नई दिल्ली: भगवान राम और रावण के बीच हुए युद्ध में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिनमें से एक प्रमुख घटना थी रावण के पुत्र मेघनाद का योगदान। मेघनाद को एक शक्तिशाली योद्धा माना जाता था, जो अपनी वीरता और कौशल के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन इस युद्ध में भगवान राम और मेघनाद का सीधा सामना कभी नहीं हुआ। इसके पीछे कुछ धार्मिक और पौराणिक कारण बताए गए हैं।
मेघनाद ने अपनी शक्ति और पराक्रम को सिद्ध करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें कई वरदान मिले थे, जिनमें से एक प्रमुख वरदान यह था कि वे केवल वही व्यक्ति उसे मार सकता था जिसने 13 साल तक बिना सोए और बिना भोजन के तपस्या की हो। यह शर्त इतनी कठिन थी कि भगवान राम जैसे महान योद्धा के लिए भी उसे पूरा करना संभव नहीं था। इसके अलावा, मेघनाद ने कई देवताओं को पराजित करके ‘इंद्रजीत’ की उपाधि प्राप्त की थी, जो उनकी शक्ति का प्रमाण था।
भगवान राम ने इस कारण से मेघनाद से युद्ध नहीं किया क्योंकि वह जानते थे कि मेघनाद का सामना उनके भाई लक्ष्मण करेंगे। रामायण के अनुसार, मेघनाद का अंत केवल लक्ष्मण के हाथों ही हो सकता था। इसीलिए, भगवान राम ने मेघनाद के साथ प्रत्यक्ष युद्ध नहीं किया और यह जिम्मेदारी लक्ष्मण को सौंपी।
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भगवान राम का चरित्र धर्म और मर्यादा पर आधारित था। वे हमेशा धर्म का पालन करते थे और युद्ध में भी उन्होंने वही नीति अपनाई। रामायण में बताया गया है कि भगवान राम ने कभी भी ऐसे योद्धाओं से सीधे युद्ध नहीं किया जिनसे उनका कोई व्यक्तिगत बैर न हो। मेघनाद के साथ उनका कोई सीधा बैर नहीं था, इसलिए भगवान राम ने धर्म का पालन करते हुए मेघनाद के साथ युद्ध नहीं किया।
रामायण के अनुसार, मेघनाद ने कई मायावी अस्त्रों का प्रयोग किया था, जिनमें से एक था नागपाश, जिसने लक्ष्मण को मूर्छित कर दिया था। बाद में, हनुमान जी के प्रयासों से संजीवनी बूटी के माध्यम से लक्ष्मण का जीवन बचाया गया। इसके बाद लक्ष्मण ने मेघनाद का अंत किया। लक्ष्मण के इस वीरतापूर्ण कार्य को रामायण के कई प्रसंगों में विस्तार से वर्णित किया गया है।
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