नई दिल्ली: अब आपके फुटवियर (जूते-चप्पल) पहले की तुलना में अधिक टिकाऊ होंगे। उनमें फिसलन नहीं होगी, क्रैक भी नहीं आएगा और फुटवियर के ऊपर का सोल भी अधिक लचीला होगा। 2- 3 माह चलने वाला फुटवियर 7-8 माह चलेगा। खराब फुटवियर की वजह से होने वाले घुटने दर्द की शिकायत भी कम हो जाएगी। […]
नई दिल्ली: अब आपके फुटवियर (जूते-चप्पल) पहले की तुलना में अधिक टिकाऊ होंगे। उनमें फिसलन नहीं होगी, क्रैक भी नहीं आएगा और फुटवियर के ऊपर का सोल भी अधिक लचीला होगा। 2- 3 माह चलने वाला फुटवियर 7-8 माह चलेगा। खराब फुटवियर की वजह से होने वाले घुटने दर्द की शिकायत भी कम हो जाएगी। 1 अगस्त से भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) से सर्टिफायड फुटवियर की ही बिक्री बाजार में हो पाएगी। इन सुविधाओं के बदले ग्राहक को पहले की तुलना में 5% तक अधिक कीमत भी चुकानी पड़ सकती है, क्योंकि बीआइएस सर्टिफिकेट लेने के लिए निर्माताओं को कई गुणवत्ता मानकों का पालन करना होगा और इससे उनकी लागत बढ़ेगी।
अभी सालाना 50 करोड़ से कम का कारोबार करने वाले फुटवियर निर्माताओं को इस नियम से बाहर रखा गया है। 50 करोड़ सालाना से अधिक के टर्नओवर वाले फुटवियर निर्माताओं के पुराने स्टॉक पर यह नियम लागू नहीं होगा। सरकार ने जून, 2025 तक पुराने माल को बेचने की अनुमति दी है।
फुटवियर में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल जैसे कि रेक्सिन, इनसोल, लाइनिंग की कमेकिल जांच करनी होगी। ऊपरी भाग के मेटेरियल को टीयर स्ट्रेंथ और बेहतर लचीलापन की जांच में पास होना होगा।
फुटवियर निर्माताओं का कहना है कि बीआइएस नियम के पालन के लिए उन्हें छः से आठ लाइसेंस लेने पड़ते हैं। हर लाइसेंस पर दो -तीन लाख रुपए खर्च होते हैं। फुटवियर के बिजनेस में 70% से अधिक निर्माता 50 करोड़ से कम टर्नओवर वाले हैं। इन व्यापारीयों पर नियम लागू होने के बाद ही पूर्ण रूप से गुणवत्ता वाले फुटवियर बाजार में बिकेंगे। कुछ समय बाद छोटे निर्माताओं को भी बीआइएस नियम के दायरे में लाया जाएगा।
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