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मुसीबत में भारत बना मददगार, अब क्यों रिश्ते बिगाड़ रहा मालदीव? समझें पूरी कहानी

नई दिल्ली। सोशल मीडिया टिप्पणियों से शुरू हुआ मालदीव के साथ विवाद अब राजनयिक रूप ले चुका है। बता दें कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लक्षद्वीप के दौरे पर थे और यहीं की कुछ आकर्षक तस्वीरें उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर की। इसके बाद सोशल मीडिया पर मालदीव और लक्षद्वीप की तुलना होने लगी। इसी को लेकर मालदीव के कुछ नेताओं ने भारत और पीएम मोदी को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां कर दीं। विवाद यहीं नहीं थमा, फजीहत होते देखे मालदीव सरकार ने तीन मंत्रियों को सस्पेंड कर दिया। उधर सोमवार को भारत सरकार ने मालदीव के उच्चाययुक्त को भी तलब किया। आइये बताते हैं कि मालदीव कहां है? भारत के साथ इसके रिश्ते कैसे रहे हैं? पर्यटन में यह भारत पर कैसे निर्भर है ?

मालदीव कहां है और इसकी कितनी आबादी है?

बता दें कि मालदीव हिन्द महासागर में स्थित एक द्वीप देश है। इसको मालदीव द्वीप समूह के नाम से भी जाना जाता है जबकि इसका आधिकारिक नाम मालदीव गणराज्य है। अगर द्वीप देश की भौगोलिकता देखें तो मिनिकॉय आईलैण्ड और चागोस द्वीपसमूह के बीच 26 प्रवाल द्वीपों की यह एक दोहरी चेन है। इसका फैलाव भारत के लक्षद्वीप टापू की उत्तर-दक्षिण दिशा में है। भारत के पश्चिम तट और मालदीव के बीच की दूरी 300 नॉटिकल मील है। मालदीव जनसंख्या और क्षेत्र दोनों ही मामलों से एशिया का सबसे छोटा देश है। इसकी आबादी केवल 5,15,122 है।

भारत के साथ इसके कैसे रहे हैं रिश्ते ?

भारत और मालदीव आपस में मानवीय, भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा वाणिज्यिक संबंध साझा करते हैं। पिछले कई सालों में संबंध घनिष्ठ, सौहार्दपूर्ण और बहुआयामी रहे हैं। बता दें कि भारत 1965 में मालदीव की आजादी के बाद उसे मान्यता देने और देश के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में था। 1965 से ही सैन्य, रणनीतिक, आर्थिक, औद्योगिक, पर्यटन, चिकित्सकीय और सांस्कृतिक जरूरतों के लिए मालदीव भारत पर निर्भर रहा है।

मुसीबत में भारत बना मददगार

बता दें कि 1976 में सामुद्रिक संधि के तहत भारत-मालदीव ने अपने सामुद्रिक सीमा क्षेत्र तय किए। दोनों ही देश सार्क के संस्थापक सदस्य भी हैं। 1981 में दोनों ने मुक्त व्यापार समझौता किया था। दोनों देशों के रिश्तों में सबसे महत्वपूर्ण योगदान सैन्य सहयोग का रहा है। इसमें नवंबर 1988 के ऑपरेशन कैक्टस की चर्चा अक्सर होती है जब श्रीलंका के पीपल्स लिबरेशन संगठन तथा मालदीव के विद्रोहियों ने 80 सशस्त्र लोगों के साथ देश का तख्ता पलट करना चाहा था। वो राजधानी माले पर कब्जा करने में सफल रहे। तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम ने पाकिस्तान, सिंगापुर तथा श्रीलंका से मदद मांगी, लेकिन सभी ने मदद करने से इनकार कर दिया।

अमेरिका मदद के लिए राजी था, लेकिन इसमें दो से तीन दिन लग सकते थे। अंतत: उन्हें मित्र भारत ही नजर आया, जिससे तुरंत जवाब मिला। भारत ने 16 घंटे के अंदर 500 सैनिकों के साथ ऑपरेशन कैक्टस शुरू कर दिया। इस ऑपरेशन में कुछ घंटे लगे और माले को वापस कब्जे में लिया गया। इस ऑपरेशन में भारत के कई सैनिक भी शहीद हुए थे।

भारत पर निभर है मालदीव का पर्यटन?

पिछले कुछ सालों में मालदीव जाने वाले पर्यटकों में भारतीयों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। 2018 में देश के पर्यटन बाजार में भारत की हिस्सेदारी करीब 6.1% थी। इस साल भारत से कुल 90,474 लोग मालदीव घूमने पहुंचे जो पर्यटकों के आगमन का 5वां सबसे बड़ा स्रोत था। बता दें कि 2019 में 2018 की तुलना में लगभग दोगुनी संख्या में भारतीय पर्यटक द्वीप देश पहुंचे जो अन्य देशों के मुकाबले दूसरा सबसे अधिक आंकड़ा था। जब दुनिया महामारी के प्रकोप से गुजर रही थी ऐसे समय में 2020 में मालदीव के पर्यटन बाजार के लिए सबसे बड़ा स्रोत भारत ही बना था। इस साल करीब 63,000 भारतीयों ने मालदीव का दौरा किया था। 2021 और 2022 में भारत से 2.91 लाख और 2.41 लाख से अधिक भारतीय पर्यटक मालदीव पहुंचे थे। इस तरह से दोनों सालों में मालदीव के पर्यटन बाजार में भारतीयों की भागीदारी क्रमश: 23% और 14.4% रही।

अब क्यों बिगड़ रहे दोनों देश के रिश्ते?

बता दें कि दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे मधुर रिश्तों में कड़वाहट 2023 के मालदीव आम चुनाव के बाद से आई है। दरअसल, मालदीव में 9 और 30 सितंबर 2023 को राष्ट्रपति पद के लिए इलेक्शन हुआ था। इस चुनाव में पीपुल्स नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार और माले के मेयर मोहम्मद मोइजू ने भारत समर्थक तथा निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को हराया और मालदीव के नए राष्ट्रपति बने।

इससे पहले चुनाव प्रचार के दौरान मोइजू की पार्टी ने ‘इंडिया आउट’ नाम से एक अभियान चलाया था जिसमें वहां मौजूद लगभग 70 भारतीय सैनिकों को भी वापस भेजने का चुनावी वादा भी शामिल था। सोलिह की हार के साथ ही ये आशंका जताई गई थी कि भारत और मालदीव के रिश्ते खराब हो सकते हैं क्योंकि मोइजू को चीन समर्थक माना जाता है।

इसका पहला उदाहरण तब देखा गया जब नवंबर 2023 में मालदीव के राष्ट्रपति की शपथ लेने के बाद मोइजू के कार्यालय ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि सरकार ने भारत से देश से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कहा है। यहीं से दोनों देशों के मधुर रिश्ते में कड़वाहट आ गई।

Arpit Shukla

पत्रकारिता में 2 वर्ष का अनुभव। राजनीति, खेल और साहित्य में रुचि। twitter- @JournoArpit

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