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उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का फरमान, मदरसों में मुस्लिम छात्र नहीं पहन पाएंगे कुर्ता-पजामा

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मदसरों की पढ़ाई में सुधार करने को मकसद बताते हुए नया ड्रेस कोड लागू करने का प्रस्ताव लाई है. एनसीआरटी की किताबों से पढ़ाई शुरू करवाने वाले फैसले के बाद अब यूपी सरकार के इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद छात्र मदरसो में कर्ता पयजामा पहन कर नहीं जा सकेंगे.

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Madrasa
  • July 4, 2018 8:57 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

लखनऊ. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार जल्द मदरसों में ड्रेस कोड लागू करने जा रही है. यूपी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि उनकी सरकार (भाजपा) मदरसों को दूसरे शैक्षणिक संस्थानों की तरह विकसित करने चाहती हैं इसीलिए वह मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को नई ड्रेस उपलब्ध करवाएगी. इस फैसले के बाद मदरसों में बच्चे कुर्ता पयजामा पहन कर नहीं जा पाएंगे. योगी सरकार के इस प्रस्ताव को मिली जुली प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा है.

अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि प्रदेश सरकार शिक्षा पैटर्न में सुधारात्मक परिवर्तन करना चाहती है. उन्होंने कहा कि इससे पहले भी भाजपा सरकार कई सुधारात्मक कदम उठा चुकी है. मोहसिन रजा ने मदरसों में ड्रेस कोड लागू करने के प्रस्ताव पर एक समाचार चैनल से कहा कि ऐसा करने के पीछे गहरा मकसद है. दरअसल मदरसे में पढ़ने वाले बच्चें कुर्ता पयजामा पहन कर पढ़ने जाते हैं. बच्चों के ऊंचे पयजामे और यह विशेष परिधान उन्हें दूसरे पढ़ने वाले छात्रों से अलग बनाता है और साथ ही उनकी पहचान विशेष धर्म से जुड़ता है. इसीलिए हम भेदभाव को खत्म कर पैंट शर्ट या नई ड्रेस कोड लागू करने चाहते हैं.

बता दें इससे पहले मदरसों की शिक्षा सुधार को आधार बनाते हुए प्रदेश सरकार ने एनसीआरटी की किताबों से पढ़ाई करवाना शुरू किया था. योगी कैबिनेट ने मदसरा शिक्षा में बदलाव को मंजूरी दे दी है. इस निर्णय के बाद मदरसे के छात्र उर्दू के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी माध्यम से भी पढ़ाई कर सकेंगे. साथ ही अन्य विषय भी पढ़ सकेंगे.

वहीं इस प्रस्ताव पर मुस्लिम क्लर्क के सुफियान निजामी ने कहा कि इस देश में चल रहे सभी मदरसों और कॉलेजों के लिए ड्रेस कोड सरकार द्वारा तय नहीं किया जाता है. यह निर्णय उस संस्थान की प्रंबंध समिति द्वारा तय किया जाता है. तो, मदरसों के खिलाफ ऐसा भेदभाव क्यों है?

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