नई दिल्ली. प्रजनन और गर्भपात के फैसले के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है. याचिका में अदालत से कहा गया है कि महिलाओं को उनके प्रजनन और गर्भपात के बारे में निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए. साथ ही याचिका में कहा गया कि गर्भपात सिर्फ मां के जीवन बचाने के लिए नहीं हो सकता है. तीन महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. अदालत से याचिकाकर्ता चाहती हैं कि गर्भपात को अपराधीकरण से बाहर किया जाना चाहिए. जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर दिया है.
गौरतलब है कि पिछले काफी समय से प्रजनन और गर्भपात को लेकर महिलाओं के अधिकारों पर चर्चा की जा रही है. कुछ समय पहले एक यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चच न्यायमूर्ति एके सीकरी ने कहा था कि बच्चे पैदा करना या गर्भधारण रोकना ये सब महिलाओं की पसंद पर निर्भर है और इसपर उनका पूरा अधिकार है. उन्होंने कहा कि देश में जब हम प्रजनन अधिकारों की बात करते हैं तो इसका चुनाव करना महिलाओं के पास कम ही होता है. जज एके सीकरी ने आगे कहा कि 21वीं सदी में भी हम मानवता का फल दिलाने में सक्षम नहीं हो सके हैं.
जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि प्रजनन अधिकार असल में मानवाधिकार है और यह व्यक्ति के मान-सम्मना पर आधारित है. जब हम प्रजनन के अधिकारों की बात करते हैं तब इससे महिलाओं का अन्य एक अधिकार जुड़ता है और वह है सेक्सुअल अधिकार. भारत में पति या बुजुर्गों के कहने पर बच्चा पैदा होता है. साथ यह भी तय किया जाता है कि लड़का हो लड़की. जज ने आगे कहा कि अगर हम समानता की बात करते हैं तो महिला को पार्टनर के साथ इन सभी पर मिलकर फैसला लेने का अधिकार होना चाहिए.
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