नई दिल्ली. नरेंद्र मोदी सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन के पति और कांग्रेस से लेकर बीजेपी, टीडीपी और प्रजाराज्यम पार्टी की राजनीति में कई बार विधानसभा, विधान परिषद और लोकसभा चुनाव लड़कर हारे आर्थिक विशेषज्ञ परकला प्रभाकर ने सोमवार को अंग्रेजी अखबार द हिन्दू में एक लेख लिखकर भारत में आर्थिक मंदी को लेकर छिड़ी बहस में अपनी पत्नी को असहज कर दिया है. परकला प्रभाकर ने लेख में सीधे तौर पर कहा है कि आर्थिक नीति को लेकर बीजेपी ये नहीं, वो नहीं करती है लेकिन देश की बेहतरी के लिए क्या करना चाहिए वो आर्थिक नीति उसने खुद बनाई ही नहीं. परकला प्रभाकर ने नरेंद्र मोदी सरकार को नसीहत दी है कि देश को मंदी से उबारने के लिए वो देश में आर्थिक उदारीकरण के सूत्रधार रहे पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की आर्थिक संरचना शिल्प को अपनाए. परकला प्रभाकर ने लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी जवाहरलाल नेहरू के समाजवाद को खारिज करती रही है लेकिन उसने कभी नरसिम्हा राव की नई आर्थिक नीति के संरचना शिल्प को नहीं ठुकराया है.
परकला प्रभाकर ने द हिन्दू में लिखे आर्टिकल में क्या-क्या लिखा है लेख में वो आगे बताएंगे. पहले ये जानिए कि परकला प्रभाकर राजनीति में कितने घाट का पानी पी चुके हैं. परकला प्रभाकर आंध्र प्रदेश के एक कांग्रेसी राजनीतिक परिवार में पैदा हुए जहां उनकी मां विधायक रहीं और पिता कई बार राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री. पढ़ने के लिए जेएनयू आए तो एनएसयूआई में रहे और यहीं निर्मला सीतारामन से मिले जिनसे आगे चलकर उन्होंने 1986 में शादी कर ली. परकला जेएनयू के बाद लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़े और वहीं से पीएचडी भी की. भारत लौटे तो अपनी मां की सीट नरसापुरम से 1994 और 1996 में लड़े लेकिन दोनों बार हार गए.
पीवी नरसिम्हा राव के करीबी रहे परकला कांग्रेस से मोहभंग के बाद 1997 में बीजेपी में शामिल हो गए. पार्टी ने उन्हें प्रदेश प्रवक्ता भी बनाया. 1998 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा लड़े, हारे. पार्टी की आर्थिक नीति बनाने वाली टीम का हिस्सा बने और फिर दसवीं पंचवर्षीय योजना बनाने के लिए योजना आयोग की एक टास्क फोर्स में सदस्य भी रहे. 2006 में वो राज्य विधान परिषद का चुनाव लड़े लेकिन ये भी हार गए. ये चुनावी राजनीति में उनकी चौथी हार थी जिसमें दो कांग्रेस के टिकट पर और दो बीजेपी के टिकट पर हुई. इसके बाद परकला प्रभाकर और बीजेपी के रास्ते अलग हो गए.
2008 में सुपरस्टार चिंरजीवी की पार्टी प्रजाराज्यम के गठन में साथ रहे और पार्टी के संस्थापक महासचिव बने. एक साल के अंदर प्रजाराज्यम से उनका मोहभंग हो गया और 2009 के अप्रैल में उन्होंने जहरीला पेड़ बताकर इस्तीफा दे दिया. 2011 में चिरंजीवी की पार्टी प्रजाराज्यम का कांग्रेस में विलय हो गया और उन्हें मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री का पद मिला. आंध्र प्रदेश तेलंगाना राज्य विभाजन के खिलाफ बुद्धिजीवियों का मुखर आंदोलन चलाने वाले परकला प्रभाकर को चंद्रबाबू नायडू ने 2014 में सीएम बनने के बाद अपना संचार सलाहकार बनाया जो कैबिनेट मंत्री रैंक का पद था.
बीजेपी और टीडीपी का गठबंधन टूटने के बाद जब वाईएसआर प्रमुख जगनमोहन रेड्डी ने परकला प्रभाकर के पद पर बने रहने पर सवाल उठाया तो परकला ने इस्तीफा दे दिया और त्यागपत्र में नायडू से कहा कि उनके बहाने विपक्ष आंध्र प्रदेश के साथ अन्याय के खिलाफ टीडीपी की लड़ाई को निशाना बना रही है. आजकल परकला प्रभाकर हैदराबाद से राइट फोलियो नाम से एक कंस्लटेंसी कंपनी चला रहे हैं जो 1991 में सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी स्टडीज के नाम से शुरू हुई थी.
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