ओपिनियन

भारतीय संविधान जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज

भारत अपने संविधान को अपनाने की हीरक जयंती मना रहा है, ऐसे में यह विचार करना जरूरी हो जाता है कि यह दस्तावेज हमारे देश के लोकतांत्रिक सफर के केंद्र में कैसे रहा। प्राचीन भारतवर्ष से लेकर आधुनिक भारत गणराज्य तक भारत का विचार इस भूमि पर अस्तित्व में आईं सभी संस्थाओं का आधार रहा। भारतीय संविधान मौलिक विचारों को जीवित रखने के साथ ही मौजूदा भू-राजनीति की आधुनिक सामाजिक-आर्थिक मांगों के अनुरूप साबित हुआ है। यह सिर्फ दस्तावेज नहीं बल्कि वो जीवंत दस्तावेज है जो देश को सबसे बुरे समय में भी एकजुट रखने और राष्ट्र के उस उच्च चरित्र को संरक्षित रखने में कारगर साबित हुआ जो इतिहास के आइने में परिलक्षित होता रहा है।

हमारा मार्गदर्शक बना संविधान

मानवता ने अपने विकास में हमेशा समाज की सामूहिक आकांक्षाओं, उसके आचरण को परिभाषित करने, संरक्षित रखने और विनियमित करने के लिए मानदंडों का सम्मान किया और उसे अपनाया। दुनिया भर में अरबों लोग पवित्र पुस्तकों से नैतिक मार्गदर्शन लेते हैं। मैग्ना कार्टा जैसे दस्तावेज़ ने न्याय, स्वतंत्रता और अधिकारों को रेखांकित किया। इसी तर्ज पर भारतीय संविधान बेहतर भविष्य की दिशा में हमारी यात्रा में हमारा मार्गदर्शक साबित हुआ है. भारत का संविधान भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है। यह समानता, स्वतंत्रता और शोषण के विरुद्ध सुरक्षा सहित मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है, जबकि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत सामाजिक-आर्थिक न्याय के लिए एक रोडमैप प्रदान करते हैं।

लिखित संविधान में अधिकार सुरक्षा की गारंटी

स्वर्गीय लॉर्ड बिंगहम ने ब्रिटेन के अलिखित संविधान पर लिखा है कि “संवैधानिक रूप से कहें तो, हम अब खुद को बिना नक्शे या दिशासूचक के एक दिशाहीन रेगिस्तान में पाते हैं।” इसका समाधान संहिताकरण ही हो सकता है, जब कोई संविधान संहिताबद्ध यानी लिखित होता है, तो हम आसानी से पढ़कर जान लेते हैं कि उसमें क्या लिखा है। राज्य के प्रत्येक अंग विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों का स्पष्ट विचार उसमें सन्निहित होता है। इनका नागरिकों के साथ संबंधों को आसानी से पहचाना जा सकता है। लिखित संविधान लोगों को जानकारी मुहैया कराने के साथ साथ आगाह भी करता है कि क्या किया जा सकता और क्या नहीं. लिखित संविधान नागरिकों द्वारा अपनी सरकार के साथ किया गया सहमति पत्र है। वे कुछ आश्वासनों के बदले में शासित होने के लिए सहमत होते हैं और उन्हें स्वतंत्रता की रक्षा और समानता की गारंटियां मिलती है। लिखित संविधान द्वारा दिये गये अधिकारों में संसद साधारण बहुमत से आसानी से बदलाव नहीं कर सकती। इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया है जिसमें विशेष बहुमत की जरूरत पड़ती है। इस तरह व्यक्ति और अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकवाद और लोकलुभावन प्रभावों से सुरक्षा प्रदान की जाती है।

सुप्रीम कोर्ट संविधान का संरक्षक

भारतीय संविधान की कई विशेषताएं हैं जो 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश की चुनौतीपूर्ण मांगों का सामना करने में सक्षम बनाती है। भारतीय संविधान में संघीय ढांचे को अपनाया गया है जो केंद्र की तरफ झुका हुआ है। इसके साथ इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय स्वायत्तता के बीच संतुलन रहे। केंद्र में निहित शेष शक्तियों के साथ संघ और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण को विस्तार से रेखांकित किया गया है। अंतर-राज्य परिषदों और सहकारी संघवाद के प्रावधानों से संघीय ढांचे को और मजबूत किया गया है। वेस्टमिंस्टर मॉडल को संघ और राज्य दोनों स्तरों पर स्थापित किया गया है।

संविधान बनाने के दौरान यह सवाल उठा कि भविष्य में केंद्र और राज्य में अधिकारों को लेकर यदि मतभेद हो तो कैसे निर्णय होगा लिहाजा न्यायपालिका को प्रमुख स्थान दिया गया और सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक बनाया गया। न्यायिक समीक्षा का अधिकार न्यायालयों को विधायी और कार्यकारी कार्यों की जांच का अधिकार देता है। इसके तहत न्यायपालिका के पास यह अधिकार है कि वह देखे कि विधायिका और कार्यपालिका के कार्यो में संविधान के मानदंडों का उल्लंघन तो नहीं हुआ है। नीति निर्देशक सिद्धांतों का उद्देश्य सरकार को लोगों के समग्र विकास और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए नीति निर्माण करने के लिए निर्देशित करता है।

संविधान में हर परिस्थिति से निपटने की व्यवस्था

भारतीय संविधान की विशेषताओं में एकल नागरिकता व वयस्क मताधिकार जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं। हाशिए पर खड़े समुदाय के लिए विशेष सुरक्षा का प्रावधान है। संविधान में राष्ट्रीय सुरक्षा या संवैधानिक तंत्र को खतरा जैसी असाधारण परिस्थितियों से निपटने के लिए आपातकालीन व्यवस्था की गई है। खास बात यह है कि यह दस्तावेज न तो अति कठोर है और न ही पूर्ण रूप से लचीला। कुछ प्रावधानों को संसद में साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है जबकि कुछ संशोधनों के लिए राज्य विधानसभाओं के अनुसमर्थन के साथ साथ विशेष बहुमत की जरूरत होती है, जो स्थिरता और अनुकूलनशीलता के बीच संतुलन सुनिश्चित करता है। इस तरह भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज बना जो संशोधनों और न्यायिक व्याख्याओं के माध्यम से निरंतर विकसित होता रहता है। इन संशोधनों के बावजूद लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्धता बनी हुई है।

अनुच्छेद 356 का हुआ दुरुपयोग

भारतीय संविधान के अति महत्वपूर्ण प्रावधानों में से एक अनुच्छेद 356 है जिसके माध्यम से विशेष परिस्थितियों में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है। संविधान बनाते समय इसको लेकर खूब बहस हुई कि इसका दुरुपयोग तो नहीं होगा जिसका जवाब प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने दिया था। उन्होने कहा कि इस प्रावधान का उपयोग केवल दुर्लभतम मामलों में किया जाना चाहिए। भले ही डॉ. अंबेडकर का मानना ​​​​था कि यह एक विशेष व्यवस्था है जो कि अप्रचलित रहेगी लेकिन आगे चलकर अनुच्छेद 356 का 125 से अधिक बार उपयोग/दुरुपयोग किया गया। अधिकांश मामलों में इसका उपयोग राज्यों में संवैधानिक तंत्र विफल होने पर नहीं बल्कि राजनैतिक उद्देश्यों के लिए हुआ। दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अनुच्छेद 356 का प्रयोग 27 बार किया और अधिकतर मामलों में इसका प्रयोग राजनीतिक अस्थिरता, स्पष्ट जनादेश का अभाव और समर्थन वापसी को आधार बनाकर बहुमत वाली सरकारों को हटाने के लिए किया।

हमारा संविधान ज्यादा मजबूत

हमारे पड़ोस में क्या हुआ, संविधान को असहाय बना दिया गया। दक्षिण कोरिया की हालिया घटना पर गौर कीजिए, वहां पर राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लागू करने की कोशिश की। तुलना करने पर पाएंगे कि भारतीय संविधान काफी मजबूत और हर परिस्थिति से निपटने में सक्षम है। यह राज्य के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को नियंत्रित और संतुलित रखता है। अमेरिका के दिवंगत राष्ट्रपति जेम्स मैडिसन ने कहा था, संविधान का उद्देश्य अल्पसंख्यक को नुकसान पहुंचाने की बहुसंख्यकों की क्षमता को सीमित करना है। भारतीय संविधान इस पर हमेशा खऱा उतरा और समाज के हर वर्ग को अपनी आवाज बुलंद करने का अवसर देता है।

पीएम मोदी ने संविधान को सिर आंखों पर रखा

हमारे माननीय प्रधानमंत्री भी संवैधानिक आदर्शों को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहे हैं। उन्होंने संविधान को सिर आंखों पर रखकर दर्शाया कि वे इसका कितना सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि उनके जीवन का हर पल इसमें निहित महान मूल्यों को बनाए रखने के लिए समर्पित है। प्रधानमंत्री ने संविधान के ऐसे प्रावधानों को हटाने में देर नहीं लगाई जो लंबे अरसे से खटक रहे थे। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में ही यह संभव था कि हमने अनुच्छेद 370 को निरस्त होते देखा, जिसने जम्मू और कश्मीर राज्य में कई समुदायों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा था। मौजूदा सरकार ने पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों की दुर्दशा को दृष्टिगत रखते हुए सताए गए समुदायों को भारतीय नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 को लागू किया। देश की आधी आबादी को सबसे बड़ी पंचायत में नुमाइंदगी देने के लिए ऐतिहासिक महिला आरक्षण कानून बनाया।

बाबा साहेब अंबेडकर का अमूल्य योगदान

भारत, एक गणतंत्र के रूप में शुरुआती चरणों में अपनी कमजोरियों के बावजूद हमेशा एक सरकार से दूसरी सरकार को शांतिपूर्वक सत्ता हस्तांतरण सुनिश्चित करने में सफल रहा। पश्चिमी मीडिया ने वैश्विक मंच पर हमारी छवि को विकृत करने के लिए दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया लेकिन हमारा संविधान कुशलतापूर्वक हमारा मार्गदर्शन करता रहा और देश को एक इकाई के रूप में अखंड रखा। हमारा संविधान, पिछले 75 वर्षों से गणतंत्रवाद का प्रतीक व प्रहरी बना हुआ है और किसी भी अधिनायकवादी प्रवृत्ति का विरोधी है। हमें, एक राष्ट्र के रूप में, उन बाबा साहेब अंबेडकर के योगदान व महानता के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहना चाहिए जिन्होंने हमें न केवल दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान दिया बल्कि ऐसा संविधान दिया जो संपूर्ण भारत के विचारों को समाहित करता है।

Kartikeya Sharma is a Member of the Rajya Sabha.

Kartikeya Sharma

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