नई दिल्ली: आज कल दर्शन हीरानंदानी का नाम खबरों में बहुत चर्चा हो रहा है। महुआ मोइत्रा के साथ उनका नाम जोड़ा जा रहा है। अगर आप महुआ मोइत्रा के केस से अवगत नहीं हैं, तो आपको शार्ट में मैं पूरा मामला बता देती हूं। महुआ मोइत्रा टीएमसी सांसद हैं, जिनपर पैसे लेकर संसद में अडानी ग्रुप के बारे में सवाल पूछने का आरोप है। महुआ पर ये आरोप भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लगाया है। आरोपों के अनुसार महुआ अडानी ग्रुप के बारे में सवाल करने के लिए दर्शन हीरानंदानी से पैसे लेती थीं। इसके अलावा उन्होंने दर्शन के साथ संसद की मेल आईडी भी शेयर कर रखी थी, जो संसद के नियमों के विरुद्ध है। अब इस पूरे मामले में महुआ मोइत्रा के साथ दर्शन हीरानंदानी भी फंसे हुए हैं।
आपको बता दें कि हीरानंदानी ग्रुप अडानी ग्रुप का कॉम्पिटिटर है। इसी वजह से महुआ मोइत्रा का अडानी ग्रुप के विरोध में बोलना दर्शन के लिए फायदे का सौदा था। यही कारण था की दर्शन इस पूरे कारनामे में मोइत्रा क साथ दे रहे थे।
कौन है दर्शन हीरानंदानी?
दर्शन हीरानंदानी हीरानंदानी ग्रुप के सीईओ हैं। इनके पिता निरंजन हीरानंदानी इस हीरानंदानी ग्रुप के संस्थापक हैं। इनका रियल एस्टेट सेक्टर में बहुत बड़ा नाम है। इनका ज्यादातर बिजनेस मुंबई में है। ये देश के अन्य कई शहरों जैसे बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई के सबसे बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स में से एक माने जाते हैं। इसके अलावा विदेशों में भी इस ग्रुप का कारोबार फैला हुआ है।
दर्शन ने न्यू यॉर्क से एमबीए कर रखा है। ये मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय रियल एस्टेट का कार्यभार देखते हैं। साथ ही ये डेटा सेंटर ऑपरेटर ‘योट्टा डेटा सर्विसेज’, ‘कंज्यूमर सिर्वसेज तेज प्लेटफार्म्स्स’, ऑयल एंड गैस सेक्टर की कंपनी ‘एच-एनर्जी’ और ‘टार्क सेमीकंडक्टरर्स’ के भी चेयरमैन हैं।
दादा को मिला पद्म भूषण सम्मान
दर्शन हीरानंदानी के दादा लखुमल हीरानंद हीरानंदानी सिंध 1937 में मुंबई आए थे। ये पहले पाकिस्तान में रहते थे। हालांकि उस समय भारत और पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था। इन्होंने ही भारत में हीरानंदानी फाउंडेशन ट्रस्ट शुरू किया था। इस ट्रस्ट के तहत वो देश में दो स्कूल चलाते थे। लखुमल ने इस दौरान भारत में अंग व्यापर के खिलाफ लड़ने में भी योगदान दिया था। उनके इसी सेवा और योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें साल 1972 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से नवाजा था। 5 सितम्बर, 2013 में उनका निधन हो गया। उनके बाद हीरानंदानी ग्रुप का कारोबार उनके बेटे निरंजन हीरानंदानी और सुरेंद्र हीरानंदानी ने संभाला।
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