Why Muslims Don't Celebrate Christmas: 25 दिसंबर को विश्व के अधिकतर देशों में ईसा मसीह के जन्मदिवस की खुशी में क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है. पश्चिमी देशों में क्रिसमस का सेलिब्रेशन इतनी धूमधाम से होता है कि काफी संख्या में मौजूद उन लोगों को इतना अंदाजा नहीं होगा कि कई देशों में यह तारीख आम दिनों जैसी होती है. उनमें से सबसे अधिक देश मुस्लिम समुदाय के हैं. अब सवाल सबसे बड़ा यही है कि जब मुस्लिम समुदाय प्रभु ईशु को अपना पैगंबर मानते हैं तो उनकी याद में क्रिसमस मनाना क्यों गलत समझते हैं.
नई दिल्ली. दुनियाभर के कई देशों में 25 दिसंबर का दिन क्रिसमस के त्योहार के रूप में मनाया जाता है. हालांकि दुनिया के कई ऐसे मुस्लिम देश भी हैं, जहां कैलेंडर पर छपी 25 दिसंबर की तारीख आम दिनों जैसे होती है. पिछले काफी समय ये चर्चा का विषय भी रहा है कि मुस्लिम लोग जब ईसाई समुदाय के प्रभु ईसा मसीह को अपना पैगंबर मानते हैं तो उनकी जन्मदिवस के रूप में खुशी से मनाया जाने वाला त्योहार क्रिसमस क्यों नहीं मनाते हैं.
दरअसल इस्लामिक ग्रंथ कुरान में ईसा मसीह का वर्णन कई बार किया गया है. माना जाता है कि ईसा मसीह मुसलमानों के सबसे आखिरी पैगंबर मोहम्मद से पहले दुनिया में आए थे. इतना ही नहीं कुरान में ईशु को जन्म देने वाली मां मरियम के बारे में भी बताया गया है. हालांकि ईसाई ग्रंथ बाइबिल में पैंगबर मोहम्मद का जिक्र नहीं किया गया है. लेकिन अगर मुस्लिम समुदाय के सामने आप ईसा मसीह और मां मरियम का नाम लेते हैं, तो वे इसका सम्मान करते हैं, लेकिन क्रिसमस नहीं मनातें.
मुस्लिम समुदाय क्यों नहीं मनाता क्रिसमस
यूं तो दुनियाभर कि किताबों में इन वजहों का वर्णन किया गया है. लेकिन जब एक आम मुसलमान से क्रिसमस ना मनाने की वजह पूछी जाती है तो वे बुजुर्गों से मिली इस्लामी शिक्षा का हवाला देते हैं और कहते हैं इस्लाम में इसको लेकर मनाही की गई है. उनका कहने का अर्थ समझें तो इस्लाम धर्म में ईसा मसीह को पैगंबर मानकर इज्जत तो दी जाती है लेकिन ईसाई धर्म की ओर से शुरू किया गया त्योहार क्रिसमस नहीं मनाया जाता. यानी इसका एक मुख्य कारण इन दो धर्मों के बीच बनी दीवार भी है.
हालांकि प्रभु ईशु ने यह दीवार नहीं खींची लेकिन पूरी दुनिया में ईसाई और इस्लामिक चरमपंथियों ने समाज में दरार जरूर पैदा की. दोनों धर्मों को विभाजित करने की सोच कुछ साल पुरानी नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है. इटली के शहर बोलोग्ना में 15वीं शताब्दी के चर्च सेन पेट्रोनियो में लगी कुछ विवादित तस्वीरों में पैगंबर मोहम्मद की छवी पर हमला किया गया है. इतना ही नहीं यूरोप में कई कलाकृतियां पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ मौजूद हैं.
धर्मों के बीच बनी दीवार भी एक बड़ी वजह
ऐसा नहीं है कि इन तस्वीरों और कलाकृतियों का विरोध नहीं किया गया. साल 2002 में बोलोग्ना चर्च की मूर्तियों को ध्वस्त करने का शक इस्लामी चरमपंथियों पर किया गया था. जिसके बाद इस्लाम के नाम पर कई देशों में सामुहिक हत्याएं की गई. इससे समाज में दोनों धर्मों के बीच एक बड़ी दरार पैदा हो गई. और दुनिया में सबसे बड़े स्तर पर मनाएं जाने वाले क्रिसमस और ईद के त्योहार को लोगों ने अपने धर्म और समाज के अनुसार अलग हिस्सों में बांट लिया.
दोनों धर्मों के बंट जाने के बाद भी मुस्लिम समाज ईसा मसीह को अपना पैगंबर मानता है लेकिन क्रिसमस नहीं मनाता. लेकिन दुनिया में सिर्फ मुस्लिम ही नहीं कई और ऐसे धर्म और देश भी हैं जिनमें क्रिसमस को बड़े त्योहार के रूप में नहीं देखा जाता क्योंकि वे ईसाई समुदाय बहुल देश नहीं है, इसका एक बड़ा उदाहरण भारत भी है. हालांकि भारत में सभी त्योहारों को बराबर सम्मान दिया जाता है लेकिन क्रिसमस के दिन जो रौनक आप पश्चिमी देशों में देखते हैं, उतनी भारत में नहीं.
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