समलैंगिक विवाह पर केंद्र सरकार का रवैया सख्त क्यों? 5 बिंदु में समझें

नई दिल्ली: देश में एक बार फिर समलैंगिक विवाह का मुद्दा चर्चा में है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर समलैंगिक विवाह पर आपत्ति जताई। सरकार ने अपने हलफनामे में इसके कई कारण बताए। सरकार का दावा है कि सामान्य संबंध और समलैंगिक संबंध दोनों अलग-अलग हैं। इसे एक नहीं माना जा सकता। समलैंगिक लोग एक जोड़े के रूप में एक साथ रह सकते हैं, लेकिन उन्हें पति-पत्नी के रूप में नहीं माना जा सकता है।

आपको बता दें, केंद्र सरकार ने अपनी आपत्ति जताते हुए हलफनामे में कई विवाह कानूनों का भी हवाला दिया। जानिए केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहाँ समलैंगिक विवाह का विरोध किया है और अगर मंजूरी मिल भी जाती है तो कानून में कितना बदलाव करना पड़ेगा।

 

5 प्वाइंट्स में समझें गे विवाद पर केंद्र को क्यों है आपत्ति?

1. इस पूरे मामले में केंद्र की ओर से पेश हलफनामे में साफ तौर पर बताया गया है कि दिक्कत कहाँ है। हलफनामे के मुताबिक, एक साथ रहने वाले और सेक्स करने वाले समलैंगिक जोड़ों की तुलना भारतीय परिवार से नहीं की जा सकती।

2. केंद्र सरकार का कहना है कि जैविक पुरुष पति होता है, जैविक महिला पत्नी होती है और दोनों के मिलन से बच्चा पैदा होता है। यह भारतीय परिवार इकाई की अवधारणा है, जो हमेशा अस्तित्व में रही है।

3. देश की संसद ने ऐसे विवाह कानून बनाए हैं जिनमें केवल स्त्री और पुरुष का मिलन ही स्वीकार किया जा सकता है। यह कानून विभिन्न धार्मिक समुदायों की परंपराओं से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होता है। इसमें किसी भी तरह का हस्तक्षेप संतुलन बिगाड़ देगा।

4. सरकार ने हलफनामे में कहा है कि भारत में शादियाँ ‘पवित्रता’ से जुड़ी हैं। जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच संबंध प्राचीन परंपराओं, नैतिकता और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है।

5. सरकार के मुताबिक, मौजूदा मैरिज लॉ के तहत सेम-सेक्स मैरिज को मान्यता नहीं दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था, तभी से आवेदक कानून में बदलाव की माँग कर रहे हैं।

 

 

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