ये बात 1993 की है, जब विवेकानंदजी वर्ल्ड रिलीजन कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए शिकागो (अमेरिका) जा रहे थे और उसी शिप ‘एसएस इम्प्रेस ऑफ इंडिया’ पर सवार थे, जिसमें कि जमशेदजी टाटा भी थे. 25 जुलाई को जापान के योकोहामा से ये शिप कनाडा के बेंकूवर के लिए निकला. वहां से विवेकानंद को शिकागो के लिए ट्रेन लेनी थी. उस वक्त तीस साल के युवा थे विवेकानंद और 54 साल के थे जमशेदजी टाटा, उम्र में इतने फर्क के वाबजूद दोनों ने काफी समय साथ गुजारा. इस मुलाकात ने भारत को दिए दो बड़े ब्रांड, जिन्हें आज देश का हर पढ़ा लिखा नौजवान जानता है.
इस शिप यात्रा के दौरान कई बार स्वामीजी की चर्चा टाटा से हुई. इसी यात्रा के दौरान कई मुद्दों पर स्वामी विवेकानंद और जमशेदजी टाटा में कई बातों को लेकर चर्चा हुई. टाटा ने बताया कि वो भारत में स्टील इंडस्ट्री लाना चाहते हैं. तब स्वामी विवेकानंद ने उन्हें सुझाव दिया कि टेक्नोल़ॉजी ट्रांसफर करेंगे तो भारत किसी पर निर्भर नहीं रहेगा, युवाओं को रोजगार भी मिलेगा. तब टाटा ने ब्रिटेन के इंडस्ट्रियलिस्ट से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात की, लेकिन उन्होंने ये कहकर मना कर दिया कि फिर तो भारत वाले हमारी इंडस्ट्री को खा जाएंगे.
उसके बाद तब टाटा अमेरिका गए और वहां के लोगों से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का भी समझौता किया. लोग बताते हैं कि इसी से टाटा स्टील की नींव पडी और जमशेदपुर मे पहली फैक्ट्री लगी. इस बात का जिक्र आज भी टाटा बिजनेस घराने से जुड़ी वेबसाइट्स पर मिल जाता है. इस पूरी मुलाकात की जानकारी स्वामीजी ने अपने भाई महेन्द्र नाथ दत्त को पत्र लिखकर दी थी.
जमशेदजी टाटा भगवा वस्त्रधारी उस युवा के चेहरे का तेज और बातें सुनकर काफी हैरान थे, भारत को कैसे सबल बनाना है इस पर उनकी राय एकदम स्पष्ट थी, ना केवल आर्थिक क्षेत्र में बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी. विवेकानंद ने एक और काफी अहम प्रेरणा जमशेदजी टाटा को इस यात्रा के दौरान दी. वो थी भारत में एक टॉप लेवल की साइंस यूनीवर्सिटी खोलना जहां से वर्ल्ड लेवल के स्टूडेंट्स देश भर में निकलें. जिसमें ना केवल साइंस की रिसर्च हो बल्कि ह्यूमेनिटी की भी पढ़ाई हो. टाटा ने दोनों ही बातों को गम्भीरता से लिया भी, उसके बाद टाटा अपने रास्ते पर और स्वामी अपने रास्ते पर.
इस मुलाकात में दो बातें टाटा ने स्वामीजी से समझीं, एक गरीब भारतीय युवा को भरपेट खाना मिल जाए और दूसरी शिक्षा मिल जाए तो वो देश की तकदीर बदल सकता है, और टाटा ने रोजगार और शिक्षा को अपना मिशन बना लिया.
हालांकि दोनों की ये पहली मुलाकात थी, लेकिन टाटा उनसे काफी प्रभावित हुए. स्वामी जी का सम्मान टाटा की नजरों में तब और भी बढ़ गया, जब ब्रिटेन के अखबारों ने उनके भाषण के बाद लिखा कि ‘’After listening him we find how foolish it is to send missionaries to his country.”. शिकागो भाषण के बाद विवेकानंद के चर्चे पूरे यूरोप और अमेरिका में होने लगे, वहां से वो इंगलैंड चले गए, जहां उन्होंने कई लैक्चर वेदांत पर दिए.
लेकिन लौटकर भारत आए विवेकानंद तो उन्होंने टाटा को उन दोनों संस्थाओं को खड़ा करने में मदद की, यहां तक कि स्वामी विवेकानंद की मौत के बाद ये जिम्मेवारी उनकी शिष्या सिस्टर निवेदिता ने संभाली और आज टाटा स्टील और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस यानी आईआईएससी जैसे ब्रांड संस्थान खड़े हो गए हैं.
पूरी कहानी इस वीडियो में जानिए-
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