शिमला। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की प्रचंड जीत के बाद उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री का चुनाव करने की थी, लेकिन कांग्रेस के विधायकों ने मुख्यमंत्री के चुनाव की जिम्मेदारी आलाकामन के पाले में डाल दी, जिसके तहत अब यह फैसला मल्लिकार्जुन खड़गे को करना था। हम आपको बता दें की, सुखविंदर सिंह सुक्खू […]
शिमला। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की प्रचंड जीत के बाद उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री का चुनाव करने की थी, लेकिन कांग्रेस के विधायकों ने मुख्यमंत्री के चुनाव की जिम्मेदारी आलाकामन के पाले में डाल दी, जिसके तहत अब यह फैसला मल्लिकार्जुन खड़गे को करना था।
हम आपको बता दें की, सुखविंदर सिंह सुक्खू को सीएम बनाकर कांग्रेस ने अपना रिवाज बदल दिया है। और सभी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को एक संदेश भी दिया है।
अब तक कांग्रेस में यही देखा गया है कि, आलाकमान के करीबियों को ही अहम पद और सत्ता का सुख भोगने को मिलता था, लेकिन सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने अपने इस रिवाज को तोड़ने का काम किया है। जहां प्रतिभा सिंह का दावा था कि, उन्हे 25 विधायकों का समर्थन प्राप्त है वहीं दूसरी ओर विधायक दल ने सुक्खू के पक्ष में वोट करके इस भ्रांति को भी खत्म कर दिया।
इस दौरान हिमाचल प्रदेश में सुक्खू को मुख्यमंत्री बनाना भविष्य में कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह कार्य करेगा।
मुख्यमंत्री पद के लिए प्रतिभा सिंह का न चुना जाना किसी एक मुद्दे पर निर्भर नहीं करता बल्कि कई ऐसी बातें हैं जिन्हे लेकर प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता है, पहली बात तो यह है कि, कांग्रेस को अपनी परिवारवाद व आलाकमान को सत्ता की चाबी देने वाली छवि को खत्म करना था, वहीं दूसरी ओर प्रतिभा सिंह के प्रभाव वाले मंडी मे कांग्रेस सिर्फ एक सीट ही जीत पाई जबकि वहां दस सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा था। यदि वहीं सुखविंदर सिंह सुक्खू की बात करें तो उनके गृह जनपद हमीरपुर में कांग्रेस को पांच में से चार सीटें प्राप्त हुईं जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई इससे सुक्खू का मुख्यमंत्री बनने का दावा अधिक मजबूत हो गया।
कांग्रेस प्रतिभा सिंह की लोकसभा सीट एवं मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए खाली की गई एक विधानसभा सीट में उचचुनाव का रिस्क लेने से भी बचना चाहती थी।