हिसार. उम्मीद के मुताबिक भाजपा के भव्य बिश्नोई ने आदमपुर उपचुनाव जीत लिया है। जिस दिन कांग्रेस ने जयप्रकाश – जेपी को आदमपुर उपचुनाव में अपना उम्मीदवार घोषित किया था तभी से भव्य की जीत में कोई संशय नहीं था । भव्य की जीत को यकीनी बनाने के लिए उनके मुख्यमंत्री रहे स्व. दादा भजनलाल के नाम, भाजपा सरकार के अलावा कांग्रेस की भूमिका की भी दाद देनी पड़ेगी। कांग्रेस ने जेपी को उम्मीदवार बना कर ये सुनिश्चित किया कि भव्य की जीत में किसी तरह की अड़चन न आए। ये सर्वविदित है आदमपुर हमेशा से भजनलाल परिवार का गढ़ रहा है। 1968 में भजनलाल ने पहली दफा आदमपुर से जीत का आगाज किया था । उसके बाद वे तीन दफा हरियाणा के सीएम और केंद्रीय मंत्री रहे । आदमपुर की जनता ने हमेशा उनको और उन्होंने आदमपुर की जनता को सिर आंखों पर बिठाए रखा। आदमपुर से भजनलाल के अलावा उनकी बीवी जसमा देवी, बेटे कुलदीप बिश्नोई भी विधायक रह चुके हैं । भव्य बिश्नोई अपने परिवार की तीसरी पीढी हैं जो अब आदमपुर की जनता की सेवा के लिए व्याकुल और बेताब नजर आ रहे हैं ।
दरअसल मामला कुछ यूं है कि जब तक भजनलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे तब तक उन्होंने आदमपुर को विकास के मामले में कभी पिछड़ने नहीं दिया। उनके समय में इस इलाके के लोगों को खूब सरकारी नौकरियां मिली। उम्मीद से बढ कर मिली। यहां के बहुत से लोगों को हरियाणा सरकार में विभिन्न बोर्ड – निगमों में चेयरमैन – सदस्यों के तौर पर एडजैस्ट कर उनको सत्ता की मलाई चटवाई गई। उनकी मौज करवाई गई। इस कारण से इस इलाके में भजनलाल के प्रति इज्जत और श्रद्धा का भाव है । जब भजनलाल विपक्ष में थे तो भले ही वो आदमपुर में ज्यादा विकास काम ना करवा पाए हों, लेकिन वो अपने क्षेत्र के लोगों के सुख दुख में सदा हाजिर रहते थे। अपने लोगों को सदा संभालते थे। लगातार सक्रिय रहते थे ।
कुलदीप आए तो बदल गई बयार बाद में जब कुलदीप बिश्नोई आदमपुर से विधायक बनने लगे तो वहां के लोगों के साथ वो रिश्ता और अपनापन नहीं निभाया जो उनके पिता भजनलाल निभाते थे । कुलदीप के बारे में ये शिकायतें आम थी कि वे जीत के बाद विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय नहीं रहते और केवल चुनावी दिनों में ही मुंह दिखाई के लिए यहां आते हैं। वे लोगों को फोन पर भी उपलब्ध नहीं रहते थे और उनकी इस कार्यशैली से यहां के लोगों में उनके प्रति नाराजगी थी । कुलदीप के पास आदमपुर के लोगों के लिए बताने के लिए ऐसा कुछ नहीं था जिस के आधार पर लगे कि उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों के कल्याण का बीड़ा उठाया है। यहां फलां फलां विकास के काम करवाए हैं। वो केवल अपने पिता भजनलाल के नाम पर ही विधायक बनते रहे । ऐसा भी नहीं है कि कुलदीप को ये जानकारी न हो कि यहां के लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं, इसलिए उन्होंने चुनाव प्रचार के आखिरी दिन जनसभा में आदमपुर के लोगों से माफी भी मांगी। उन्होंने कहा कि अगर उनसे, उनकी बीवी रेणुका और बेटे भव्य से कोई गलती हो गई हो तो लोग उनको माफ कर दें। उनकी गलती की सजा इस उपचुनाव में भव्य को ना दें। कुलदीप ने ये माफी अचानक नहीं मांगी। यूं ही नहीं मांगी। माफी मांगने का उनका ये पैंतरा सोची समझी रणनीति का ही हिस्सा था। विधायक रहते हुए वो हरियाणा विधानसभा में बहुत कम नजर आए और जब कभी आए तो आदमपुर के लोगों के हकों की लड़ाई के लिए गंभीर नजर नहीं आए। जब कुलदीप बिश्नाई कांग्रेस में थे तब मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने भी उनके विधानसभा में गैरहाजिर रहने पर तंज कसते हुए कहा था कि वो 80 फीसदी समय विधानसभा से गैरहाजिर ही रहते हैं । कुलदीप बिश्नोई के भाजपा में शामिल होने के कारण आदमपुर में फिर से उपचुनाव की नौबत आ गई । इस दफा उनके बेटे भव्य यहां से भाजपा की टिकट पर उतरे ।
रही सही कसर कांग्रेस ने पूरी कर दी हालांकि जनता में कुलदीप के रवैये को लेकर गहरी नाराजगी थी, लेकिन भाजपा की टिकट पर भव्य का उम्मीदवार होने से उनकी सियासी राह आसान हो गई। चूंकि भाजपा सरकार का दो बरस का कार्यकाल अभी बाकी है, इसलिए इस तथ्य की भव्य की जीत में सकारात्मक भूमिका रही । लोगों ने मनोहर राज में हिस्सेदारी पाने को तरजीह दी। यहां विकास कामों की आस में उनको तव्वजो दी। रही सही कसर कांग्रेस ने पूरी कर दी। कांग्रेस ने 2009 में आदमपुर से जयप्रकाश को टिकट दी थी। उस चुनाव में हारने के बाद जयप्रकाश कभी दोबारा यहां नहीं दिखे। उसके बाद वे कलायत से निर्दलीय विधायक भी बन गए। अब आदमपुर उपचुनाव में अचानक से कांग्रेस ने जयप्रकाश को उम्मीदवार बना कर यहां गाजे बाजे के साथ उनकी एंट्री करवा दी। अचानक से उनके दिल में आदमपुर के लिए मोहब्बत जवान हो गई । 13 बरस बाद अचानक से जयप्रकाश लोगों को ये बताने समझाने और याद दिलाने लगे कि वे आदमपुर से कितनी मोहब्बत करते हैं। अगर कांग्रेस यहां से किसी स्थानीय व्यक्ति, खासतौर पर पिछड़ा वर्ग से किसी को अपना उम्मीदवार बना देती तो चुनाव के नतीजे कुछ भी हो सकते थे ।
आदमपुर की जनता भव्य की खाट खड़ी करने के लिए लगभग बेताब थी, लेकिन जब देखा कि सामने तो जयप्रकाश से मुकाबला है तो फिर जनता के पास विकल्पहीनता के हालात बन गए। इस हालात पर कहा जा सकता है… आंधियां जाओ अब करो आराम हम खुद अपना दीया बुझा बैठे जनता के भरोस पर खरा उतरने की चुनौती अब जब भव्य चुनाव जीत ही गए हैं तो उनको अपने पिता कुलदीप पर लगे सारे सियासी दाग धब्बों को छुड़ाने के लिए पहले दिन से कमर कस कर मैदान में उतरना चाहिए । उनको ये साबित करना होगा कि भले ही वो विदेश से शिक्षित हैं, लेकिन अब वो आदमपुर के लोगों के सुख दुख के साथी बन कर रहेंगे। वो खुद के बारे में किए गए इस दुष्प्रचार का भी करारा जवाब दे सकते हैं कि जिसमें विरोधियों ने कहा था कि चुनाव के बाद वो विदेश भाग जाएंगे। चूंकि हरियाणा और केंद्र में भाजपा सरकार है। भाजपाई इसे डबल इंजन सरकार बताया करते हैं। डबल इंजन सरकार के जरिए उनको आदमपुर में विकास की गंगा बहानी होगी । कोशिश करनी होगी कि कम से एक बड़ी विकास की परियोजना वे केंद्र सरकार के जरिए आदमपुर में लेकर आएं। इसके लिए उनको हरियाणा सरकार के सहयोग की भी दरकार होगी । उनके पास समय बहुत कम हैं। इस अवधि के दौरान उनको आदमपुर की समस्याओं के निराकरण के लिए सरकार के सहयोग से रोड़ मैप बनाना होगा। इस पर अभी से जुट जाना होगा । केवल बातों से नहीं, काम करके दिखाना होगा। आदमपुर की जनता तो 54 बरसों से भजनलाल परिवार का आंख मूंद कर साथ देती आई है, अब ये भव्य का दायित्व बनता है कि वो इस भरोसे पर खरा उतरें। वो ये साबित करें कि वो अपने पिता कुलदीप से अलग हट कर हैं। चुनाव में बेशक वो भाजपा उम्मीदवार होने और सामने कांग्रेस का कमजोर प्रत्याशी होने से जीत गए, लेकिन हकीकत में उनका दिल आदमपुर की जनता के लिए धड़कता है । और ये सब बातों से नहीं होगा। इसके लिए उनको काम कर के दिखाना होगा। उनको ये साबित करना होगा कि आदमपुर की जनता ने उनको विजयी बना कर गलती नहीं की ।
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