लखनऊ. उत्तर प्रदेश में बसपा को वापस सत्ता में लाने को मायावती ने इतना बड़ा मिशन बना लिया है कि छोटे भाई सुभाष कुमार के निधन के अगले ही दिन पहले से निर्धारित चुनाव तैयारी की समीक्षा बैठक टालने के बदले उसमें न सिर्फ शामिल हुईं बल्कि बैठक खत्म होने तक चेहरे पर इतने बड़े दुख को झलकने तक नहीं दिया.
लेकिन भाई को खोने का गम कोई कितने देर तब दबा सकता है. बैठक खत्म होते-होते मायावती भावुक हो गईं और फिर बैठक में अपनी नेता का मुरझाया चेहरा देखते ही कई नेता फफक पड़े. बैठक के बाद कई नेताओं ने कहा कि ऐसा सिर्फ मायावती ही कर सकती हैं कि परिवार से ऊपर देश और समाज को रखकर राजनीति करें.
दरअसल 9 जुलाई को मायावती के छोटे भाई सुभाष कुमार का दिल्ली से सटे नोएडा के एक अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था. मायावती ने चुनाव तैयारियों की समीक्षा के लिए 10 जुलाई को लखनऊ में पार्टी के पदाधिकारियों और को-ऑर्डिनेटरों की बैठक बुला रखी थी. मायावती ने बैठक को टाला नहीं और उसे निर्धारित तरीके से संपन्न कराया.
किसी को फटकार, किसी को नसीहत, बोली- चुनाव में लापरवाही न हो
मायावती ने चुनाव की तैयारियों में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं करने की सख्त हिदायत दी और समाज के बीच लगातार काम करते रहने का आदेश दिया.
बैठक खत्म होने का समय आया तो मायावती का सख्त दिल पसीज गया. नम आंखों से उन्होंने खुद ही सबको बताया कि छोटे भाई का निधन हो गया है और उनका शव घर में पड़ा है लेकिन चूंकि बैठक के लिए सब निकल चुके थे या पहुंच चुके थे इसलिए बैठक रद्द करने के बदले उन्होंने इसे तय तारीख और समय पर ही करने का फैसला किया.
मायावती बोलीं- परिवार बाद में है, मिशन सबसे पहले
मायावती ने बैठक में ये भी कहा कि उनके लिए परिवार बाद है और मिशन पहले. मायावती ने बाबा साहेब भीमराम आंबेडकर के बेटे के निधन की चर्चा करते हुए कहा कि जब बाबा साहेब को पूना पैक्ट के लिए जाना था तभी उनके बेटे का निधन हो गया था लेकिन बाबा साहेब पूना पैक्ट की मीटिंग में गए.
उन्होंने कहा कि उनके सामने भी भाई के निधन के बाद बाबा साहेब जैसा धर्मसंकट खड़ा हो गया था जिसमें उन्होंने मिशन को चुना और परिवार को पीछे रखा. मायावती ने कहा कि उनके लिए बाबा साहेब का सपना पूरा करना मिशन है और वो इस मिशन में पारिवारिक जवाबदेही की वजह से पीछे नहीं हटेंगी.