पुरी: 20 जून को ओडिशा के पुरी में देश की सबसे बड़ी रथयात्रा निकाली जा रही है जिसका समापन 1 जुलाई को होगा. हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है. गवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा के साथ इस दौरान रथ पर सवार होकर नगर का भ्रमण करने निकलते हैं जिसके साक्षी लाखों लोग बनते हैं. मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी को एक बार हाथ लगाने वाला मनुष्य भव सागर को तर जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर भगवान जगन्नाथ की ये रथयात्रा क्यों निकाली जाती है?
जगन्नाथ भगवान की रथयात्रा निकालने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. जहां कहा जाता है कि एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों से नगर में घूमने की इच्छा जताई. इस दौरान भगवना जगन्नाथ अपने बड़े भाई और छोटी बहन के साथ नगर घूमने के लिए निकले थे. नगर भ्रमण के दौरान भगवान बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम को अपनी मौसी के घर गुंडिचा लेकर भी गए थे. वहाँ उन्होंने सात दिनों तक विश्राम किया। इसी मान्यता के अनुसार आज तक रथयात्रा का आयोजन करने की परंपरा है.
मान्यताओं की मानें तो भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर जाकर खूब पकवान खाया करते हैं. हालांकि इस दौरान वह बीमार भी पड़ जाते हैं इसके बाद उनका इलाज चलता है और स्वस्थ होने के बाद वह एक बार फिर दर्शन देते हैं. बता दें, इस साल भगवान् जगन्नाथ की 146वीं रथ यात्रा निकाली जा रही है जिसमें 25 लाख लोगों के शामिल होने की संभावना जताई गई है.
पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती भगवान जगन्नाथ का पहला दर्शन करते हैं क्योंकि वह ही उन्हें रथ पर बैठाते हैं. इसके बाद रथ के आगे पुरी के राजा दिव्य सिंह देव सोने की झाड़ू से बुहारा लगाते हैं और रथयात्रा शुरू की जाती है. परंपरा के अनुसार रथयात्रा में सबसे पहले भगवान बलभद्र का रथ रहेगा जो 45 फीट ऊंचा और लाल-हरे रंग का है. इस रथ में 14 पहिए लगे होते हैं जिसका नाम तालध्वज है. इसके पीछे 44 फीट ऊंचा लाल और काले रंग का जगन्नाथ भगवान की बहन सुभद्रा का रथ चलेगा जिसमें 12 चक्के लगे होते हैं. इसके बाद 45 फीट ऊंचा पीले रंग का ‘नंदीघोष’ है जो भगवान जगन्नाथ का रथ है. इस रथ में 16 पहिए लगे हुए हैं जिसे सजाने के लिए 1100 मीटर कपड़ा लगता है।
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