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गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी का आख़िरी वक्त प्रचार अभियान

वडोदरा. जैसा की हम सभी लोग जानते हैं कि वायनाड के सांसद और कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी फ़िलहाल “भारत जोड़ो” यात्रा के ज़रिए अपनी पार्टी की खोई हुई सियासी हैसियत की ज़मील को वापस तलाश रहे हैं, उनकी पार्टी इसी साल पंजाब की सियासत से बाहर हुई है और महाराष्ट्र की सियासी उठापटक […]

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गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी का आख़िरी वक्त प्रचार अभियान
  • November 22, 2022 9:16 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

वडोदरा. जैसा की हम सभी लोग जानते हैं कि वायनाड के सांसद और कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी फ़िलहाल “भारत जोड़ो” यात्रा के ज़रिए अपनी पार्टी की खोई हुई सियासी हैसियत की ज़मील को वापस तलाश रहे हैं, उनकी पार्टी इसी साल पंजाब की सियासत से बाहर हुई है और महाराष्ट्र की सियासी उठापटक में भी उनकी पार्टी सत्ता के गलियारों से बाहर हो गई है, ऐसे में बतौर नेता राहुल गांधी की कोशिश फिर से कांग्रेस पार्टी को ज़िंदा करने की होगी, अभी उनकी शुरुआत दक्षिण भारत से हुई है लेकिन गुजरात चुनाव के मद्देनज़र उन्होंने राजकोट और सूरत का रुख़ किया है, इस बीच 21 और 22 नवंबर को “भारत जोड़ो” यात्रा को रोका गया है। ग़ौरतलब है, राहुल गांधी ने हिमाचल प्रदेश और दिल्ली एम.सी.डी. चुनाव को कोई ख़ास तरजीह नहीं दी है और हिमाचल का सारा ज़िम्मा अपनी बहन और ए.आई.सी.सी. जनरल सेक्रेटरी प्रियंका गांधी और पार्टी के कद्दावर नेताओं के भरोसे छोड़ दिया है।

गुजरात विधानसभा चुनाव से राहुल गांधी की दूरी बनाए रखने की एक वजह ये भी है कि जब भी राहुल गांधी बतौर नेता कांग्रेस को मज़बूत करने के लिए चुनावी रण में उतरते हैं, उनकी तुलना सीधे तौर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जाने लगती है जिससे की न चाहते हुए भी कांग्रेस पार्टी को नुकसान होता है। लिहाज़ा इस बार राहुल गांधी गुजरात से एक सोची समझी रणनीति के तहत ही दूरी बनाए हुए हैं, अब इस प्रयोग से कांग्रेस को फ़ायदा पहुँचता है या नुकसान ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन अभी कांग्रेस पार्टी उनकी और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ग़ैरहाज़िरी से ख़ासी परेशानी में दिखाई दे रही है। कांग्रेस पार्टी इस वक्त दोहरी परेशानी से जूझ रही है, शीर्ष नेतृत्व की ग़ैर मौजूदगी तो परेशानी की एक बड़ी वजह है ही साथ ही साथ पार्टी के बड़े नेताओं का पलायन भी एक गंभीर मुद्दा है। अगर हम बात करें मोहन सिंह राठवा की तो उनकी हैसियत के नेता को खोना बतौर पार्टी बड़ा भारी नुकसान है, और इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक ये है कि वही नेता आपके विपक्षी के साथ जाकर आपके ख़िलाफ़ चुनावी अभियान भी शुरु कर दे। आपको बताते चलें कि मोहन सिंह राठवा 10 बार कांग्रेस विधायक रह चुके हैं और आदिवासी समाज में मज़बूत पकड़ रखते हैं।

फ़िलहाल राहुल गांधी ने गुजरात का रुख़ कर लिया है जिसमें कि राजकोट और सूरत जैसे बड़े शहरों में वो सार्वजनिक रैलियों और जनसभाओं के ज़रिए जनता के बीच कांग्रेस की खोई साख को बचाने के लिए मैदान में उतरेंगे।

 

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