नई दिल्ली। दिल्ली में आगामी नगर निगम चुनावों के लेकर मुस्लिम वोटर्स की सोच में बदलाव आ सकता है। हाल ही में हुई घटनाओं और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया को लेकर शायद नगर निगम चुनावों में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। एमसीडी के 250 वार्डों के लिए 4 दिसंबर को होने वाले […]
नई दिल्ली। दिल्ली में आगामी नगर निगम चुनावों के लेकर मुस्लिम वोटर्स की सोच में बदलाव आ सकता है। हाल ही में हुई घटनाओं और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया को लेकर शायद नगर निगम चुनावों में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। एमसीडी के 250 वार्डों के लिए 4 दिसंबर को होने वाले चुनावों में देखिए राजनीतिक दलों ने मुस्लिम समुदाय पर कितना भरोसा किया है।
दिल्ली में यदि मुस्लिम समुदाय की बात करें तो उसकी आबादी दिल्ली की आबादी की कुल 13 फीसदी है। मौजूदा समय में नगर निगम चुनावों को लेकर मुस्लिम बहुल इलाकों में राजनीतिक पार्टियां अपना दांव खेल रही हैं, लेकिन बीते समय में हुए क्रिया कलापों को देखते हुए क्या मुस्लिम समुदाय की चुनावों मे रणनीति बदल गई है, क्या अब वह सत्ता परिवर्तन के लिए भेड़ चाल न चलते हुए अपना व्यक्तिगत फैसला लेने को तैयार है।
हम आपको बता दें कि नगर निगम चुनावों के चलते कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय के 24 उम्मीदवारों पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया है, वहीं यदि आम आदमी पार्टी की बात करें तो उसने मात्र 7 और भारतीय जनता पार्टी ने 4 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। 250 वार्डों में होने वाले चुनावों के मद्देनज़र सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी कांग्रेस ने ही मुस्लिम समुदाय को दी है। क्या कांग्रेस के यह फैसला और पिछले समय के क्रिया कलापों और आम आदमी पार्टी के रुख को देखते हुए मुस्लिम समुदाय वोट के माध्यम से अपना रुख स्पष्ट करेगा।
इन चुनावों मे मुस्लिम समुदाय को क्या करना चाहिए यह तो परिस्थितियों एवं राजनीतिक दलों के रवैये को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम मतदाताओं को फैसला करना है।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, यदि आम आदमी पार्टी की बात करें तो उसका रवैया मुस्लिम समुदाय के प्रति ऐसा रहा है जैसे भाजपा शांति के साथ अपनी फंडामेंटल राजनीति कर रही हो, यदि सीएए और एनआरसी की बात करें तो केजरीवाल ने उसका विरोध केवल भाजपा के विरोध के तहत किया था, न कि मुस्लिम समुदाय के हितों को देखते हुए।
केजरीवाल न ही शाहीन बाग़ के आंदोलन में नज़र आए और नही दिल्ली दंगों के बाद मुस्लिम समुदाय को सांत्वाना देते हुए नज़र आए। हो सकता है कि, दिल्ली में केजरीवाल की लहर के चलते उन्हे मुस्लिम बहुल इलाकों में जीत का स्वाद आसानी से चखने को मिल जाए लेकिन किसी भी लहर से हट कर बात करें तो मुस्लिम समुदाय अन्य दलों की अपेक्षा कांग्रेस पर ही भरोसा कर सकता है।