नई दिल्ली. हिंदू शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार जब धनु राशि में सूर्य का गोचर होता है तो उस समय खरमास की शुरुआत होती है जिसकी समाप्ति सूर्य के मकर राशि में गोचर के बाद होती है. इस साल खरमास 16 दिसंबर रात 12 बजकर 37 मिनट से प्रारंभ होगा और नए साल 15 जनवरी 2020 को समाप्त होगा. खरमास का काफी खास महत्व बताया गया है. कहा जाता है कि इस दौरान पूजा, अराधना, मंत्र जाप, स्नान और दान करने से विष्णु भगवान व्यक्ति को कई गुना ज्यादा फल देते हैं. आइए जानते हैं खरमास का महत्व, पूजा विधि और कथा.
शास्त्रों के अनुसार, खरमास में पूजा का अधिक लाभ मिलता है. इसलिए इस दौरान मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए. खरमास में जो भी धार्मिक कार्य किए जाते हैं उनसे मनुष्यों को सिर्फ सुख ही नहीं बल्कि मुक्ति की प्राप्ति भी होती है. खरमास के दौरान स्नान और दान का विशेष महत्व कहा गया है. खरमास में पितरों का श्राद्ध भी काफी अनुकूल माना गया है. हालांकि, खरमास के दौरान विवाह, घर प्रवेश आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. खरमास सिर्फ पूजा के लिए उपयुक्त कहा गया है. अगर इस समय शुभ कार्य होते हैं तो उसका कोई शुभ फल प्राप्त नहीं होता. साथ ही कहा जाता है कि इस दौरान जो प्राण त्यागता है उसकी आत्मा भटकती रहती है या नर्क मिलता है.
खरमास में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है इसलिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनकर विष्णु जी की प्रतिमा को साफ चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर स्थापित करें. केसर मिले दूध से प्रतिमा पर अभिषेक करें फिर भगवान को पीले फूल, पांच फल, पांच मिठाई आदि अर्पित करें. जिसके बाद विधिवत पूजा करें और खरमास की कथा जरूर सुनें. कथा के बाद तुलसी से निर्मित खीर का भगवान को भोग लगाएं. घी का दीप जलाकर विष्णु जी की आरती करें. अगर हो सके तो गीता का पाठ भी करें. फिर तुलसी में घी का दीप जलाकर ऊं नमों भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र के जाप के साथ 11 परिक्रमा करें. परिक्रमा के बाद किसी निर्धन या ब्राह्मण को दान जरूर करें.
पौराणिक कथानुसार, सूर्यदेव अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर ब्राह्मांड के चक्कर लगाते हैं और कहीं नहीं रुकते. अगर वे रुक गए तो पृथ्वी पर सब अस्त वयस्त हो जाएगा. एक बार भगवान के घोड़े लगातार चलने की वजह से भूख-प्यास से थक गए जिसपर सूर्य देव को दया आ गई. वे उन्हें एक तालाब के पास ले गए, अब अगर वे रुकते तो सब रुक जाता इसलिए उन्होंने तालाब पर खड़े दो गधों को अपने रथ से बांध लिया. जबकि घोड़ों को पानी और सुस्ताने के लिए तालाब पर छोड़ दिया. गधों को रथ से बांधने की वजह से सूर्यदेव की गति धीमी हो गई लेकिन सूर्यदेव ने उन गधों के साथ एक मास का चक्कर पूरा कर लिया.
खरमास का महीना स्नान और दान के लिए विशेष है. खरमास में ब्रहम मुहूर्त में किसी पवित्र नदी में स्नान करने न सिर्फ पाप खत्म होते हैं बल्कि रोग भी खत्म हो जाते हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, अगर कोई व्यक्ति खरमास में पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ दान करता है उसे जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है. उसके जीवन में कोई आभाव नहीं रहता, इसी वजह से खरमास में दान और स्नान जरूरी कहा गया है.
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