नई दिल्ली : राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वाश प्रस्ताव का नोटिस दिया है। नोटिस में धनखड़ पर सदन में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने और सत्ता पक्ष की पैरवी का आरोप लगाया गया है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहला मौका है,जब राज्यसभा के किसी सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है। आज हम जानेंगे कि कितने चेयरपर्सन पर अविश्वास प्रस्ताव सदन में लाया जा चुका है।
राज्यसभा में सभापति के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव नोटिस सदन के 72 साल के इतिहास में पहली बार हुई घटना है। विपक्ष के ओर से कहा गया की यह प्रस्ताव किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि संस्था और आसान के संरक्षण के लिए लाया जा रहा है। हालांकि लोकसभा में तीन बार अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है।
पहली बार 18 दिसंबर 1954 को जीवी मावलंकर के खिलाफ ऐसा प्रस्ताव लाया गाय। इस प्रस्ताव को सोशलिस्ट पार्टी के सांसद विघ्नेश्वर मिश्रा लेकर आए थे। दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव जाने-माने सोशलिस्ट मधु लिमये 24 नवंबर 1966 को सरदार हुकुम सिंह के खिलाफ लाए गए थे। यह प्रस्ताव भी खारिज हो गया था। इसके समर्थन में 50 सदस्य भी नहीं जुटे। तीसरी बार अविश्वास प्रस्ताव 15 अप्रैल 1987 को बलराम जाखड़ के विरुद्ध लाया गया था। इसे सोमनाथ चटर्जी लेकर आए थे और यह प्रस्ताव भी पारित नहीं हो सका।
विपक्ष को लगता है कि अगर अविश्वास प्रस्ताव पर बहस हुई तो राज्यसभा के सांसदों को बोलने का मौका मिलेगा। इस दौरान सभापति अपने आसन पर नहीं होंगे और विपक्ष को खुलकर अपनी बात कहने का मौका मिलेगा। अदाणी जैसे मुद्दे पर भी सदस्य अपनी बात रख सकेंगे। इसके अलावा देश में अभी तक कभी सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं आया। ऐसे में इस प्रस्ताव के बहाने वर्तमान विपक्ष और सभापति दोनों का नाम इतिहास में दर्ज होगा। भविष्य में अविश्वास प्रस्ताव के जिक्र के साथ जगदीप धनखड़ का नाम आएगा।
245 सदस्यीय सदन में NDA के 112 सदस्य हैं। NDA के साथ एक निर्दलीय और छह मनोनीत सदस्य भी हैं। विपक्षी गठबंधन के 92 सदस्य हैं। बीजद ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस प्रस्ताव में तकनीकी अड़चन भी देखने को मिल रहा है। अविश्वास प्रस्ताव के लिए 14 दिन का नोटिस चाहिए, तभी एजेंडे में आ सकता है. शीत सत्र में 10 दिन शेष हैं। ऐसे में इसका भविष्य क्या होगा यह बजट सत्र में लाया जाएगा या नए सिरे से प्रस्ताव आएगा। इस पर अस्पष्टता है. ऐसे औपचारिक रूप से पहले कभी नहीं हुआ है।
सबसे पहले अविश्वास प्रस्ताव के कारणों को गिनाते हुए संविधान के अनुच्छेद 67 (बी) के तहत राज्यसभा महासचिव को इससे संबंधित 50 सांसदों के हस्ताक्षर वाला 14 दिन का नोटिस देना होता है। इस नोटिस में अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के इरादे और कारणों की जानकारी देनी होती है।
अविश्वास प्रस्ताव लाने के कारण वैध और सांविधानिक होने चाहिए।
नोटिस के परीक्षण के बाद अविश्वास प्रस्ताव की सूचना सभापति को देकर प्रस्ताव को सदन के पटल पर लाया जाता है।
उच्च सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले समूह के सदस्य इसके कारणों का हवाला देते हैं। फिर इस पर चर्चा शुरू होती है। चर्चा के दौरान सभापति आसन पर नहीं रह सकते।
राज्यसभा में चर्चा के बाद इस पर मतदान होता है। साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित होने पर यही प्रक्रिया लोकसभा में दोहराई जाती है। अगर राज्यसभा में प्रस्ताव गिर जाता है, तो इसे अस्वीकृत मानते हुए लोकसभा में पेश नहीं किया जाता।
लोकसभा में भी अगर प्रस्ताव को साधारण बहुमत से पारित किया जाता है तो सभापति को पद छोड़ना होगा। अविश्वास प्रस्ताव क संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत के समर्थन के बाद ही सभापति को पद त्याग करना होता है। दोनों सदनों में साधारण बहुमत का अर्थ मतदान के समय मौजूद सदस्यों के बहुमत से है।
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