नई दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और अब महाराष्ट्र. विधायकों के बगावती सुर और राजनीति का दल-बदल खेल अब महाराष्ट्र की सियासत में हो रहा है. शिवसेना विधायक और उद्धव सरकार के मंत्री एकनाथ शिंदे कई विधायकों को लेकर बागी हो चुके हैं. महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार अब संकट […]
नई दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और अब महाराष्ट्र. विधायकों के बगावती सुर और राजनीति का दल-बदल खेल अब महाराष्ट्र की सियासत में हो रहा है. शिवसेना विधायक और उद्धव सरकार के मंत्री एकनाथ शिंदे कई विधायकों को लेकर बागी हो चुके हैं. महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार अब संकट से घिर गई है. अगर कर्नाटक और मध्य प्रदेश का सियासी बवाल महाराष्ट्र में भी होता है तो उद्धव की सरकार भी गिर जाएगी.
महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं और एक विधायक के निधन से अभी एक सीट खाली है तो इस हिसाब से मौजूदा समय मे यहां 287 विधायक हैं. अपनी सत्ता बनाने या बचाए रखने के लिए 144 विधायकों का समर्थन जरूरी है. फिलहाल, महाविकास अघाड़ी सरकार के पास 153 विधायक हैं, जिसमें शिवसेना के 55, एनसीपी के 53 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं. हालांकि, एकनाथ शिंदे दावा कर रहे हैं कि उनके पास 40 से ज्यादा विधायक है और अब अगर ये बागी विधायक पाला बदलकर भाजपा के पास जाते हैं, तो महाराष्ट्र में फिर से भाजपा की सरकार बनना लगभग तय है.
दरअसल बागी विधायकों की पहली पसंद भाजपा ही रहती है और ये कोई अनुमान नहीं बल्कि आंकड़े बताते हैं कि 5 सालों में 405 विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ी. इनमें से करीब 45 फीसदी विधायक बाद में भाजपा में शामिल हो गए. ये आंकड़े एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के हैं, जिसमें 2016 से 2020 के 5 साल में पार्टी छोड़ने वाले और दूसरी पार्टी में शामिल होने वाले विधायकों का एनालिसिस किया गया था. एडीआर की ये रिपोर्ट पिछले साल मार्च में आई थी, रिपोर्ट दर्शाती है कि विधायकों की बगावत का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को होता है.
– मार्च 2021 की एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2016 से 2020 के बीच देश भर की विधानसभाओं के 405 विधायकों ने पार्टी छोड़ी थी, जिनमें से 182 यानी 45% विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे.
– रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी छोड़ने वाले 38 यानी 9.4% विधायक कांग्रेस में जुड़े थे, जबकि, 25 विधायक तेलंगाना राष्ट्र समिति और 16 विधायक तृणमूल कांग्रेस की ओर चले गए थे. वहीं 16 विधायक नेशनल पीपुल्स पार्टी में, 14 जेडीयू में, 11-11 विधायक बसपा और टीडीपी में शामिल हुए थे.
– इस रिपोर्ट के मुताबिक, विधायकों की बगावत का सबसे ज्यादा झटका कांग्रेस को पड़ा है. कांग्रेस के 170 विधायकों ने पांच साल में पार्टी छोड़ दी, जबकि भाजपा के ऐसे 18 विधायक थे, वहीं बसपा और टीडीपी के 17-17 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी. वहीं, 5 साल में शिवसेना का एक भी ऐसा विधायक नहीं था, जिसने अपनी पार्टी का साथ छोड़ा हो.
– विधायकों के पार्टी छोड़ने का सिलसिला आमतौर पर चुनावी साल या चुनाव से पहले देखने को मिलता है, लेकिन कई बार विधायक बीच में भी बागी रुख अपना लेते हैं. कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भी ऐसा हो चुका है. बीच में विधायक इस्तीफा देते हैं और फिर दूसरी पार्टी में जुड़कर उसकी टिकट पर उपचुनाव लड़ते हैं., लेकिन अपनी पार्टी छोडजर दूसरी पार्टी में जाने वाले विधायकों का सक्सेस रेट कितना है? यानी, उनमें से जीतते कितने हैं आइए आपको इसके बारे में बताते हैं.
– एडीआर के मुताबिक, साल 2016 से 2020 के बीच 357 विधायक ऐसे थे जिन्होंने उसी समय दूसरी पार्टी से जुड़कर विधानसभा चुनाव लड़ा था. इनमें से 170 यानी 48% ही जीत पाए थे, जबकि, 48 विधायक ऐसे थे, जिन्होंने दूसरी पार्टी के टिकट पर उपचुनाव लड़ा और उसमें 39 यानी 81% जीत गए.
– आंकड़ों को देखा जाए तो समझ आता है कि अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने के बाद उपचुनाव लड़कर जीतने वाले विधायकों का सक्सेस रेट काफी अच्छा रहा है. जबकि, विधानसभा चुनाव लड़ने वाले बागी विधायकों का सक्सेस रेट औसतन कम देखने को मिलता है.
– पार्टी छोड़ने वाले विधायकों की तो बात हो गई, अब सांसदों की बात की जाए तो 5 साल में लोकसभा के 12 और राज्यसभा के 16 सांसदों ने पार्टी छोड़ दी थी. वहीं भाजपा के 5 लोकसभा सांसदों ने पार्टी छोड़ी थी, तो कांग्रेस के 7 राज्यसभा सांसदों ने पार्टी छोड़ दी थी. लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की बगावत का फायदा भाजपा और कांग्रेस, दोनों को हुआ. पार्टी छोड़ने वाले 5 लोकसभा सांसद कांग्रेस में शामिल हो गए थे, जबकि, 10 राज्यसभा सांसदों ने भाजपा का साथ चुना था.
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