नई दिल्ली. नवजोत सिंह सिद्धू की चुप्पी आखिरकार टूटी. राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद पहली बार सिद्धू ने दिल का गुबार निकाला और बीजेपी का चेहरा उसी गुबार की गर्द से भर गया कि पंजाब से सिद्धू को दूर रखने की वजह क्या थी ?
सिद्धू मुहावरों में बात करने के लिए मशहूर हैं लेकिन राज्यसभा से इस्तीफे की वजह पर उन्होंने बिना लाग-लपेट के एक ही बात कही- “मुझे कहा गया था कि पंजाब की तरह मुंह भी मत करना. मेरे लिए पार्टी पंजाब से ऊपर नहीं है. अपने निजी स्वार्थों के लिए मैं उन लोगों को नहीं छोड़ सकता, जिन्होंने मुझे वोट दिया.”
सिद्धू का आरोप है कि एक बार नहीं, बल्कि तीन-चार बार उन्हें पंजाब से दूर रहने को कहा गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें कुरुक्षेत्र या वेस्ट दिल्ली सीट ऑफर की गई, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया क्योंकि 2004 में उन्होंने अमृतसर के लोगों से वादा किया था कि वो अमृतसर को कभी नहीं छोड़ेंगे, अगर चुनाव लड़ेंगे तो सिर्फ अमृतसर से.
मोदी लहर में डूबे सिद्धू !
सिद्धू को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कट्टर समर्थक माना जाता रहा है. मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने से पहले से सिद्धू उनके मुरीद थे. राज्यसभा में जाने के बाद भी सिद्धू ने कहा था कि वो खुश हैं कि उन्हें उनके ‘हीरो’ ने ये जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन अब लगता है कि सिद्धू का दिल उनके हीरो ने ही दुखाया.
सिद्धू का कहना है- “मोदी लहर आई तो उसने सबके साथ मुझे भी डुबो दिया. मुझे पंजाब या पार्टी में से एक को चुनने को कहा गया, मैंने पंजाब चुना. जहां पंजाब का हित होगा, सिद्धू साथ खड़ा मिलेगा.” सिद्धू चूंकि खुद को अमृतसर से जोड़कर ही देखते हैं, तो क्या इसका मतलब ये है कि सिद्धू मोदी लहर में भी अमृतसर सीट ना जीत पाने का दर्द बयां कर रहे हैं ?
अमृतसर और सिद्धू का इमोशनल कनेक्शन
पंजाब और पंजाबियत की पूरी दुनिया में सबसे बड़ी पहचान अमृतसर है. मूलरूप से पटियाला के रहने वाले सिद्धू ने अमृतसर को और अमृतसर ने सिद्धू को किस कदर अपनाया, इसकी मिसाल गिनाना वो कभी नहीं भूलते. मीडिया के सामने भी सिद्धू ने याद दिलाया कि अमृतसर और सिद्धू का नाता कितना गहरा है.
बकौल सिद्धू, “2004 में पाकिस्तान में क्रिकेट कमेंट्री कर रहा था, जब मुझे बीजेपी ने अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा. सिर्फ 17 दिन बचे थे. मैंने 14 दिन में इलेक्शन लड़ा. सामने 6 बार का कांग्रेस का एमपी था. 14 दिन में अमृतसर के लोगों ने सवा लाख वोट से जिताया. अमृतसर को वचन दिया कि जब तक आपका एमपी हूं, पटियाला नहीं जाऊंगा. घर वाली का मुंह नहीं देखा, बच्चों का मुंह नहीं देखा.”
उन्होंने कहा, “मेरे पर केस पड़ा तो इस्तीफा दिया और मोरल ग्राउंड पर दूसरी बार अमृतसर से जीता. तीसरा इलेक्शन (2009 लोकसभा चुनाव) नॉर्थ इंडिया की 50 सीटों पर बीजेपी का अकेला सांसद सिद्धू था. हारी हुई सीट जीतकर दे दी.”
सिद्धू ने लगे हाथ ये भी याद दिलाया कि अमृतसर से खुद जीतने के साथ-साथ उन्होंने 2012 के विधानसभा चुनाव में अमृतसर विधानसभा सीट भी बीजेपी के लिए जीती. उनकी पत्नी नवजोत सिंह कौर बीजेपी के टिकट पर विधायक चुनी गईं.
सिद्धू राज्यसभा से इस्तीफा देकर पंजाब-भक्ति का तराना गा रहे हैं लेकिन अब तक ये साफ नहीं है कि वो पंजाब की ‘सेवा’ किसके झंडे तले करेंगे? सिद्धू के इस्तीफे के साथ ही ये खबर उड़ने लगी थी कि वो पंजाब में आम आदमी पार्टी का चेहरा बनाए जा सकते हैं लेकिन सिद्धू ने इस सस्पेंस से परदा नहीं उठाया.
कहीं पंजाब बीजेपी में पंगा तो नहीं होगा ?
सिद्धू ने पंजाब में बीजेपी के उन तमाम नेताओं की आवाज़ बुलंद कर दी है, जो चाहते हैं कि बीजेपी पंजाब में बादल के साए से बाहर निकले. वर्षों से पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन की गांठ बीजेपी के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के गले में इस कदर फंसी है कि उन्हें घुटन महसूस हो रही है. मिसेज़ एंड मिस्टर सिद्धू पहले भी अकाली दल के खिलाफ बोलते रहे हैं और अब सिद्धू ने जिस अंदाज़ में खुद को पंजाब का वफादार बताया है, उससे पंजाब में बीजेपी की परेशानी बढ़ सकती है.
हरियाणा की तरह पंजाब में ‘एकला चलो’ क्यों नहीं ?
पंजाब में बीजेपी के सामने हालात वैसे ही हैं, जैसे 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा में थे. हरियाणा में हाशिए पर समझी जाने वाली बीजेपी गठबंधन के बिना चुनाव नहीं लड़ती थी और हरियाणा के बीजेपी नेता चाहते थे कि पार्टी अपने दम पर खड़ी हो.
मजबूरी में बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया, क्योंकि गठबंधन के लिए हरियाणा जनहित कांग्रेस जैसी छोटी पार्टी के अलावा कोई विकल्प नहीं था. मोदी लहर और बीजेपी कार्यकर्ताओं के उत्साह का नतीजा चौंकाने वाला था. हरियाणा में बीजेपी ने अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई.
पंजाब के ढेर सारे बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी लग रहा है कि अगर हरियाणा में चमत्कार हो सकता है, तो पंजाब में क्यों नहीं? अगर बीजेपी को बहुमत ना भी मिला, तो कम से कम से सभी 117 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का संगठन तो खड़ा हो ही जाएगा. शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन करके 23 सीटों पर लड़ने से तो बेहतर होगा कि 117 सीटों पर अकेले लड़ा जाए.
सिद्धू के लिए बीजेपी के दरवाज़े खुले हैं क्या ?
सिद्धू के इस्तीफे और क्रांतिकारी तेवर के बाद बीजेपी धर्मसंकट में है. आलम ये है कि अब तक बीजेपी यही नहीं बता पा रही है कि सिद्धू बीजेपी में हैं या नहीं?
पंजाब में बीजेपी के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री विजय सांपला कह रहे हैं कि सिद्धू ने बीजेपी नहीं छोड़ी है. सिद्धू की पत्नी डॉ नवजोत कौर ने ज़रूर कहा था कि राज्यसभा से इस्तीफे का मतलब है बीजेपी से इस्तीफा, लेकिन सिद्धू ने अपनी ज़बानी ये बात नहीं कही है.
जानकार मानते हैं कि बीजेपी फिलहाल सिद्धू के अगले कदम का इंतज़ार कर रही है. सिद्धू का प्रधानमंत्री मोदी के साथ जो जुड़ाव है, उसे देखते हुए उम्मीद ये भी की जा रही है कि शायद सिद्धू की मुराद पूरी करते हुए उन्हें पंजाब में अपने मन की राजनीति करने की छूट दे दी जाए, लेकिन ऐसा तभी होगा, जब सिद्धू पंजाब में बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं को अपने साथ खींचने में कामयाब हों.
अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर सिद्धू को सोचना होगा कि वो पंजाब की जिस सेवा के लिए राज्यसभा छोड़ आए हैं, उसके लिए उनके पास विकल्प क्या है?