Categories: राजनीति

INSIDE स्टोरी: AAP के रनवे पर सिद्धू की लैंडिंग में देरी क्यों ?

नई दिल्ली. बीजेपी के बहुत ज्यादा चर्चित राजनेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने सोमवार को संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन जब राज्यसभा की तीन महीने पुरानी सदस्यता से इस्तीफा दिया तो लगा था कि शाम होते-होते वो आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाएंगे लेकिन उस शाम की सुबह मंगलवार रात तक नहीं हुई.
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2014 के आम चुनाव में अपनी अमृतसर लोकसभा सीट अरुण जेटली के लिए छोड़ने को मजबूर किए गए सिद्धू तब से नाराज़ चल रहे थे. नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन महीने पहले ही राष्ट्रपति के मनोनीत कोटे से उन्हें राज्यसभा में भेजा था.
राज्यसभा जाने वक्त सिद्धू ने तब कहा था कि मेरे हीरो ने मुझे ये जिम्मेदारी सौंपी है. हीरो यानी नरेंद्र मोदी. लेकिन इस्तीफा देने से पहले सिद्धू ने अपने हीरो तो दूर, हीरोइन (पत्नी नवजोत कौर सिद्धू) से भी बात नहीं की. कम से कम सिद्धू की विधायक बीवी का तो यही दावा है. नवजोत कौर ने ये जरूर साफ कर दिया है कि सिद्धू अब भाजपा में नहीं हैं.
सूत्रों का कहना है कि नवजोत सिंह सिद्धू को मनाने के लिए पार्टी ने राज्यसभा भेजने और मोदी सरकार में मंत्री बनाने का ऑफर दिया था जिसके बाद वो मान गए थे. लेकिन इस डील पर अमल में लोचा तब सामने आ गया जब पता चला कि आज तक राष्ट्रपति के मनोनीत राज्यसभा सदस्यों में कोई किसी भी सरकार में कभी मंत्री नहीं बना.
ऐसा कोई नियम नहीं है कि राष्ट्रपति का मनोनीत राज्यसभा सदस्य केंद्र सरकार में मंत्री नहीं बन सकता लेकिन संसद और सरकार कई बार परंपरा की अनदेखी नहीं करती. यही वजह रही कि सिद्धू सांसद तो बन गए लेकिन मंत्री नहीं बन पाए और इस बात से वो इतने दुखी हुए कि उन्होंने बीजेपी को पंजाब में सबक सिखाने की कसम खा ली है. राज्यसभा से इस्तीफा उसकी शुरुआत है.
सिद्धू के इस्तीफे की खबर सामने आते ही आम आदमी पार्टी के पंजाब प्रभारी और राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह ने ट्वीट किया था, “नवजोत सिंह सिद्धू जी ने बीजेपी की राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर साहसिक कदम उठाया है, उनके फैसले का स्वागत करता हूं.”

संजय सिंह ने तो सिर्फ सिद्धू के फैसले का स्वागत किया था लेकिन पार्टी के संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने तो उनको सलामी ही दे डाली. केजरीवाल का ट्वीट था, “लोग तो राज्यसभा सीट के लिए अपना दाहिना हाथ तक दे देते हैं. कभी अपने राज्य को बचाने के लिए किसी सिटिंग एमपी को इस्तीफा देते देखा है? मैं सिद्धूजी के साहस को सलाम करता हूं.”

पंजाब के पार्टी संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर ने भी ट्वीटर का रुख किया और नवजोत दंपति का स्वागत करते हुए लिखा, “आम आदमी पार्टी में नवजोत सिंह सिद्धू और नवजोत कौर का बहुत स्वागत है.”

सिद्धू के इस्तीफे की खबर के बाद केजरीवाल से लेकर सुच्चा सिंह तक के ट्वीट से ऐसा माहौल बना कि शाम तक केजरीवाल और सिद्धू एक-दूसरे के गले मिलते किसी मीडिया सम्मेलन में नज़र आएंगे और ये ऐलान हो जाएगा कि सिद्धू अब आम आदमी पार्टी के साथ हैं.
शाम बीत गई. रात बीत गई. मंगलवार की सुबह आ गई. दोपहर बीत गई. फिर अगली शाम भी बीत गई. सिद्धू चुप. आम आदमी पार्टी चुप. ना तो सिद्धू अपना स्वागत कराने आम आदमी पार्टी के दफ्तर पहुंचे और ना ही सिद्धू को सलामी देने केजरीवाल उनके घर गए.
यहां तक कि सोमवार को सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर के इस्तीफे की जो खबर थी उसे खुद नवजोत कौर ने मंगलवार को नकार दिया और कहा कि सिद्धू पूर्व भाजपाई हो गए हैं लेकिन वो भाजपा की विधायक हैं और अपने क्षेत्र में काम कर रही हैं.
सोमवार को ही संजय सिंह ने ये जरूर कहा था कि एक-दो दिन का वक्त लगेगा लेकिन मंगलवार को दोतरफा चुप्पी से सस्पेंस गहरा गया है कि बीजेपी से पांव निकाल चुके सिद्धू का पांव आम आदमी पार्टी के अंगने में अब तक क्यों नहीं पड़ा.
आम आदमी पार्टी के अंदर और केजरीवाल के करीबी लोगों का कहना है कि सिद्धू के साथ पार्टी की तरफ से संजय सिंह ही बातचीत कर रहे हैं. इन लोगों का साफ कहना है कि ना तो सिद्धू ने सीएम पद का उम्मीदवार बनाने की कोई मांग रखी है और ना ही पार्टी ने उनसे कहा है कि वो सीएम के कैंडिडेट बनाए जाएंगे.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक सिद्धू की कुल जमा मांग इस वक्त तक यही है कि उन्हें पंजाब चुनाव में पूरी तरह से प्रचार में इस्तेमाल किया जाए. पार्टी के नेताओं को लगता है कि सिद्धू अभी तो मुंह नहीं खोल रहे लेकिन जब प्रचार रंग पकड़ेगा और माहौल बनने लगेगा तो वो नई चाहत सामने रख सकते हैं जिसमें मुख्यमंत्री पद की मांग का होना अचरज की बात नहीं होगी.
पार्टी की तरफ से कोशिश यही हो रही है कि सिद्धू को लाने से पहले उनकी मौजूदा और भावी महत्वाकांक्षा का आकलन कर लिया जाए और उसके आधार पर पार्टी के फायदे में जो चीज हो, उसके लिए सिद्धू से हामी भरवाकर ही उन्हें शामिल किया जाए.
सिद्धू को पंजाब में सीएम कैंडिडेट बनाने की मीडिया में चल रही खबरों को अटकल बताते हुए सूत्रों ने कहा कि पार्टी में अभी तो ये ही तय नहीं हुआ है कि पार्टी पंजाब में सीएम कैंडिडेट देकर चुनाव लड़ेगी या बिना कैंडिडेट के.
पार्टी में ये भी बात उठ रही है कि गैर-इरादतन हत्या के आरोप में मिली सज़ा के खिलाफ अपील लड़ रहे सिद्धू को सीएम कैंडिडेट बनाना क्या राज्य में गलत संदेश नहीं देगा.
पार्टी के अंदर कई नेताओं ने केजरीवाल के सामने ये बात उठाई है कि जब पंजाब का चुनाव ऐसे ही पार्टी के पक्ष में दिख रहा है तो सिद्धू को कोई अहम जिम्मेदारी देने क्या ये संदेश नहीं देगा कि पार्टी भीड़ जुटाने वाले लोगों का जुगाड़ कर रही है.
दूसरी ये भी कि केजरीवाल जिस राज्यसभा सीट छोड़ने के लिए सिद्धू के साहस को सलाम कर रहे हैं, उनको सीएम कैंडिडेट बनाने से क्या ये संदेश नहीं जाएगा कि सिद्धू ने राज्यसभा की सदस्यता मुख्यमंत्री बनने की हसरत पूरी करने के लिए छोड़ी है.
सिद्धू निश्चित रूप से इस समय उहापोह में फंसे नज़र आ रहे हैं लेकिन उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि वो पंजाब में बीजेपी को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए बेताब हैं. ये सबको पता है कि सिद्धू की अकाली दल के नेताओं से बनती नहीं है.
उनकी विधायक पत्नी नवजोत कौर ने कहा भी था कि वो अकाली-बीजेपी गठजोड़ के साथ चुनाव नहीं लड़ेंगी. नवजोत पहले भी आम आदमी पार्टी की तारीफ खुलकर करती रही हैं.
आम आदमी पार्टी को भी ये पता है कि सिद्धू बीजेपी के अंदर कुछ नेताओं को अपनी राजनीतिक हैसियत दिखाना चाहते हैं और आम आदमी पार्टी से बेहतर और कोई विकल्प उनके सामने है नहीं.
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दो दिन लगे या चार दिन, आम आदमी पार्टी और सिद्धू के बीच डील तो हो जाएगी क्योंकि आम आदमी पार्टी को भी पंजाब में सिद्धू के रूप में एक स्टार प्रचारक मिल जाएगा जिसे पूरा पंजाब जानता है और जो अपने जुमले और छर्राटेदार भाषण से विरोधियों को बार-बार बाउंड्री के पार दौड़ाते रहेंगे.
फिलहाल के लिए तो बस यही सच है कि सिद्धू ने बीजेपी और राज्यसभा से जिस फ्लाइट को टेक ऑफ किया था उसे आम आदमी पार्टी के रनवे पर लैंड करने के लिए एटीसी का क्लीयरेंस नहीं मिला है. मौसम साफ हो जाए, विजिबलिटी बढ़िया हो जाए तो लैंडिंग हो जाएगी.
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