नई दिल्ली. अवार्ड वापसी अभियान के जनक साहित्यकार उदय प्रकाश पीएम नरेंद्र मोदी के मुरीद हो गए हैं. संसद में शुक्रवार को नरेंद्र मोदी के संविधान पर भाषण की उदय ने जबर्दस्त तारीफ की है. उदय की भाषा शैली से वैसे ये भ्रम बना हुआ है कि ये सच में तारीफ है या फिर व्यंग्य.
उदय प्रकाश ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर लिखा, “आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का संसद में संविधान पर दिया गया भाषण किसी ऐतिहासिक अभिलेख की, किसी महत्वपूर्ण राजकीय दस्तावेज़ की तरह महत्वपूर्ण है. इतना लोकतांत्रिक, समावेशी, उदार और विनम्र संभाषण कम से कम इस प्रभावी शैली में मैंने अपने जीवन में नहीं सुना.”
पक्ष-विपक्ष की सरहदों के पार एक सर्वस्वीकृत नेता बनने की कोशिश
उदय प्रकाश ने मोदी की तारीफ करते हुए आगे लिखा, “बिना किसी पूर्वाग्रह के अपने पूर्ववर्ती राजनेताओं के योगदान को जिस पारदर्शिता के साथ उन्होंने स्वीकार किया, देश के प्रथम प्रधानमंत्री की लोकतांत्रिक सहिष्णुता, ईमानदारी और तार्किक विवेक की उन्होंने प्रशंसा की, इसके अलावा संविधान की मूल प्रस्तावना के अलावा इसके परवर्ती संशोधनों को, जिसमें ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ के अलावा ‘आरक्षण’ की अनिवार्यता को जिस तरह उन्होंने अपनी सम्मति और समर्थन दिया, वह उन्हें पक्ष और विपक्ष की दोनों सरहदों के आर-पार एक सर्वस्वीकृत राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए, भावुकता के साथ पर्याप्त था.”
वक्तृता में वाजपेयी से कई क़दम आगे हैं नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी बेहतर वक्ता बताते हुए उदय प्रकाश लिखते हैं, “मैंने पहले भी कहा है कि अपनी वक्तृता में संभवत: वे सिद्धहस्त अटल बिहारी वाजपेयी जी से भी कई क़दम आगे हैं. वे अपने व्याख्यानों में शायद, तथ्यों और इतिहास संबंधी भ्रमों-भूलों और हास्यास्पद ग़लतियों के बावजूद, अब तक के एक बेजोड़ वक़्ता- प्रधानमंत्री हैं.”
राजनाथ सिंह और अरुण जेटली से दूरी प्रदर्शित करने वाला भाषण
उदय प्रकाश ने मोदी की तारीफ में आगे लिखा, “संसद में बाबा साहेब अंबेडकर की स्मृति और संविधान की मूल भावनाओं के पक्ष में दिया गया उनका यह भाषण अप्रत्याशित रूप से प्रशंसनीय ही नहीं, सामयिक और महत्वपूर्ण था. यह वक्तव्य एक झटके में उनके ही गृह मंत्री राजनाथ सिंह तथा वित्त मंत्री जेटली से उनकी दूरी को प्रदर्शित करने वाला था. उनका यह संभाषण भारत की विविधता, बहुसांख्यिकता, बहुलता के प्रति उनके सम्मान को प्रकट करने वाला था. बहुत ख़ुशी हुई.”
उग्र हिंदुत्ववादी ताकतों को कानून और संविधान के दायरे में लाने की अपेक्षा
उदय प्रकाश ने मोदी से अपेक्षा जाहिर करते हुए लिखा है, “अब उम्मीद है वे अपने सांप्रदायिक, जातिवादी, हिंसक, असामाजिक और उग्र हिंदुत्ववादी तत्वों को भी क़ानून और संविधान के दायरे में लाकर उन पर सख़्त कार्रवाई करेंगे.”
छवि-साख बचाने की युक्ति तो नहीं, बिल पास कराने की चालाकी तो नहीं ?
फिर उदय प्रकाश कुछ संदेह के साथ लिखते हैं, “लेकिन कहीं यह देश के बदलते हुए मानस को भांप कर किसी रणनीति के तहत, चतुराई के साथ, अपने दल के ‘सरहदी’ उग्र सांप्रदायिक और जातिवादी गिरोहों की हरकतों से होने वाली अपनी और अपने दल की गिरती हुई छवि और साख को बचाने की, कोई हार को जीत में बदलने वाली चालाक युक्ति तो नहीं है? या कहीं जनरल सर्विस टैक्स से लेकर कई ऐसे बिलों को, अपने कार्पोरेट मित्रों और सहयोगियों के लाभ के लिए, विपक्ष की मदद से, संसद के इसी सत्र में पारित करा लेने के लिये एक सोची समझी चालाकी तो नहीं है?”
राजनीति जिन हाथों में है, उस पर विश्वास नहीं होता
उदय प्रकाश अपने संदेह को और आगे बढ़ाते हुए लिखते हैं, “आज एक ओर जब प्रधानमंत्री निवास में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जी उनके साथ चाय पी रहे हैं, ठीक उसी समय चंदन मित्र और शेखर गुप्ता, दोनों संविधान में ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ के प्रक्षेपण पर राजनाथ सिंह के तर्क के अनुसार बहस की शुरुआत कर रहे हैं. मुझे तो यही लगता है कि संविधान की मूल आत्मा की हिफ़ाज़त देश की जनता को अपनी एकजुटता के साथ करनी होगी. राजनीति जिन हाथों में है, पता नहीं क्यों अभी भी दोस्तों, उस पर विश्वास नहीं होता.”
सबसे पहले उदय प्रकाश ने ही लौटाया था साहित्य अकादमी को पुरस्कार
उदय प्रकाश ने कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में 9 सितंबर को साहित्य अकादमी का अवार्ड लौटा दिया था. उदय ने साहित्य अकादमी को पुरस्कार के साथ मिला प्रतीक चिह्न, शॉल और 1 लाख रुपए का चेक भी लौटा दिया था.
उदय की अवार्ड वापसी के करीब एक महीने बाद 6 अक्टूबर को पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू की रिश्तेदार नयनतारा सहगल ने अकादमी का अवार्ड लौटाया था. सहगल ने दादरी में बीफ की अफवाह पर उग्र भीड़ के हाथों एक अल्पसंख्यक की हत्या के बाद देश में बढ़ रही असहिष्णुता पर सरकारी खामोशी का आरोप लगाते हुए अवार्ड लौटाया था.
नयनतारा सहगल की अवार्ड वापसी के बाद तेज हो गया था अवार्ड लौटाने का सिलसिला
सहगल के बाद असहिष्णुता के मुद्दे पर साहित्यकारों की अवार्ड वापसी का सिलसिला तेज हो गया और दो दर्जन से ज्यादा बड़े साहित्यकारों ने अवार्ड लौटा दिए. कुछ साहित्यकारों और वैज्ञानिकों ने पद्म सम्मान तक लौटा दिए.
साहित्यकारों की अवार्ड वापसी से प्रभावित एक दर्जन फिल्मकारों ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार लौटा दिया और इसके लिए असहिष्णुता के अलावा फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के चेयरमैन गजेंद्र चौहान के खिलाफ छात्रों के आंदोलन पर सरकारी बेरूखी को जिम्मेदार ठहराया.