बांग्लादेश में क्यों भड़का आंदोलन, अदालती फैसलों के चक्रव्यूह में फंसी शेख हसीनाWhy did the movement erupt in Bangladesh, Sheikh Hasina trapped in the maze of court decisions
Bangladesh Quota Protest: पड़ोसी देश बांग्लादेश में 2 महीने से चल रहे आरक्षण विरोधी छात्र आंदोलन के बाद आज प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया . हिंसक माहौल के चलते शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा है. वह सेना के विमान से रवाना हुईं। खबरों के अनुसार उनकी बहन रेहाना भी साथ हैं। वे बंगाल के रास्ते दिल्ली पहुंच रही हैं. अब बांग्लादेश में सेना की अंतरिम सरकार होगी. बता दें कि इस आंदोलन की शुरूआत 5 जून को हुई थी .अब तक इस आंदेलन में 300 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है.
इस कहानी की शुरूआत 1971 में हुई थी. जब मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली. आजादी मिलने के एक साल बाद बांग्लादेश सरकार ने 1972 में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण दे दिया। इसी आरक्षण के विरोध में प्रर्दशन हो रहा है.
बांग्लादेश में आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत कुल 56 फीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं.इन नौकरियां में से 30 फीसदी आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों को दिया जाता है, 10 फीसदी आरक्षण पिछड़े प्रशासनिक जिलों के लिए ,10 प्रतिशत महिलाओं के लिए, पांच प्रतिशत आरक्षण जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए और एक प्रतिशत दिव्यांग लोगों के लिए आरक्षित है.
1972 की जारी आरक्षण व्यवस्था को बांग्लादेश सरकार ने 2018 में समाप्त कर दिया. हांलाकि जून में उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले पर आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने के गैर कानूनी बताया था। कोर्ट के इस आदेश के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
हाईकोर्ट के फैसले को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दिया था .सरकार की अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया और इस मामले की आगे की सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय कर दी थी.
प्रधानमंत्री हसीना ने अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने से मना कर दिया था .शेख हसीना के इस फैसले के वजह से छात्रों ने अपना विरोध तेज कर दिया.प्रदर्शनकारी छात्रों ने सरकार पर यह आरोप लगाया कि सरकार उन लोगों को आरक्षण देना चाहती है जो शेख हसीना सरकार का समर्थन करती है .छात्रों का कहना है कि मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरियां नहीं दी जाती है.इसलिए छात्र इस आरक्षण प्रणाली को खत्म करने और हसीना के इस्तीफे की मांग कर रहे थे..
21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में यह कहा था कि केवल पांच फीसदी नौकरियां स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए आरक्षित होंगी.इसके अलावा दो फीसदी नौकरियां अल्पसंख्यकों या दिव्यांगों को दिया जांएगा.वहीं बाकी बचे पदों के लिए अदालत ने कहा कि यह मेरिट के आधार पर उम्मीदवारों के लिए खुले होंगे. यानी 93 फीसदी भर्तियां अनारक्षित कोटे से अब होंगी.
आंदोलन के शुरूआत में छात्र सिर्फ स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए आरक्षित नौकरियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि इसकी जगह मेरिट आधारित व्यवस्था लागू की जांए . प्रर्दशनकारियों का कहना है कि यह भेदभावपूर्ण है और प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों इसे अपने फायदे के लिए इसेतेमाल कर रहें है.बता दें कि प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब उर रहमान की बेटी हैं.उन्होंने ही मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद माना जा रहा था कि विरोध प्रदर्शन खत्म हो जाएंगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आंदोलन और भी उग्र हो गया। छात्र संगठनों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब विरोध प्रदर्शनों का अंत नहीं है उन्हें प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस्तीफा चाहिए था .