रायपुर. छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बागबहरा से करीब 5 किमी. दूर जंगल के बीचों-बीच चंडी देवी मंदिर में नवरात्री पर हर रोज श्रद्धालुओं की काफी भीड़ आती है. श्रद्धालुओं के लिए चंडी देवी मंदिर के अलावा वहां के भालू भक्त भी आकर्षण का केंद्र हैं. बताया जाता है यहां भालुओं का एक पूरा परिवार वहां हर रोज देवी के दर्शन के लिए पहुंचता है और यहां की आरती के बाद प्रसाद लेकर ही घर लौट जाता है.
बताया जाता है कि भालू का परिवार जब देवी दर्शन के लिए पहुंचता है तो एक मंदिर का एक सदस्य सीढ़ियों के पास ही खड़ा रहता है. मादा भालू अपने दो बच्चों के साथ मंदिर के अंदर आ जाती है. तीनों भालू देवी प्रतिमा की परिक्रमा भी करते हैं.
‘कभी गुस्सा जरूर हो जाते हैं भालू’
यहां के पुजारी बताते है कि दर्शन और प्रशाद के बाद भालुओं का परिवार जंगल की ओर चुपचाप लौट जाता है. ये भालू आज तक हिंसक नहीं हुए और न ही यहां आने वाले किसी भक्त को नुकसान पहुंचाया है. लेकिन जब कोई उन्हें परेशान करता है या फिर भगाने की कोशिश करता है तो वे गुस्सा जरूर हो जाते हैं. भालूओं के परिवार में नर-मादा के अलावा इनके दो छोटे बच्चे भी हैं.
भगवान की कृपा मानते हैं गांव वाले
पास के गांव के लोगों का मानना है कि मंदिर में भालुओं के आने का मतलब ये है कि यहां लोगों पर देवी की विशेष कृपा है. गांववाले उन भालुओं को जामवंत परिवार कहने लगे हैं.
तंत्र साधना के लिए मशहूर था चंडी देवी मंदिर
- जंगल के बीच पहाड़ी पर स्थित माता चंडी का यह मंदिर तंत्र साधना के लिए काफी मशहूर था.
- इस मंदिर का इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना है. बताया जाता है कि मां चंडी की प्रतिमा यहां खुद प्रकट हुई थी.
- तंत्र साधना के लिए पहले यह स्थान गुप्त माना जाता था, साल 1950-51 में यहां आम लोग आने लगे.