Why are Statues Consecrated: क्यों होती है मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा?

नई दिल्ली: भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा का समय बेहद करीब आ चुका है. 22 जनवरी को बड़े ही भव्य तरीके से अयोध्या में इस कार्यक्रम को संपन्न किया जाएगा. इस दौरान देश के प्रधानमंत्री से लेकर कई सारी बड़ी हस्तियां मौजूद रहेंगी. ऐसे में कुछ लोगों के मन में ये सवाल भी आ रहा […]

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Why are Statues Consecrated: क्यों होती है मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा?

Manisha Singh

  • January 2, 2024 8:44 pm Asia/KolkataIST, Updated 11 months ago

नई दिल्ली: भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा का समय बेहद करीब आ चुका है. 22 जनवरी को बड़े ही भव्य तरीके से अयोध्या में इस कार्यक्रम को संपन्न किया जाएगा. इस दौरान देश के प्रधानमंत्री से लेकर कई सारी बड़ी हस्तियां मौजूद रहेंगी. ऐसे में कुछ लोगों के मन में ये सवाल भी आ रहा होगा कि आखिर ये प्राण प्रतिष्ठा है क्या (Why are statues consecrated?) , इसकी प्रक्रिया क्या होती है इसके बाद मूर्तियों में क्या बदलाव आता है. तो चलिए आपके हर एक सवाल का एक-एक कर जवाब देते हैं.

क्या और क्यों होती है प्राण प्रतिष्ठा? (Why are statues consecrated?) 

प्राण प्रतिष्ठा का मतलब होता है जीवन शक्ति की स्थापना करना या किसी देवता को जीवन में लाना. हिंदू धर्म ये एक तरह का अनुष्ठान होता है, जिसमें मंत्रों के उच्चारण, भजन और पूजा-पाठ के जरिए भगवान की मूर्ती में प्राण डाला जाता है. इसके बाद ही किसी भी देवता या भगवान की मूर्ति मंदिर में स्थापित की जाती है. इससे पहले किसी भी मूर्ति को निर्जीव माना जाता है और इसे पूजा योग्य नहीं मानते हैं. प्राण प्रतिष्ठा के जरिए मूर्ति में शक्ति का संचार करके उन्हें देवता के रूप में बदला जाता है. तब जाकर मूर्ति पूजा योग्य बनती है.

क्या होती है प्रक्रिया?

प्राण प्रतिष्ठा से पहले मूर्ति को पूरे सम्मान के साथ मंदिर लाया जाता है और मंदिर के द्वार पर किसी अतिथि की तरह स्वागत किया जाता है. इसके बाद मूर्ति को सुगंधित चीजों का लेप लगाकर दूध से स्नान कराते हैं. फिर साफ कपड़े से पोंछकर उसे मंदिर के गर्भ गृह में रखकर पूजन प्रक्रिया शुरू की जाती है. इसके बाद मंदिर के पुजारी मूर्ति को कपड़ा पहनाते हैं और पूर्व दिशा की मूर्ति का मुख करके उसे स्थापित करते हैं. इसके बाद मंत्रों द्वारा मूर्ति में देवता को आमंत्रित किया जाता है. प्राण प्रतिष्ठा पूरी होने के बाद वह मूर्ति साधारण मूर्ति नहीं रह जाती. यहां तक की इसके बाद उन्हें मूर्ति भी नहीं कहा जाता, बल्कि विग्रह कहा जाता है.

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