टेशन है, जिसका दायरा आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत निश्चित है.
 
उप राज्यपाल की मंजूरी बिना जांच आयोग नहीं
 
हाईकोर्ट ने ये भी कहा है कि दिल्ली सरकार को ये अधिकार नहीं है कि वो उप राज्यपाल की सहमति के बिना किसी जांच आयोग का गठन करे. इसलिए दिल्ली सरकार ने सीएनजी फिटनेस सर्टिफिकेट घोटाले और डीडीसीए घोटाले की जांच के लिए जो आयोग बनाया है, वो अवैध है.
 
डिस्कॉम में डायरेक्टर्स की तैनाती भी अवैध
 
हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की हिस्सेदारी वाली तीनों बिजली कंपनियों में डायरेक्टर्स की नियुक्ति को भी अवैध करार दिया, क्योंकि डायरेक्टरों को नॉमिनेट करते समय दिल्ली सरकार ने उप राज्यपाल से राय नहीं ली.
 
दिल्ली में ज़मीन का सर्किल रेट बढ़ाना भी अवैध
 
हाईकोर्ट ने दिल्ली में ज़मीनों का सर्किल रेट बढ़ाने के लिए केजरीवाल सरकार की अधिसूचना को भी अवैध करार दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि उप राज्यपाल की मंजूरी के बिना दिल्ली सरकार सर्किल रेट और स्टांप ड्यूटी की दर तय नहीं कर सकती.
 
अब क्या करेंगे केजरीवाल ?
 
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद ये साफ हो गया है कि दिल्ली में अधिकारों की जंग में केजरीवाल गलत हैं और उप राज्यपाल सही. ऐसे में ये सवाल बड़ा हो गया है कि केजरीवाल अब क्या करेंगे ?
 
वैसे दिल्ली सरकार के कानून मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को केजरीवाल सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी, लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया तो..?
 
पूर्ण राज्य का शोर या समन्वय से शांति ?
 
फिलहाल केजरीवाल के पास दो रास्ते हैं. या तो वो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा दिलाने के लिए राजनीतिक शोर मचाएं और सुप्रीम कोर्ट में अधिकारों की जंग जारी रखें या फिर केंद्र सरकार और उप राज्यपाल के साथ तालमेल बिठाकर शांतिपूर्वक सरकार चलाएं.
 
 
केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के मद्देनज़र इस बात की संभावना कम ही है कि वो दिल्ली की अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह केंद्र के साथ तालमेल बिठा कर चलेंगे.
 
ज्यादा संभावना इसी बात की है कि केजरीवाल मनमाने फैसले करें, उप राज्यपाल को उन फैसलों पर रोक लगाने के लिए उकसाएं और फिर इश्तहार छपवा कर शोर मचाएं कि उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा.

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