नई दिल्ली, जस्टिस यूयू ललित सुप्रीम कोर्ट के अगले चीफ जस्टिस होंगे! सीजेआई एनवी रमना ने चीफ जस्टिस के लिए अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस यूयू ललित के नाम की सिफारिश की है. कानून और न्याय मंत्रालय को सिफारिश किए जाने के बाद नए चीफ जस्टिस का चुनाव किया जाता है. जस्टिस यूयू ललित कई बड़े और चर्चित मामलों में पैरवी कर चुके हैं, जबकि कई बड़े केस में उन्होंने अहम फैसले भी दिए हैं. वे अपनी तार्किक टिप्पणियों के लिए भी जाने जाते हैं. सीजेआई एनवी रमना का कार्यकाल इसी महीने पूरा होने वाला है, जिसके बाद यूयू ललित सीजेआई का कार्यभार संभालेंगे.
जस्टिस यूयू ललित का पूरा नाम उदय उमेश ललित है, इनके पिता यूआर ललित भी जज थे और बॉम्बे हाई कोर्ट में सेवाएं देते थे. यूयू ललित का जन्म 9 नवंबर, 1957 को महाराष्ट्र में हुआ था और लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत को अपना करियर बनाया और देश के जाने-माने चुनिंदा वकीलों में उनका नाम शुमार हो गया.
दिसंबर 1985 तक जस्टिस यूयू ललित ने बंबई हाईकोर्ट में वकालत की और फिर दिल्ली चले आए. यहां 1986 में उन्होंने वकालत शुरू की, अप्रैल 2004 में वे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बने और फिर कई अहम पदों पर भी रहे. साल 2014 में 13 अगस्त को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर उनका कार्यकाल 8 नवंबर, 2022 तक रहेगा.
जस्टिस यूयू ललित कई बार सुर्ख़ियों में आ चुके हैं, जस्टिस यूयू ललित काला हिरण शिकार मामले में अभिनेता सलमान खान की पैरवी करने पर भी सुर्ख़ियों में आ चुके हैं. वहीं भ्रष्टाचार मामले में वे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी पैरवी कर चुके हैं, इसी कड़ी में सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति फर्जी एनकाउंटर मामले में वे अमित शाह का पक्ष रख चुके हैं. इसके अलावा पूर्व आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह की भी जन्मतिथि केस में भी वे पैरवी करने पर भी वे सुर्ख़ियों में आए थे.
अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में जस्टिस यूयू ललित भी शामिल थे और मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन पैरवी कर रहे थे. वकील राजीव धवन ने पीठ को बताया कि जस्टिस ललित 1994 में इसी से जुड़े मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पैरवी कर चुके हैं. हालांकि राजीव धवन ने स्पष्ट किया था कि वे इस केस की सुनवाई से जस्टिस ललित के अलग होने की मांग नहीं कर रहे हैं लेकिन जस्टिस यूयू ललित ने खुद ही इस मामले से खुद को अलग कर लिया था.
गौरतलब है 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था, तब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. इस नाते उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया था कि बाबरी मस्जिद के ढांचे को यथावत रखा जाएगा, लेकिन उस ढाँचे को ढहा दिया गया और कल्याण सिंह अपने वादे पर कायम न रह सके. जिसके बाद बाबरी पर अपना वचन नहीं निभा पाने पर 24 अक्तूबर 1994 को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के चलते कल्याण सिंह को एक दिन की कैद और 20 हजार रुपए जुर्माने की सजा भी सुनाई थी. इसी मामले में भी जस्टिस यूयू ललित ने उनकी पैरवी की थी.
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