Kargil Vijay Diwas: आज देश करगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है। अपने महान नायकों को श्रद्धांजलि देने के लिए पीएम मोदी खुद कारगिल पहुंचे हुए हैं। जांबाजों के साहस और शौर्य को याद करते हुए पीएम ने दुनिया के सामने पाकिस्तान का काला चेहरा एक बार फिर बेनकाब किया। इस युद्ध में […]
Kargil Vijay Diwas: आज देश करगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है। अपने महान नायकों को श्रद्धांजलि देने के लिए पीएम मोदी खुद कारगिल पहुंचे हुए हैं। जांबाजों के साहस और शौर्य को याद करते हुए पीएम ने दुनिया के सामने पाकिस्तान का काला चेहरा एक बार फिर बेनकाब किया। इस युद्ध में पाकिस्तान ने बेशर्मी की चादर ओढ़ ली। पाकिस्तानी सेना के मारे हुए जवानों तक का शव नहीं लिया। आइये जानते हैं कि आखिर पाकिस्तान ने अपने सैनिकों का शव क्यों नहीं लिया था?
दो महीने तक चले कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद भारत के 527 बहादुरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। पाकिस्तान की तरफ से भी कई सैनिक मारे गए थे। युद्ध समाप्ति के बाद जब भारतीय सैनिक बंकरों में पहुंची तो वहां पर पाकिस्तानी जवानों के शवों के ढेर लगे हुए थे। उन सैनिकों की पहचान उसके पास से मिली दस्तावेजों के जरिए की गई। उनके आका को फ़ोन किया गया लेकिन उन्होंने शव लेने से मना कर दिया। दरअसल पाकिस्तान दुनिया में यह नहीं दिखाना चाहता था कि उसे कितना नुकसान हुआ है।
पड़ोसी मुल्क ने अपने सिर्फ अफसरों क शव लिए। इसमें 12 नॉर्दर्न लाइट इंफेंट्री के कैप्टन शेरखान भी थे। कहा जाता है कि भारतीय सैनिकों ने कागज पर लिखकर उनकी जेब में रख दिया था कि कैप्टन शेरखान बहादुरी से लड़ते हुए मारे गये। इसी वजह से पाकिस्तान ने उन्हें अपने सबसे बड़े निशान-ए-हैदर अवार्ड से नवाजा। अपने बाकियों सैनिकों को उसने सैनिक नहीं मानकर घुसपैठिया बता दिया। पाकिस्तान दुनिया के सामने इस बात को नहीं कबूलना चाहता था कि उसने भारत पर हमला किया है। इसलिए उसने अपने सैनिकों यही छोड़ दिया।
भारत के नायकों ने 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों को हराकर कारगिल युद्ध को जीता था। तभी से इस दिन को हम कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। 84 दिनों तक हुए इस लड़ाई में इंडियन आर्मी के 527 जवान शहीद और 1,363 सैनिक घायल हुए थे। वहीं दुश्मन देश पाकिस्तान के 400 से अधिक सैनिक मारे गए थे।
आतंक के आकाओं सुन लो मेरी आवाज़…कारगिल से मोदी ने पाकिस्तान को लताड़ा