लोकसभा में अपने पहले भाषण के दौरान प्रियंका गांधी काफी संयत दिखीं. राहुल गांधी की तरह न तो वह गुस्से में थी और न ही हड़बड़ी में. जहां कहीं चूक हुई उन्होंने यह कहने में हिचक नहीं दिखाई कि यह उनका पहला भाषण है. उन्होंने एक-एक कर सभी मुद्दों को छुआ लेकिन फोकस 3M पर रखा. जानें ये 3M क्या है और भाई राहुल गांधी से वह अलग कैसे हैं?
संसद में संविधान पर कल से दो दिवसीय चर्चा शुरू हो गई. केरल के वायनाड से पहली बार चुनकर आईं प्रियंका गांधी ने लोकसभा में अपना डेब्यू भाषण दिया. इस दौरान वह कई बार अटकीं व ठिठकीं. फंबल के साथ कई गलतियां भी कीं लेकिन अपनी मुस्कराहट से विपक्ष की टोकाटाकी को बेअसर करती हुईं नजर आईं. उनका भाषण खत्म होने के बाद उनके पार्टी के सांसदो ने बधाई दी और भाईजान राहुल गांधी ने हग किया. बाहर निकले और मीडिया से कहा कि उनके पहले भाषण से प्रियंका का पहला भाषण बेहतर था.
भाई बहन एक दूसरे की तारीफ करते हैं, करना भी चाहिए लेकिन सियासी तराजू पर यह देखना भी जरूरी है कि प्रियंका के इस भाषण ने भविष्य की राजनीति के लिए क्या संकेत दिया और वह कितना प्रभावी साबित होंगी. प्रियंका गांधी के पूरे भाषण को गौर से सुनिए, वह पूरी तैयारी के साथ आईं थीं और पूरा परिवार उनके साथ था. मां सोनिया गांधी, पति राबर्ट वाड्रा, बेटा रेयान वाड्रा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पहले ही दर्शक दीर्घा में आकर जम गये थे. भाई राहुल गांधी सदन में पहले से मौजूद थे ही, उन्होंने भाषण शुरू करने से पहले कंधा थपथपाया दी और भाषण के बाद गले लगाया.
यूं तो प्रियंका गांधी ने बहुत लंबा भाषण दिया लेकिन मुद्दों की बात करें तो उन्होंने 3 एम पर अपने को फोकस रखा. उन्होंने पहले एम यानी महिलाओं को लेकर मोदी सरकार को घेरा. मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन आधिनियम के जरिए संसद और विधानसभाओ में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण आरक्षण दिया है लेकिन यह अभी लागू नहीं हुआ है. प्रियंका गांधी ने इसको लेकर सवाल उठाये कि जनगणना और परिसीमन का इंतजार क्यों किया जा रहा है? हाथरस और उन्नाव की घटनाओं का जिक्र महिलाओं के साथ अपराध और उनकी बेबसी को बयां करने के लिए बखूबी किया.
दूसरे एम यानी मुस्लिमों के साथ ज्यादती को भी शिद्दत से उठाया और हालिया संभल घटना के पीड़ितों से मुलाकात का जिक्र करते हुए बताया कि शोकाकुल परिवारों से कुछ लोग उनसे मिलने आए थे. उनमें दो बच्चे थे, अदनान और उजैर। उनमें से एक उनके बेटे की उम्र का था और दूसरा उससे छोटा, 17 साल का. उनके पिता दर्जी थे और उनका एक ही सपना था कि वह अपने बच्चों को पढ़ाएंगे. एक बेटा डॉक्टर बनेगा और दूसरा भी सफल होगा, उन्हें क्या पता था कि उनके साथ कुछ और ही होने वाला है.
वह हर रोज की तरह अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने गए और उसके बाद अपनी दुकान पर पहुंचे जहां पुलिस ने गोली मार दी. बेटा कह रहा है कि मैं पिता के सपने को पूरा करूंगा और डॉक्टर बनकर दिखाऊंगा. लबोलुआब यह कि पीड़ितों को साहस उस संविधान से मिल रहा है जिसे बाबा साहेब अंबेडकर ने बनाया था. संविधान की मूल भावनाओं की हरहाल में रक्षा होनी चाहिए. इसके अलावा हाथरस, उन्नाव व आगरा की घटनाओं का भी जिक्र किया और जब सत्ता पक्ष के एक सांसद इस पर हंसे तो उन्हें टोकने से भी गुरेज नहीं किया.
दो एम को तो प्रियंका गांधी ने साधने की कोशिश की लेकिन तीसरे एम पीएम मोदी पर खूब हमला किया. राजनीतिक लड़ाई में जब तक नेता की इमेज डेंट नहीं होती तब तक दूसरे के लिए गुंजाइश नहीं बनती. उनके भाई राहुल गांधी मोदी और अडानी को जोड़कर वार करने का कोई मौका नहीं चूकते हैं. संविधान पर चर्चा हो रही है तो देश की आजादी की लड़ाई की भी चर्चा आई लिहाजा प्रियंका ने डरपोक और कायर कहने में भी गुरेज नहीं किया. देश में जो वातावरण बन रहा है उसके लिए भी मोदी सरकार को घेरा. संविधान की रक्षा व जातिगत जनगणना दोनों को पूरी गंभीरता से उठाया. इस तरह उन्होंने अपने को तीन एम पर फोकस रखा.
आखिर में सवाल ये कि अपने भाई राहुल गांधी के मुकाबले अपने डेब्यू भाषण में प्रियंका गांधी कैसी साबित हुईं. भाई राहुल गांधी 2004 में पहला चुनाव जीतकर आये थे और बहन प्रियंका 20 साल बाद 2024 में संसदीय राजनीति में डेब्यू कर रही हैं. बात एक दम साफ है कि भाई के मुकाबले प्रियंका के हिंदी के लब्ज साफ हैं और विजन भी स्पष्ट है. पीएम मोदी, भाजपा और संघ पर हमलावर होते हुए भी वह कहीं गुस्से या उत्तेजना में नहीं दिखीं. पहले प्रधानमंत्री नेहरू की गलतियों और इमरजेंसी के हवाले पर भी उन्होंने साफगोई से जवाब दिया और सत्ता पक्ष से कहा कि आप भी क्यों नहीं माफी मांग लेते.
बोलते बोलते हिमाचल का जिक्र आया तो भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने टोका कि वहां तो आपकी सरकार है, फिर यह कहने में देर भी नहीं लगाई की पहली बार बोल रही हूं. सत्ता पक्ष की महिलाएं जब उनके भाषण के दौरान टोकाटाकी कर रही थीं तब भी उन्होंने उत्तेजना में रिएक्ट करने की बजाय सिर्फ मुस्कराकर जवाब दिया. भाषण की छोटी-मोटी गलतियों और फंबल को छोड़ दें तो प्रियंका गांधी अपने डेब्यू भाषण से यह संदेश देने में कामयाब रहीं कि वह कई मामलों में राहुल गांधी से बेहतर साबित होने वाली हैं. महिला होने, चेहरे पर मुस्कराहट और गंभीर बात को भी संयत अंदाज में कहना लोगों खासतौर से युवाओं को अपील कर सकता है.
Read Also-