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त्रिपुरा में क्यों हारे ईमानदार छवि वाले कम्युनिस्ट सीएम माणिक सरकार, लेफ्ट के पराजय की 10 बड़ी वजह

नई दिल्ली.  केवल माणिक सरकार की छवि पर था चुनाव— दिल्ली के किसी भी पत्रकार से पूछिए वो आपको बताएगा कि माणिक सरकार रिटर्न नहीं भरते, उनके खाते में 10 हजार रुपए भी नहीं है, सेलरी पार्टी को दान कर देते हैं। उनकी पत्नी रिक्शे में घूमती हैं आदि आदि। जब सीताराम येचुरी से पूछा गया कि त्रिपुरा हार रहे हैं क्या तो उनका जवाब था माणिक सरकार बीजेपी के लिए त्रिपुरा में वाटरलू बना देंगे। यानी पूरा चुनाव माणिक सरकार की छवि पर था, ना उनकी लगातार कमजोर होती पार्टी के नेताओं का कोई करिश्मा साथ था और ना जमीन पर सहयोग। आलम ये था कि अकेले होने और राज्य के प्रशासन का भी बोझ होने के चलते माणिक सरकार ने अपनी कई रैलियां इन चुनावों में रद्द कीं।

2—माणिक बना दिए मनमोहन—मोदी ने आक्रामक ढंग से माणिक सरकार पर हमला बोला, कहा कि माणिक छोड़िए, हीरा बीजेपी को अपनाइए। मोदी ने ये भी कहा कि माणिक के सफेद कुर्ते की एक डार्क साइड भी है। अमित शाह ने दावा किया कि माणिक के सारे मंत्री पश्चिम बंगाल के नेताओं की तरह चिटफंड के धंधे में लिप्त हैं, हमारी सरकार आते ही जेल में होंगे। योगी ने कहा कमीशन खोरी व्याप्त है पूरे त्रिपुरा में। साफ था माणिक की इमेज मनमोहन सिंह की तरह बनाई गई, जिसको सामने रखकर सब राज्य को लूटने में लगे थे।

3—बेरोजगारी ले डूबी—जिन बेरोजगारी के आंकड़ों को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार पर लगातार विपक्ष निशाना साधे हुए है, उन्हीं आकंड़ों के मुताबिक त्रिपुरा बेरोजगारी में पूरे देश में नंबर वन है। उसके बाद सिक्किम और फिर केरल तीसरे नंबर पर है। त्रिपुरा और केरल दोनों लैफ्ट के राज्य थे। त्रिपुरा में बेरोजगारी की दर 19.7 फीसदी है, कुल 36 लाख निवासियों में से 7.25 लाख बेरोजगार हैं। बीजेपी के त्रिपुरा इंचार्ज सुनील देवधर ने ये भी दावा किया कि अगर दो दशक से माणिक सरकार सत्ता पर काबिज हैं, तो 67 फीसदी जनता यहां की गरीबी रेखा से भी नीचे है।

4—सेंट्रल की स्कीमें लागू नहीं—त्रिपुरा में रैली करने आए हर बीजेपी नेता मोदी, शाह और योगी आदि ने दावा किया कि सेंट्रल की कोई भी स्कीम त्रिपुरा में कायदे से लागू नहीं, ज्यादातर तो लागू ही नहीं। उज्जवला योजना, पीएम आवास योजना, स्टैंड अप इंडिया, मुद्रा लोन योजना आदि किसी का भी फायदा त्रिपुरा वासियों को नहीं दिया सरकार ने, ऐसा दावा योगी ने किया। मोदी ने दावा किया कि मनरेगा के तहत 15 हजार करोड़ रुपया हमने त्रिपुरा को दिया, उसका भी कायदे से इस्तेमाल बेरोजगारी दूर करने के लिए नहीं हुआ, मोदी ने ये भी दावा किया त्रिपुरा सरकार अगर राज्य के विकास के लिए 100 पैसा खर्च करती है, तो हर 100 पैसे में से 80 पैसा केन्द्र सरकार देती है।

5—बीजेपी की ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी—कभी कांग्रेस सरकार ने लुक ईस्ट पॉलिसी का नारा दिया था, मोदी सरकार ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी का नारा दिया, जो साकार होता भी दिखा। तमाम रुके हुए प्रोजेक्ट्स को तो तेज गति से बढ़ाया ही, उड़ान, भारतमाला, सागरमाला जैसी योजनाओं के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का लाभ भी मिला। एक स्पोर्ट्स यूनीवर्सिटी भी नॉर्थ ईस्ट को मिली, आईआईएम मिला। छोटे छोटे एयरपोर्ट्स और रेलवे लाइन के जरिए कनेक्टिवटी बढ़ाने का काम चल रहा है। 15 नए रेलवे प्रोजेक्ट्स मोदी सरकार ने नॉर्थ ईस्ट का राज्यों में शुरु किए हैं, 14000 किमी के इन रेलवे प्रोजेक्ट्स के लिए 47000 करोड़ और 3840 किमी हाइवे के लिए 32000 करोड़ मोदी सरकार ने मंजूर किए। 1266 किमी का हाइवे तो बन भी चुका है। इनमें भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत 30000 करोड़ के एक्सप्रेस प्रोजेक्ट्स अलग से हैं। 60000 करोड़ नॉर्थ ईस्ट राज्यों को अंदर की सडकों के लिए मंजूर किए गए हैं। हाइड्रो पॉवर के तमाम प्रोजेक्टस भी शुरू हुए हैं और ये सब काम या इनकी खबरें वहां के लोगों तक पहुंच रही हैं। जिसका रत्ती भर भी मुकाबला करने का दम अकेले माणिक सरकार के बस में नहीं था।

6—माणिक के लोग और जमीनी हकीकत—कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि सीपीएम के लोगों ने गरीबों के लिए काम कर रहे स्वंयसेवी संगठनों का काम करना दूभर कर दिया था, वहां हजारों लोग चुटकियों में मलेरिया और हैजा जैसी बीमारियों से खत्म हो जाते हैं। दूर के गांवों में स्वास्थ्य, बिजली और पानी की गंभीर समस्याएं हैं, सीपीएम का कैडर सालों से सत्ता मे रहने की वजह से करप्ट हो चुका है। केन्द्र सरकार ने जब कई सेवाओं में आधार और मनरेगा में जियो टैगिंग सुविधा लागू की, तो ये सब उजागर हो गया। लेकिन उन पर कार्यवाही नहीं हो पाई है, लेकिन बीजेपी के कार्यकर्ता उनकी ये करतूतें मीडिया के जरिए एक्सपोज कर चुके हैं। बीजेपी के सात कार्यकर्ताओं की हत्या भी कर दी गई। लोगों में इसका मैसेज भी गया।

7– सातवां वेतन आयोग लागू नहीं—बीजेपी के लिए सातवां वेतन आयोग त्रिपुरा में ना लागू होना भी एक बड़ा मुद्दा था। उसने इसको काफी भुनाया। योगी ने भी रैलियों में बोला कि जब यूपी जैसा बड़ा राज्य अपने 14 लाख कर्मचारियों के लिए लागू कर सकता है तो त्रिपुरा क्यों नहीं।

8—सरकारी नौकरियों पर कैडर का कब्जा और सुप्रीम कोर्ट का झटका—त्रिपुरा में इतने सालों से सत्ता में है कि भले ही माणिक सरकार को सीधे दाग ना हो, लेकिन वो कहां कहां नजर रखेंगे। हर सरकारी विभाग में कैडर काबिज है। जैसे आप सरकार पर आरोप लगते हैं कि कार्यकर्ताओं की भर्ती कई विभागों में की गई है, उससे ज्यादा बुरा हाल त्रिपुरा का है। झटका सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसी ही नौकरियों को लेकर दे दिया जब सुप्रीम कोर्ट ने 10,323 टीचर्स की नियुक्ति रद्द कर दी। इससे सरकार की छवि का तगड़ा धक्का पहुंचा।

9—बीजेपी की रणनीति—बीजेपी ने करीब 42,000 हजार कार्यकर्ता पन्ना प्रमुख बनाए। बीजेपी त्रिपुरा इंचार्ज के मुताबिक इसके चलते हजारों फर्जी वोटर्स पकड़े गए। कई मोर्चों पर बीजेपी ने कमाल कर दिया। कांग्रेस को पूरी तरह खत्म करने की रणनीति बनाई, 2015 में ही कांग्रेस के 10 में 6 विधायक पहले टीएमसी में गए, बाद में बीजेपी में आ गए। इस तरह बिना जीते बीजेपी के 6 विधायक हो गए, टीएमसी खत्म हो गई और अब चुनावों में कांग्रेस खत्म हो गई। बीजेपी ने हेमंत विश्वसर्मा को इलेक्शन इंचार्ज बना दिया, स्थानीय समूहों और आईपीएफ से गठजोड़ किया। बंगाली नाथ समुदाय के लिए योगी को मैदान में उतारा, मोदी और शाह का आक्रामक अभियान शुरू किया। संघ के जमीनी कार्यकर्ताओं की मदद ली गई। माणिक सरकार जैसे बेदाग की सरकार में चिराग तले अंधेरा साबित करने में काफी मेहनत की। जितनी केन्द्रीय सरकारी कंपनियां या पीएसयूज थे, उनके कार्यक्रमों में लगातार बड़े बीजेपी नेताओं या मंत्रियों को त्रिपुरा में भेजना जारी रखा। सबसे दिलचस्प था त्रिपुरा के राजा और कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष का बीजेपी की तरफ सीक्रेट झुकाव, वो किसी भी कीमत पर लैफ्ट से छुटकारा चाहते थे और कांग्रेस पिछले 25 सालों में ये नहीं कर पाई थी। वैसे भी बीजेपी ने केवल 35 ऐसी सीटों पर फोकस किया था, जहां सीपीएम केवल 3000 वोटों से जीती थीं।

10— इनकम्बेंसी और अलग राज्य की मांग भी ले डूबी—भले ही माणिक सरकार की हिंसा पर काबू पाने के लिए, अफ्सा हटाने के लिए की गई कोशिशों के लिए तारीफ मिली हो, लेकिन अलग तिपरालैंड की मांग को समर्थन देने के लिए या उठाने के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ी। उसके चलते माणिक सरकार की छवि पर भी सवाल उठे। इतने सालों की सत्ता के बाद लोगों को मोदी और अमित शाह के दावों पर भी भरोसा होने लगा था, वैसे भी बीजेपी की केन्द्र सरकार ने जितने बड़े प्रोजेक्ट्स नॉर्थ ईस्ट में शुरू हुए थे, उनसे भी भरोसा जगा।

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Aanchal Pandey

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