Advertisement
  • होम
  • देश-प्रदेश
  • 26 नवंबर 1949 के दिन की दिलचस्प कहानी, वंदेमातरम और हिंदी को लेकर किसने उठाए थे सवाल

26 नवंबर 1949 के दिन की दिलचस्प कहानी, वंदेमातरम और हिंदी को लेकर किसने उठाए थे सवाल

26 नवंबर 1949 को आखिर क्या हुआ इस बात को जानने में ज्यादातर लोग दिलचस्पी रखते होंगे, सिर्फ इतना ही नहीं, संविधान को स्वीकार करने के लिए बुलाई गई मीटिंग में भी हिंदी और वंदेमातरम पर सवाल उठे थे.

Advertisement
  • November 26, 2017 8:29 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली: देश 26 जनवरी को रिपब्लिक डे के तौर पर मनाता आया है, ऐसे में कोई उन्हें अगर ये बताता है कि संविधान तो 26 नवंबर 1949 को ही स्वीकार कर लिया गया था तो उनके मन में भी सवाल उठता है कि फिर आखिर 26 जनवरी को क्यों लागू किया गया? रिपब्लिक डे 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है? और जो इसके पीछे का राज जानते भी हैं, उनमें से अधिकांश उस दिन यानी 26 नवंबर कोक्या क्या हुआ ये जानने में पूरी दिलचस्पी रखते होंगे. वैसे भी संविधान को स्वीकार करने के लिए बुलाए गई उस सभा में हिंदी और वंदेमातरम पर सवाल उठे हों, तो क्या हुआ, ये जानने की दिलचस्पी स्वाभाविक ही है.

पहले ये जानें कि 26 जनवरी को ही रिपब्लिक डे के लिए क्यों चुना गया, क्यों दो महीने तक संविधान को देश में लागू नहीं किया गया? दरअसल कांग्रेस का, खासकर नेहरू का 26 जनवरी की तारीख से गहरा लगाव था. 26 जनवरी 1930 की वो तारीख थी, जिस दिन कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में रावी नदी के किनारे पूर्ण स्वाधीनता की मांग पहली बार की गई थी और तिरंगा फहराया गया था. उस साल कांग्रेस के प्रेसीडेंट पंडित जवाहर लाल नेहरू थे. अब चूंकि असली स्वाधीनता तो 15 अगस्त, 1947 को मिली थी, ऐसे में नेहरू चाहते थे कि इस तारीख को इतिहास मे याद रखने के लिए संविधान को 26 जनवरी को ही लागू किया जाए.

इसीलिए 26 नवंबर 1949 को संविधान को स्वीकार करने के बावजूद संविधान के नागरिकता जैसे कुछ प्रावधानों को ही लागू किया गया और आधिकारिक रूप से दो महीने के इंतजार के बाद अगले साल यानी 26 जनवरी 1950 में लागू किया गया, तब से ही 26 जनवरी को देश रिपब्लिक डे मनाया जाता है.

लेकिन 26 नवंबर 1949 से भी संविधान के कुछ आर्टीकल्स को लागू कर दिया गया, वो थे 5,6,7,8,9,60, 324, 366, 367, 379, 380, 388, 391, 392, 393 और 394. यूं तो संविधान सभा का जब गठन 1946 में हुआ था, उसी साल 9 दिसंबर को उसकी पहली मीटिंग हुई थी. फिर एक ड्राफ्टिंग कमेटी बनाई गई, जिसके चेयरमेन डॉ. भीमराव अम्बेडकर को बनाया गया और कुल 2 साल 11 महीने 18 दिन में संविधान बनकर तैयार हुआ, जिसमें बहस और कई संशोधनों के साथ 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया गया.

यूं तो संविधान सभा 26 नवंबर से पहले ही तमाम सारी बहस और संशोधन कर चुकी थी, 26 को तो बस स्वीकार किया जाना था. सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को एक स्पीच देनी थी और उस पर साइन करने थे. लेकिन फिर भी उस दिन लोगों ने हिंदी से लेकर वंदमातरम तक कई बातों पर सवाल उठाए. ये मीटिंग संसद के सेंट्रल हॉल में हो रही थी और तब उसे कॉन्स्टीट्यूशन हॉल कहा जाता था. जैसे ही मीटिंग शुरू हुई, प्रेसीडेंट राजेंद्र प्रसाद ने सभा से कहा कि संविधान स्वीकार करने का प्रस्ताव रखे जाने से पहले सरदार पटेल स्टेट्स को लेकर कुछ जरूरी एनाउंसमेंट करना चाहते हैं. तब पटेल ने बताया कि संविधान के पहले शेड्यूल में उल्लेखित हैदराबाद समेत 9 स्टेट्स ने संविधान को लागू करने के लिए स्वीकृति दे दी है.

पटेल के बाद अचानक उड़ीसा से संविधान सभा के सदस्य बिश्वनाथ उठकर खड़े हो गए, पूछने लगे- सर, क्या आप ये बताएंगे कि क्या आप वंदेमातरम को नेशनल सोंग बनाने का एनाउंसमेंट करने वाले हैं, फिर नेशनल एंथम क्या होगा? डॉ. प्रसाद ने फौरन उन्हें टोका—नहीं मैं आज ऐसा कोई एनाउंसमेंट नहीं करने जा रहा हूं. इस पर हम जनवरी में चर्चा करेंगे. बिश्वनाथ दास आजादी से पहले उड़ीसा स्टेट के प्रधानमंत्री थे और बाद में यूपी के राज्यपाल और फिर उड़ीसा के मुख्यमंत्री भी बने.

उसके बाद कोई और बोले राजेंद्र बाबू ने जल्दी से संविधान सभा के लिए उनके पहले अस्थाई अध्यक्ष डां सच्चिदानंद सिन्हा सहित दो लोगों के संदेश पढ़कर सुनाए. इतने में अलगू राय शास्त्री ने सवाल उठा दिया, सर क्या 26 जनवरी तक संविधान का हिंदी ट्रांसलेशन भी हो पाएगा, जब हमारे देश की भाषा हिंदी है तो हम इसे विदेशी भाषा में क्यों स्वीकार या लागू करें. बल्कि 26 जनवरी तक ट्रांसलेशन का काम पूरा करके गर्व के साथ हिंदी में ही इसे स्वीकार करके सब लोग अपने हस्ताक्षर हिंदी कॉपी पर ही करें. हालांकि जवाब में प्रेसीडेंट ने बताया कि हिंदी ट्रांसलेशन का प्रस्ताव भी पास हो चुका है और ट्रांसलेशन का काम शुरु भी हो चुका है, लेकिन ये जरूरी नहीं है कि तब तक हो ही जाएगा और हम हिंदी के संविधान पर ही हस्ताक्षर करेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि आपको पता ही है कि पंद्रह साल के लिए अंग्रेजी को ऑफीशियल भाषा बनाया जा रहा है. उसके बाद हिंदी को लेकर तय किया जाएगा. हिंदी के पुरोधा आज अलगू राय का याद नहीं करते हैं, आजमगढ़ से सांसद रहे अलगू राय शास्त्री आर्य समाजी थे और हिंदी का झंडा बुलंद रखते थे.

उसके बाद आरवी धुलेकर के सबके साइन करने के सवाल का जवाब देने के बाद डां राजेन्द्र प्रसाद ने अम्बेडकर के मोशन को रखने से पहले अपनी स्पीच दी. उन्हें पता था कि सवाल लेने शुरू किए तो फिर आगे का काम अटक जाएगा. उन्होंने अपनी स्पीच में बताया कि कैसे हमारी जनसंख्या रुस को हटाकर बाकी यूरोप से ज्यादा है. गांधीजी के प्रयासों से लेकर देश की विविधता की चर्चा करने के बाद उन्होंने कश्मीर, हैदराबाद, मैसूर जैसे स्टेट्स के बारे में बताया और पटेल के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने बताया कि कैसे 22 नवंबर तक करीब 64 लाख रुपया संविधान सभा पर पिछले तीन सालों में खर्च हुआ है. फिर डा. प्रसाद ने अम्बेडकर और बीएन राव जैसे विधि विशेषज्ञों की संविधान निर्माण में मदद के लिए तारीफ की और संविधान के खास पहलुओं की चर्चा की. फिर कई देशों के संविधान से तुलना करते हुए बताया कि कैसे हमारा संविधान सर्वश्रेष्ठ है. सबसे आखिर में उन्होंने सभा के सेक्रेटरी से लेकर चपरासी तक सबको धन्यवाद दिया और सभा ने मोशन पास कर दिया.

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच हैदराबाद के डॉ. रघुवीरा ने फिर एक सवाल पूछ लिया, क्या आप संविधान पर हिंदी में साइन करेंगे? प्रेसीडेंट ने जवाब ना देकर उलटा सवाल दाग दिया, आपने ये सवाल पूछा ही क्यों? ऐसे बात अनसुनी कर दी गई. लेकिन यही सवाल उठाने वाले रघुवीरा 1963 में जाकर जनसंघ के नेशनल प्रेसीडेंट बने. उसके बाद बाबू राजेन्द्र प्रसाद ने सभा को 26 जनवरी 1950 से पहले किसी दिन तक के लिए स्थगित कर दिया. बाद में 24 जनवरी 1950 को सभा फिर से बुलाई गई और उसी दिन संविधान पर सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिए. कुल 284 सदस्यों ने संविधान की दो कॉपियों पर हस्ताक्षर किए, एक हिंदी की कॉपी और एक इंगलिश की कॉपी. इन सदस्यों में 15 महिला सदस्य भी शामिल थीं.

इधर प्रेसीडेंट ने सभी स्थगन का ऐलान करने से पहले सभी सदस्यों से कहा कि मैं सभा स्थगित करने से पहले सभी सदस्यों से हाथ मिलाने आ रहा हूं. तो नेहरू पहली बार उठ खड़े हुए, बोले- आप मत उठिए..सभी सदस्य आपकी सीट पर एक एक करके आएंगे और हाथ मिलाएंगे. फिर ऐसा ही हुआ हर सदस्य़ प्रेसीडेंट की सीट पर पहुंचा और बाबू राजेन्द्र प्रसाद से हाथ मिलाया, उसके बाद वो 24 जनवरीको ही मिले.

संविधान के बारे में कुछ और दिलचस्प बातें हैं, संविधान की ओरिजनल कॉपी को, यहां तक कि हर पेज को करीने से सजाया संवारा शांतिनिकेतन के दो कलाकारों ने, जिनके नाम हैं बिओहर राममनोहर सिन्हा और नंदलाल बोस. कवर पेज पर सिंधु घाटी सभ्यता जैसी भारतीय महाद्वीप की कई सभ्यताओं से जुड़े प्रतीक चिन्हों को उकेरा गया. संविधान में कैलीग्राफी का काम प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने किया. संविधान को देहरादून में छपवाया गया. संविधान की एक हिंदी और एक अंग्रेजी की ओरिजनल कॉपीज को संसद के एक विशेष कक्ष में हीलियम के बॉक्स में सुरक्षित रखवा दिया गया है.

24 जनवरी को संविधान की तीन कॉपिया बनवाई गईं, हाथ से लिखीं हुई और कलाकारों द्वारा सुसज्जित हिंदी और अंग्रेजी की एक एक कॉपी और तीसरी कॉपी जो अंग्रेजी में प्रिंट की हुई थी, सदस्यों ने तीनों पर साइन किए थे. इसी दिन राजेन्द्र प्रसाद के नाम का प्रस्ताव प्रेसीडेंट पद के लिए रखा गया और सबसे आखिर में पहले जन गण मन और बाद में वंदे मातरम का गान किया गया.

नेहरू परिवार से ये कांग्रेस प्रेसीडेंट बने तो नेताजी बोस ने दी फौजी यूनीफॉर्म में सलामी

https://youtu.be/5YZxJ95-lnI

Tags

Advertisement