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आखिर हवन करते समय स्वाहा का ही उच्चारण क्यों करते हैं?

हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक कोई भी पूजा या अनुष्ठान तब तक सम्मपन्न नहीं होता जब तक उसके अंत में हवन नहीं होता है. आपने अक्सर देखा होगा कि किसी भी पूजा पाठ के अंत में हवन किया जाता है, लेकिन आपने शायद ही कभी इस बात पर गौर किया होगा कि आखिर हवन के समय लोग स्वाहा क्यों बोलते हैं ?

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  • September 11, 2016 7:40 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक कोई भी पूजा या अनुष्ठान तब तक सम्मपन्न नहीं होता जब तक उसके अंत में हवन नहीं होता है. आपने अक्सर देखा होगा कि किसी भी पूजा पाठ के अंत में हवन किया जाता है, लेकिन आपने शायद ही कभी इस बात पर गौर किया होगा कि आखिर हवन के समय लोग स्वाहा क्यों बोलते हैं ?
 
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सबसे पहले इस बात पर चर्चा हुई थी कि आखिर हवन सामग्री को देवताओं के पास कैसे पहुंचाया जाए. तमाम चिंतनों के बाद आखिरकार देवाताओं तक सामग्री को पहुंचाने के लिए अग्नि को सर्वश्रेष्ठ माध्यम माना गया, जिसके बाद ‘स्वाहा’ का जन्म हुआ
 
ऋग्वेद में वर्णित यज्ञीय परंपरा के अनुसार देवताओं देव आह्वान के साथ-साथ स्वाहा का उच्चारण कर हवन सामग्री को अग्नि में डाला जाता है. इसका अर्थ यह है कि हवन सामग्री (हविष्य) को अग्नि के माध्यम से देवी-देवताओं तक पहुंचाया जाता है..
 
मान्यताओं के अनुसार स्वाहा प्रकृति की ही एक स्वरूप थीं, जिनका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को वरदान देते हुए कहा था कि वे केवल उसी के माध्य से हविष्य को ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं.
 
पौराणिक मान्यता है कि पूजा या अनुष्ठान के अंत में आवाहित किए गए देवी-देवता के पसंद का भोग उन्हें दिया जाए. इसी के लिए अग्नि में आहुति दी जाती है और स्वाहा का उच्चारण किया जाता है.

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