नई दिल्ली। भारत को अरब देशों की आपत्तियों पर इतनी जल्दी कार्रवाई क्यों करनी पड़ती है. इसके पांच बड़े कारण हैं। आइये एक-एक करके जानते हैं वह कारण….
पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने इस साल मार्च में संसद में कहा था, ‘भारत को प्रतिदिन कुल 5 मिलियन बैरल तेल की आवश्यकता होती है और इसका 60% खाड़ी देशों से आता है। भले ही पिछले कुछ वर्षों में खाड़ी देशों पर तेल की निर्भरता कम हुई हो, लेकिन फिर भी भारत में खपत होने वाले तेल का एक बड़ा हिस्सा यहीं से आता है।
भारत सरकार के नीति निर्माण में तेल के महत्व का अंदाजा सीएजी की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि भारत ने 2020-21 में पेट्रोलियम सब्सिडी पर 37,878 करोड़ रुपये खर्च किए। तेल न सिर्फ परिवहन के लिहाज से बल्कि देश की सामरिक सुरक्षा के लिहाज से भी भारत के लिए बेहद खास है। यही कारण है कि भारत खाड़ी देशों के भावनात्मक मुद्दों को लेकर काफी संवेदनशील है।
भारत से बड़ी संख्या में लोग नौकरी की तलाश में खाड़ी देशों में जाते हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खाड़ी के सिर्फ 9 देशों में करीब 90 लाख भारतीय मूल के लोग हैं। इनमें से 35 लाख लोग यूएई में और 30 लाख लोग सऊदी अरब में रहते हैं। कतर, यूएई और सऊदी अरब में भारतीय लोगों के लिए कई बड़े रिटेल स्टोर और रेस्तरां भी हैं। ऐसे में नुपूर शर्मा के बयान के बाद कतर और यूएई के सोशल मीडिया पर ‘बॉयकॉट इंडिया’ ट्रेंड करने लगा। यह स्पष्ट है कि इससे इन देशों में रहने वाले भारतीय कामगारों और उनके व्यवसाय पर असर होना तय है।
खाड़ी देशों के बयान पर भारत के तुरंत सक्रिय होने का एक कारण विदेशी धन भी है। कोरोना काल से पहले खाड़ी देशों में रहने वाले लोगों ने 2019-20 में देश में 6.38 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा भेजे थे. इसमें से 53 फीसदी पैसा सिर्फ 5 खाड़ी देशों- यूएई, सऊदी अरब, कतर, कुवैत, ओमान से भारत आया। आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस पैसे का सबसे ज्यादा 59 फीसदी हिस्सा तीन राज्यों महाराष्ट्र, यूपी और बंगाल में आता है। यही वजह है कि भारत खाड़ी देशों के भावनात्मक मुद्दे को हल्के में नहीं लेना चाहता।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई, सऊदी अरब और कतर भारत के शीर्ष व्यापारिक साझेदारों में से हैं। इतना ही नहीं, संयुक्त अरब अमीरात अमेरिका के बाद भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक गंतव्य भी है। 2020-21 में भारत और यूएई के बीच 5.66 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। इसमें भारत ने यूएई को 2.20 लाख करोड़ रुपये के सामान का निर्यात किया था। इसके अलावा सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। भारत का सऊदी अरब के साथ 3.33 लाख करोड़ रुपये का व्यापार है।
आजादी के बाद 1947 में भारत और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए भू-राजनीतिक और व्यापार के अलावा, भारत के साथ खाड़ी देशों के संबंध सांस्कृतिक कारणों से भी मजबूत हैं। इसका एक खास कारण यह है कि इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद का जन्म सऊदी अरब में हुआ था। मक्का मदीना दुनिया भर के मुसलमानों के लिए एक बहुत बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल है।
ऐसे में इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश भारत से हर साल लाखों लोग इस पवित्र तीर्थ के दर्शन करने आते हैं। ऐतिहासिक संबंधों की बात करें तो खाड़ी की दिलमन सभ्यता के 2000 ईसा पूर्व से भारत के साथ व्यापारिक संबंध रहे हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के समय भी खाड़ी देशों की भारत से घनिष्ठता की बात सामने आती है।
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