लखनऊ. लोकसभा चुनाव से पहले ही सियासी पारा हाई हो गई है, उत्तर प्रदेश में समीकरण में बदलाव होने लगे हैं. भले ही विधानसभा चुनाव में राजभर और भाजपा का मिलन न हो पाया हो लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले दोनों दलों का साथ आना लगभग तय है. इसी कड़ी में बीते दिनों सुभासपा प्रमुख […]
लखनऊ. लोकसभा चुनाव से पहले ही सियासी पारा हाई हो गई है, उत्तर प्रदेश में समीकरण में बदलाव होने लगे हैं. भले ही विधानसभा चुनाव में राजभर और भाजपा का मिलन न हो पाया हो लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले दोनों दलों का साथ आना लगभग तय है. इसी कड़ी में बीते दिनों सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की है. अब अगर राजभर भाजपा के साथ आते हैं तो पूर्वांचल के सियासी रण में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए नई मुश्किलें पैदा हो सकती हैं.
जिस तरह से यूपी में योगी सरकार और राजभर के साथ आने की संभावनाएं बन रही हैं उससे ये तो साफ़ है कि 2024 में पूर्वांचल बेल्ट में अखिलेश यादव को नुकसान उठाना पड़ सकता है. भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यूपी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है और ऐसे में भाजपा ने यूपी की कुल 80 लोकसभा सीट में से 75 प्लस सीटें जीतने के लक्ष्य रखा है, जिसे हरहाल में हासिल करने के लिए पार्टी अभी से ही कोशिश में जुटी है. ऐसे में, एक तरफ भाजपा ने अपने मंत्रियों को जमीनी स्तर पर काम करने का जिम्मा दे रखा है तो दूसरी तरफ सीएम योगी से लेकर डिप्टी सीएम तक सूबे का तबड़तोड़ दौरा किया जा रहा है.
वहीं, सपा से नाता तोड़ने के बाद ओम प्रकाश राजभर यूपी में एक मजबूत सहारा तलाश रहे हैं, वो पहले ही कह चुके हैं वो बसपा या भाजपा के साथ जा सकते हैं, अब बसपा के दरवाज़े तो राजभर के लिए बंद हो गए हैं. ऐसे में राजभर का भाजपा के साथ आना लगभग तय है. भाजपा के साथ आने से राजभर को तो फायदा पहुंचेगा ही वहीं भाजपा को भी पूर्वांचल में अपने सियासी आधार को मजबूत बनाए रखने के लिए ओम प्रकाश राजभर का साथ चाहिए, इस तरह दोनों ही दल एक दूसरे में अपना सियासी लाभ देख रहे हैं और अगर दोनों साथ आ जाते हैं तो सपा के लिए राजनीतिक चुनौती खड़ी होनी तो तय है.