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एंटी हेट स्पीच कानून की कवायद

नुपूर शर्मा के बयान पर हंगामा क्यों बरपा बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नुपूर शर्मा द्वारा उनके खिलाफ देश भर में दर्ज एफाआईआर को दिल्ली स्थानांतरित करने को लेकर जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थी उसमें उन्हें कोई राहत तो नहीं मिली अलबत्ता जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस जेबी पारदीवाला की टिप्पणियों ने नई बहस […]

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एंटी हेट स्पीच कानून की कवायद
  • July 4, 2022 4:42 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नुपूर शर्मा के बयान पर हंगामा क्यों बरपा

बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नुपूर शर्मा द्वारा उनके खिलाफ देश भर में दर्ज एफाआईआर को दिल्ली स्थानांतरित करने को लेकर जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थी उसमें उन्हें कोई राहत तो नहीं मिली अलबत्ता जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस जेबी पारदीवाला की टिप्पणियों ने नई बहस को जन्म दे दिया.

नुपूर शर्मा मौजूदा माहौल के लिए कितनी जिम्मेदार ?

जेबी पारदीवाला ने तो देश के मौजूदा माहौल के लिए नुपूर को हो जिम्मेदार ठहरा दिया, यहां तक कह दिया कि उदयपुर में जो सिर कलम करने के लिए घटना हुई है उसके लिए वही जिम्मेदार हैं. नुपूर शर्मा के वकील मनिंदर सिंह ने जब कहा कि उन्होंने माफी मांग ली है तो उन्होंने टीवी पर आकर माफी मांगने को कहा. दोनों जजों की बेंच याचिका खारिज कर रही थी लेकिन नुपूर शर्मा के वकील ने याचिका को तत्काल वापस ले ली. नुपूर शर्मा के वकील दुहाई देते रहे कि इससे उनके मुवक्किल की जान पर खतरा बढ़ जाएगा लेकिन जजों ने उनकी एक नहीं सुनी.

सोशल मीडिया पर जज हुए ट्रोल

इसके बाद जब कोर्ट का दो लाइनर आदेश आया तो उसमें टिप्पणियों का कोई जिक्र नहीं था. फिर क्या था मीडिया और सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई कि जजों की इस तरह की टिप्पणी कहां तक जायज है. यदि नुपूर शर्मा को कुछ हुआ तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा. द कश्मीर फाइल्स वाले विवेक अग्निहोत्री ने विक्टिम शेमिंग यानी जो पीड़ित है उसको ही गलती के लिए जिम्मेदार ठहराने को लेकर सवाल उठा दिया. गीतकार मनोज मुंतशिर ने कहा की सर्वोच्च न्यायालय का वक्तव्य नुपूर शर्मा के खिलाफ भावनाएं भड़का सकता है, उनकी जान खतरे में पड़ सकती है. न्यायपालिका भी यदि शब्द संपादित किये बिना बोलने लग जाए तो समझिए हम कठिन दौर से गुजर रहे हैं. इसके बाद सोशल मीडिया पर न्यायपालिका व जजों के खिलाफ टिप्पणियों की बाढ़ आ गई. जजो की पृष्ठभूमि सोशल मीडिया पर चलने लगी और जस्टिस पारदीवाल के बारे में जो ब्योरा मिला उसके मुताबिक उनके पिता बुर्जोर कवासजी पारदीवाला कांग्रेस के विधायक व स्पीकर रहे. इन टिप्पणियों से पारदीवाला बहुत परेशान हुए और बोले कि स्वस्थ आलोचना ठीक है लेकिन अनाप शनाप टिप्पणियों के मद्देनजर सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए कानून बनना चाहिए.

हेट स्पीट के लिए कानून

अब खबर है कि केंद्र सरकार प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारतीय संघ जैसे कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को आधार बनाकर हेट स्पीच के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी कर रही है. उसका ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है. इस समय सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक, ट्विटर, कू व ह्वाट्सएप के जरिए सबसे ज्यादा हेट स्पीच व अफवाहें फैलाई जाती है. कानून में बाकायदा हेट स्पीच को परिभाषित किया जाएगा. देश में मौजूदा समय में 7-8 कानून हैं जिनके जरिए ऐसी समस्याओं से निपटा जाता है लेकिन हेट स्पीच की स्पष्ट परिभाषा न होने की वजह से बहुत ही कन्फ्यूजन रहता है.

देश में हेट स्पीच परिभाषित नहीं

अभी सोशल मीडिया पर हेट स्पीच फैलाने को लेकर भारतीय दंड संहिता यानी आपीसी की धारा 153 ए, यानी धर्म नस्ल आदि के आधार पर वैमनष्यता फैलाना, 153 बी -राष्ट्रीय एकता के खिलाफ बयान देना, 124 ए यानी राजद्रोह (फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोक दिया है) 295 ए 298 मतलब धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना तथा 501 व 502 यानी अफवाह या नफरत भड़काने को लेकर कार्रवाई होती है. इसके अलावा जन प्रतिनिधित्व कानून में भी धार्मिक, जातीय व भाषाई आधार पर प्रचार को चुनावी दुराचरण में रखा गया है.नागरिक अधिकार अधिनियम 1955, धार्मिक संस्था कानून, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमन कानून, सिनेमैटोग्राफी कानून व सीआरपीसी यानी आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत परिस्थिति अनुसार कार्रवाई होती है.

अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में न पड़ जाए

इसमें कोई दो राय नहीं कि हेट स्पीच कि इजाजत किसी भी सूरत में नहीं दी जा सकती लेकिन एक डर यह भी है कि हेट स्पीच की आड़ में कहीं अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात तो नहीं किया जाएगा. ये डर यूं ही नहीं हैं, ऐेसे कई कानून हैं जिन्हे बनाते समय ऐसी ही मंशा व्यक्त की गई लेकिन बाद के दिनों में उसका दुरुपयोग हुआ. पश्चिमी देशों खासतौर से यूरोप और अमेरिका में नस्लीय बात करना, भड़काऊ बयान देने को हेट स्पीच माना गया है. कोर्ट ने अपने फैसलों में साफ कहा है कि घटिया अभिव्यक्ति की इजाजत नहीं दी जा सकती. ऐसे में यदि भारत सरकार इस दिशा में कदम उठाती है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन कानून में चेक एंड बैलेंस भी होना चाहिए अन्यथा अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में पड़ सकती है.

 

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